फ्रांस में पेंशन बिल पर लोगों में गुस्सा
१६ सितम्बर २०१०फ्रांस की संसद के सामने मंगलवार को हजारों लोगों ने प्रदर्शन किए. वे इस बिल को वापस लेने की मांग कर रहे थे. 7 सितंबर को फ्रांस में इस बिल के विरोध में भारी प्रदर्शन हुए और हड़ताल की गई. इसके कारण रेल, हवाई यातायात बुरी तरह से प्रभावित हुआ. 23 सितंबर को एक बार और हड़ताल बुलाई गई है.
निचले सदन में भी ये बिल आसानी से पास नहीं हुआ. इस पर रात भर गरमा गरम बहस हुई. 329 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट दिया जबकि 233 लोगों ने इसके विरोध में. चूंकि राष्ट्रपति निकोला सारकोजी की पार्टी का संसद के निचले सदन में बहुमत है इसलिए इस पर सहमति होनी ही थी.
एक विपक्षी समाजवादी सासंद इस बिल पर वोट डालने के फैसले से इतने नाराज हुए कि उन्होंने श्रम मंत्री एरिक वोएर्थ के माथे गलत बात करने का आरोप मढ़ दिया. वोएर्थ सरकार के लिए इस बिल का बचाव कर रहे थे.
इस बिल के पूरी तरह से पास होने की आधी अड़चने खत्म हो गई हैं. पेंशन बिल को सारकोजी सरकार का एक अहम सुधार माना जा रहा है. बुधवार को हड़ताल बुलाने वाली सीजीटी यूनियन के प्रवक्ता का कहना है कि ये महत्वपूर्ण है कि जिस दिन इस बिल पर संसद में वोटिंग हो रही है उस दिन कोई काम नहीं हो. ये बिल कर्मचारियों के लिए ठीक नहीं है.
इस बिल के स्वीकृत होने पर फ्रांस में पेंशन मिलने की आयु 2018 से 62 साल हो जाएगी. फिलहाल फ्रांस में लोग 60 साल की उम्र में रिटायर होते हैं. यूरोपीय संघ के देशों में सेवानिवृत्ति की सबसे कम उम्र में अब तक फ्रांस शामिल रहा है.
7 सितंबर को हुए भारी विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने इस बिल में कुछ छोटे मोटे बदलाव किए हैं. इसमें फुल पेंशन के लिए भी उम्र 65 से बढ़ा कर 67 कर दी गई है. सरकार चाहती है कि 2018 तक वित्त व्यवस्था संभल जाए क्योंकि 2008-09 के संकट में फ्रांस की सरकार को घाटा हुआ था.
राष्ट्रपति सारकोजी ने बुधवार को कहा कि आखिरी मुहर लगने के पहले बिल में अभी बदलाव की गुंजाइश है लेकिन उसके मूलभूत स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा. अब अक्तूबर की शुरुआत में इस बिल पर सीनेट में बहस होगी. सरकार चाहती है कि इसे नवंबर में पास कर दिया जाए.
समाजवादी विचारधारा के सासंद सेग्लोने रॉयल का कहना है कि इसका कड़ा विरोध किया जाना चाहिए. क्योंकि ये सुधार न्यायसंगत नहीं है और खतरनाक है. बुधवार को किए गए एक सर्वे में सामने आया कि 60 फीसदी लोग इस बिल में और रियायत चाहते हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम
संपादनः एस गौड़