यूरोप के शरणार्थी संकट के मद्देनजर ही व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो ने कुछ बेहद भड़काने वाले कार्टून छापे हैं. डीडब्ल्यू के ग्रैहम लूकस बताते हैं कि क्यों वह खुद भी इस अंक को नहीं खरीदने वाले.
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शार्ली एब्दो और विवादों का पुराना नाता है. अपनी शुरुआत से लेकर कई बार उसने मुक्त भाषण की सीमाएं परखी हैं. व्यंग्य में कोई सीमा नहीं मानने के अपने सिद्धांत के तहत पत्रिका ने लगातार ऐसे कार्टून प्रकाशित किए हैं जो किसी की व्यक्तिगत, राजनैतिक, सामाजिक या धार्मिक संवेदनाओं से बेपरवाह दिखते हैं. पश्चिमी मीडिया में व्यंग्य के केंद्र में यह सिद्धांत रहा है क्योंकि इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका समझी जाती है. किसी राय को रखने या चुनौती देने में कोई लंबा से लंबा संपादकीय इस छोटे लेकिन गहरी चोट करने वाले स्वरूप का मुकाबला नहीं कर सकता.
शार्ली एब्दो पर जनवरी में हुए इस्लामी आतंकियों के हमले की वजह पैगंबर मुहम्मद के अपमानजनक कार्टून प्रकाशित करना था. डेनिश कार्टूनिस्ट की ही तरह इस बार भी जड़ में यही बात थी जिन बातों की आलोचना होनी चाहिए वह होगी ही. तमाम कमियों के बावजूद आखिर हमारा पश्चिमी मीडिया स्वतंत्र तो है और हमें इसकी भी आजादी है कि हम क्या खरीदें, क्या पढ़ें और किसे नजरअंदाज करें.
इस बार पत्रिका के पीछे के पेजों पर छपे किसी कार्टून के चलते शार्ली एब्दो फिर से चर्चा में है. सबसे विवादास्पद कार्टून में सीरियाई बच्चा आयलान कुर्दी है, जो हाल ही में तुर्की से ग्रीस आने की कोशिश के दौरान डूब गया था. इस तस्वीर ने दुनिया भर का ध्यान शरणार्थी संकट की ओर खींचा. शार्ली एब्दो ने अपने कार्टून का शीर्षक दिया है, “शरणार्थियों का स्वागत, लक्ष्य के इतने पास...” साथ ही एक फास्ट फूड रेस्त्रां के विज्ञापन में “बच्चों के मेनू में 1 के दाम में 2” भी कार्टून में दिखाए गए हैं. भले ही उनकी मंशा पश्चिम की जीवनशैली और यूरोप में बेहतर जीवन की तलाश में आने वाले शरणार्थियों की आर्थिक महत्वाकांक्षाएं हों लेकिन इससे ये भी पता चलता है कि पश्चिम के प्रति उनकी अवधारणा सत्य से दूर और अधूरी है.
फिर याद आया आयलान
अक्सर विवादों में रहने वाली फ्रांस की पत्रिका शार्ली एब्दो ने आयलान कुर्दी का एक ऐसा कार्टून छापा है जिसकी कड़ी आलोचना हो रही है. इस मौके पर एक बार फिर आयलान की याद ताजा हो गयी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/DHA
कौन है शार्ली एब्दो
यह वही पत्रिका है जिसके पेरिस स्थित दफ्तर पर जनवरी 2015 में आतंकी हमला हुआ और जिसके बाद दुनिया भर में Je suis Charlie यानि 'मैं हूं शार्ली' का नारा फैला. पत्रिका के इसी अंक में एक और कार्टून है जिसमें येशू को पानी पर चलते दिखाया गया है और लिखा है, "ईसाई पानी पर चलते हैं, मुस्लिम बच्चे डूबते हैं."
तस्वीर: picture-alliance/epa/Y. Valat
वो तस्वीर..
तीन साल के आयलान की तस्वीर ने दुनिया को झकझोर दिया. जो लोग अब तक शरणार्थी संकट से दूरी बना रहे थे, वे भी इस दर्द को महसूस करने लगे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/DHA
मां के साथ
आयलान का परिवार तुर्की से ग्रीस जाने की कोशिश कर रहा था जब भूमध्यसागर में उनकी नाव पलट गयी. इस हादसे में दोनों भाइयों और मां की जान चली गयी.
तस्वीर: Getty Images/Courtesy of Kurdi family
पिता
आयलान के पिता हादसे में बच गए. उन्होंने बताया कि हवा से फुलाई जाने वाली नाव में 16 लोग सवार थे, जबकि जगह केवल आठ लोगों के लिए थी. महज पांच मिनट बाद ही नाव पलट गयी.
तस्वीर: Reuters/G. Gurbuz
अभी सूखे नहीं आंसू
आयलान और उसके परिवार के शव जब सीरिया लाए गए तो परिवार वालों का यह हाल था. सीरिया के और कई परिवार भी इसी तरह उजड़ गए हैं.
तस्वीर: Reuters/R. Said
जनाजा
सीरिया के कोबानी में आयलान, उसके भाई और उसकी मां का जनाजा. आयलान की तस्वीर 21वीं सदी के सीरिया संकट की निशानी बन गयी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Stringer
जागो दुनिया
आयलान की बुआ फातिमा कुर्दी ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के मुख्यालय पहुंचीं. उन्होंने ईयू से ठोस कदमों की मांग करते हुए कहा कि आयलान, उसके भाई और मां के लिए तो अब बहुत देर हो चुकी है लेकिन सीरिया से आने वाले हजारों बच्चों और उनके परिवारों को बचाया जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Mayo
प्रदर्शन
यह तस्वीर पेरिस की है. तस्वीर पर लिखा है Je suis Syrien यानि 'मैं हूं सीरिया'. इसी नारे के साथ लोगों ने शार्ली एब्दो का भी समर्थन किया था. उसी शार्ली एब्दो ने आज आयलान का कार्टून छापा है. कुछ समीक्षकों का मानना है कि कार्टून बच्चे पर नहीं बल्कि यूरोप की आलोचना पर केंद्रित है.
तस्वीर: Reuters/P. Wojazer
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एक और कार्टून में यीशू को पानी पर चलते और बच्चों को डूबते दिखाया गया है. इसके जरिए उन तथाकथित यूरोपीय ईसाईयों पर सीधा निशाना साधा गया है जिन्होंने संकट की इस घड़ी में शरणार्थियों को लेने का विरोध किया. इसके अलावा यह उन लोगों पर भी हमला है जो किसी एक धर्म को दूसरे से ऊंचा मानते हैं.
यूरोप के ताजा घटनाक्रम पर व्यंग्य कसने की कोशिश जरूरी और न्यायसंगत है, लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय है कि इस संदेश के लिए आयलान कुर्दी की तस्वीर का इस्तेमाल करना शार्ली एब्दो की एक गंभीर संपादकीय भूल है. आयलान के पूरे परिवार पर जो बीती उसे व्यंग्य का विषय नहीं बनाना चाहिए. यह बेस्वाद ही नहीं बल्कि घृणास्पद है. कई लोग मुझसे असहमत भी होंगे और मैं उनकी राय का भी सम्मान करता हूं. प्रीडम ऑफ स्पीच के यही मायने भी हैं. लेकिन साफ है कि मैं पत्रिका का यह अंक नहीं खरीदने वाला हूं.
फ्रांसीसी पत्रिका पर कट्टरपंथियों का हमला
फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दॉ के पेरिस कार्यालय को कट्टरपंथियों ने निशाना बनाया है. भारी गोलीबारी में कई पत्रकारों की जान चली गई है. इस पत्रिका पर इस्लामी मान्यताओं को चोट पहुंचाने वाले कार्टून छापने का आरोप है.
तस्वीर: Reuters/J. Naegelen
पेरिस की यह पत्रिका अपनी निर्भीक टिप्पणियों और व्यंग्यात्मक कार्टूनों के लिए दुनिया भर में जानी जाती है.
तस्वीर: B. Guay/AFP/Getty Images
शार्ली एब्दॉ के दफ्तर पर आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर दी जिसमें 12 पत्रकारों और पुलिसकर्मियों की जान चली गई.
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घटनास्थल पर मौजूद कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि उन्होंने गोलीबारी की आवाज सुनी और हमलावरों को "अल्लाहु अकबर" के नारे लगाते भी सुना.
तस्वीर: M. Bureau/AFP/Getty Images
आतंकियों के हमले में जान गंवाने वालों में पत्रिका के संपादक और 2012 में पैगंबर मोहम्मद पर कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट शामिल हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA/Y. Valat
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने पत्रकारों से बातचीत में इसे एक एक “आंतकी हमला” बताया. उन्होंने कहा कि बीते दिनों में कई ऐसी आतंकी वारदातों को असफल किया गया है.
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राष्ट्रपति ओलांद ने इन हमलों को बेहद कायराना करार दिया. उन्होंने कहा कि कट्टरपंथियों ने पत्रकारों की हत्या कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके अधिकार के खिलाफ काम किया है.
तस्वीर: K. Tribouillard/AFP/Getty Images
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इस बेअदब कार्टून के कारण किसी को फ्रीडम ऑफ स्पीच को चुनौती नहीं देनी चाहिए. और जो लोग ऐसा करते हैं उनसे सबसे ज्यादा डरने की जरूरत है. यही मुक्त मीडिया पर रोकटोक लगाने और सेंसरशिप लागू करने की कोशिशें कर सकते हैं. यह आजादी किसी भी लोकतांत्रिक समाज की जान होती है. एक पत्रकार के तौर पर मैं इस मशहूर उक्ति के साथ अपनी बात खत्म करना चाहूंगा. फ्रांसीसी दार्शनिक वॉल्टेयर ने कहा था, “तुम जो कह रहे हो मैं उससे सहमत नहीं हूं, लेकिन मैं मरते दम तक अपनी बात रखने के तुम्हारे अधिकार की रक्षा करूंगा.”