फ्रांस में प्रतिस्पर्धी खेलों में हिजाब पर प्रतिबंध नहीं
१० फ़रवरी २०२२
फ्रेंच नेशनल एसेंबली में प्रतिस्पर्धी खेलों में हिजाब जैसे प्रतीकों पर बैन का प्रस्ताव खारिज हो गया. राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की पार्टी ने प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया. अप्रैल 2022 में फ्रांस के राष्ट्रपति का चुनाव है.
नेशनल असेंबली में राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की 'रिपब्लिक ऑन द मूव पार्टी' और उसके सहयोगी बहुमत में हैं. तस्वीर: Ludovic Marin/REUTERS
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फ्रांस की लैंगिक समानता मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने हिजाब पर मुस्लिम महिला फुटबॉल खिलाड़ियों का समर्थन किया है. इस समर्थन का संदर्भ फ्रांस में फुटबॉल से जुड़ी गवर्निंग बॉडी 'फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन' के एक फैसले से जुड़ा है. इसके मुताबिक, मैच खेलने के दौरान खिलाड़ी ऐसी कोई चीज नहीं पहन सकते, जिनसे उनकी धार्मिक पहचान जाहिर होती हो. इनमें मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला हिजाब और यहूदी लोगों द्वारा लगाई जाने वाली खास टोपी 'किप्पा' भी शामिल हैं.
हिजाब लगाने वाली खिलाड़ी कर रही हैं विरोध
फ्रांस की मुस्लिम फुटबॉल खिलाड़ी इस प्रतिबंध का विरोध कर रही हैं. इनसे जुड़ा एक संगठन है, ले हिजाबुस. यह फ्रांस की उन महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की संस्था है, जो हिजाब पहनने के चलते मैच नहीं खेल पा रही हैं. नवंबर 2021 में इस संस्था ने फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन के प्रतिबंध को कानूनी चुनौती दी. संगठन की दलील है कि यह प्रतिबंध भेदभाव करता है. साथ ही, यह धर्म मानने के उनके अधिकार में भी दखलंदाजी करता है.
'ले हिजाबुस' 9 फरवरी को अपनी मांगों के समर्थन में फ्रेंच संसद के आगे एक विरोध प्रदर्शन करना चाहता था. मगर प्रशासन ने सुरक्षा संबंधी कारणों से इसकी इजाजत नहीं दी. इस संस्था की शुरुआत करने वालों में शामिल फुन्न जवाहा ने जनवरी 2022 में न्यूज एजेंसी एएफपी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था, "हम बस फुटबॉल खेलना चाहती हैं. हम हिजाब की समर्थक नहीं हैं, हम बस फुटबॉल प्रशंसक हैं."
हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
दुनिया में अनेक धर्म हैं. इन धर्मों के अनुयायी अपने विश्वास और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिर को कई तरह से ढंकते हैं. जानिए कैसे-कैसे ढंका जाता है सिर.
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दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है. यह पगड़ी के अंतर्गत आता है. भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ. इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है. सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते. और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं.
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टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है. 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं. यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है. रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं. नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है.
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए. सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है. वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है.
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चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है. इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती. यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है. फारसी में इसे टेंट कहते हैं. यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है. इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं.
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माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर. 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था. इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था. दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं.
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नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है. ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं. ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं. कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है.
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हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है.इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया. इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है. और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है.
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बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे. इस के चार कोने होते हैं. लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था. 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा.
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शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे. इसे शट्राइमल कहा जाता है. शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं. आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती. दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था. लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई. (क्लाउस क्रैमेर/एए)
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यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया. टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया. यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी. यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था.
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शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है. न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है. जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है. साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था. ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था.
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इस मुद्दे पर पार्टियों में असहमति
फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में दो महीने का समय बचा है. चुनावी माहौल के बीच यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है. फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता से जुड़े कानून काफी सख्त हैं. यहां धर्म और सरकार दोनों के बीच विभाजन काफी स्पष्ट है. फ्रेंच सीनेट में दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व है. जनवरी 2022 में पार्टी एक कानून का प्रस्ताव लाई. इसमें सभी प्रतिस्पर्धी खेलों में ऐसे प्रतीकों पर बैन लगाने का प्रस्ताव रखा गया था, जिनसे किसी की धार्मिक पहचान जाहिर होती हो.
9 फरवरी को संसद के निचले सदन 'नेशनल असेंबली' में यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया. यहां राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की 'रिपब्लिक ऑन द मूव पार्टी' और उसके सहयोगी बहुमत में हैं. इसी पर टिप्पणी करते हुए 10 फरवरी को मंत्री एलिजाबेथ मोरैनो ने एलसीआई टेलिविजन से कहा, "कानून कहता है कि ये महिलाएं हिजाब लगाकर फुटबॉल खेल सकती हैं. मौजूदा समय में फुटबॉल मैदानों पर हिजाब लगाने के ऊपर कोई पाबंदी नहीं है. मैं चाहती हूं कि कानून का सम्मान किया जाए." मोरैनो ने आगे कहा, "सार्वजनिक जगहों पर महिलाएं जैसे चाहें, वैसे कपड़े पहन सकती हैं. मेरा संघर्ष उन्हें सुरक्षित करना है, जिन्हें पर्दा करने पर मजबूर किया जाता है."
फ्रांस लौटा रहा है अफ्रीका से लूटी हुई कलाकृतियां
फ्रांस ने 130 साल पहले अफ्रीका के दहोमेय साम्राज्य से 26 कलाकृतियां लूट ली थीं. अब फ्रांस उन्हें लौटा रहा है लेकिन लौटाने से पहले पेरिस में इन कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी लगाई गई है.
तस्वीर: Lois Lammerhuber/musée-du-quai-Branly
पेरिस में प्रदर्शनी
कलाकृतियां पश्चिमी अफ्रीका के देश बेनिन को लौटाई जा रही हैं, जहां कभी दहोमेय साम्राज्य था. लौटाने से पहले इन्हें पेरिस में एक खास प्रदर्शनी में दर्शाया गया है.
तस्वीर: Michel Euler/AP/dpa/picture alliance
एक प्रभावशाली साम्राज्य
दहोमेय साम्राज्य की स्थापना 17वीं शताब्दी में हुई और वो 19वीं शताब्दी तक कायम रहा. वो अफ्रीका के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से था. यह तस्वीर बेहंजिन की है जिन्हें इस साम्राज्य का अंतिम स्वतंत्र शासक माना जाता है. 1890 में जब फ्रांस ने उनके साम्राज्य पर हमला कर दिया तो उन्होंने फ्रांस के खिलाफ प्रतिरोध का नेतृत्व किया. चार साल बाद फ्रांस जीत गया और बेहंजिन अपने परिवार के साथ देश छोड़ कर चले गए.
1892 में जब फ्रांस की सेना बेनिन पर कब्जा जमा रही थी, जो पूर्व शाही शहर अबोमेय स्थित राजमहल से कई कलाकृतियां चुरा कर फ्रांस पहुंचा दी गई थीं. 2006 में इन कलाकृतियों को पहली बार फ्रांस में एक प्रदर्शनी में सार्वजनिक किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Julien
बेनिन लौटेगा इतिहास
बेनिन में इन कलाकृतियों को सबसे पहले विदाह शहर स्थित गवर्नर के निवास पर दर्शाया जाएगा. फिर इन्हें अबोमेय पहुंचा दिया जाएगा जहां एक नया संग्रहालय बनाया जाएगा. बेनिन 1960 में स्वतंत्र हुआ था और उसने 2016 में फ्रांस की सरकार को एक चिट्ठी लिखकर इन कलाकृतियों को वापस मांगा था.
तस्वीर: Stefan Heunis/AFP/Getty Images
वादा निभाया
2017 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने लूटी हुईं कलाकृतियों को वापस लौटाने के लिए एक कानून बनाने में मदद करने का वादा किया था. तब तक फ्रांस में रखी गई सांस्कृतिक वस्तुएं सरकारी संपत्ति थी और उन्हें हस्तांतरित नहीं किया जा सकता था, चाहे वो किसी भी तरह से लाई गई हों. इन्हें लौटाने की अनुमति देने वाला कानून 2020 में पारित किया गया.
तस्वीर: Ludovic Marin/AFP via Getty Images
अल हज उमर की तलवार
फ्रांस ने 2019 में सेनेगल को अल हज उमर नाम के सैन्य जनरल और विद्वान की तलवार भी लौटाई थी. यह फ्रांस द्वारा उसकी पूर्व कॉलोनियों को लौटाई कई पहली वस्तु थी. तस्वीर में सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल (दाईं तरफ) तलवार को स्वीकार कर रहे हैं.
तस्वीर: AFP Seyllou/AFP via Getty Images
लकड़ी का कीमती सामान
फ्रांस बेनिन को शाही मूर्तियों के अलावा राजदंड और वेदिका जैसे सामान भी लौटाएगा. यह शानदार शाही कुर्सी भी पश्चिमी अफ्रीका को लौटाई जाएगी. बेनिन के अलावा सेनेगल, माली, चाड, कोट दिवोआर, इथियोपिया और मैडागास्कर ने भी फ्रांस को उनका सामान लौटाने के लिए लिखा है.
तस्वीर: Pauline Guyon/musée-du-quai-Branly
खोई हुई विरासत
अनुमान है कि यूरोप में अफ्रीका की वस्तुगत सांस्कृतिक विरासत का 90 प्रतिशत हिस्सा रखा हुआ है. अकेले पेरिस के म्युजि दू क्वे ब्रैन्ली संग्रहालय में अफ्रीका के उप-सहराई इलाके की करीब 70,000 कलाकृतियां रखी हुई हैं. इनमें से आधे से ज्यादा को फ्रांस के औपनिवेशिक काल में हासिल किया गया था. आजकल यह जानने के लिए जांच चल रही है कि इन्हें कहीं अन्यायपूर्ण तरीके से तो नहीं लाया गया था.
तस्वीर: Pauline Guyon/musée-du-quai-Branly
अन्य यूरोपीय देश भी लौटाएंगे सामान
यूरोप के अन्य देशों ने भी कई देशों को कलाकृतियां लौटाने का वादा किया है. जर्मनी नाइजीरिया को 'बेनिन ब्रोन्जेस' के नाम से जानी जाने वाली कलाकृतियां 2022 से लौटना शुरू करना चाहता है. (ऐनाबेल स्टेफेस-हालमर)
तस्वीर: Pauline Guyon/musée-du-quai-Branly
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क्या कहता है फ्रेंच कानून
फ्रांस का धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा कानून हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है. इसमें सार्वजनिक जगहों पर लोगों के धार्मिक प्रतीक पहनने पर पाबंदी नहीं है. एक अपवाद है, चेहरे को पूरी तरह ढकना. फ्रांस यूरोप का पहला देश था, जिसने 2011 में घर से बाहर नकाब लगाने, यानी चेहरे को पूरी तरह ढकने पर बैन लगाया था. सरकारी संस्थानों के कर्मचारियों पर भी अपना धर्म प्रदर्शित करने की मनाही है. यह पाबंदी स्कूली बच्चों पर भी लागू है.
फ्रांस के कई दक्षिणपंथी नेता हिजाब पर भी रोक लगाना चाहते हैं. उनका मानना है कि हिजाब इस्लामिकता के समर्थन में दी गई राजनैतिक अभिव्यक्ति है. वे हिजाब को फ्रेंच सिद्धांतों के भी खिलाफ मानते हैं. हालिया सालों में दक्षिणपंथी नेताओं ने ऐसे प्रस्ताव भी दिए हैं कि स्कूली ट्रिप पर अपने बच्चों के साथ जाने वाली मांओं के हिजाब लगाने पर भी पाबंदी हो. वे शरीर को पूरी तरह ढकने वाले स्विम सूट 'बुर्किनी' को भी प्रतिबंधित करना चाहते हैं.
रिपब्लिकन पार्टी के दक्षिणपंथी सांसद एरिक सियोटी ने नेशनल असेंबली में प्रस्ताव खारिज होने के बाद माक्रों की पार्टी की आलोचना की. उन्होंने कहा, "इस्लामिज्म हर जगह अपनी सत्ता थोपना चाहता है." सत्ताधारी पार्टी के विरोध के बीच उन्होंने कहा, "पर्दा महिलाओं के लिए कैद है. यह अधीनता का प्रतीक है."
2014 में इंटरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन बोर्ड (आईएफएबी) ने महिला खिलाड़ियों को मैच के दौरान हिजाब पहनने की अनुमति दी थी. बोर्ड ने माना था कि हिजाब धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक प्रतीक है. वहीं फ्रेंच फुटबॉल फेडरेशन का कहना है कि बैन लगाकर वह केवल फ्रेंच कानूनों का पालन कर रहा है. फिलहाल यह मामला अदालत में है. फ्रांस की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत इस मामले में 'ले हिजाबुस' की अपील पर फैसला सुनाएगी.