भारत समेत दक्षिण पूर्वी एशिया में पाए जाने वाले बर्मी अजगरों ने अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में हाहाकार मचाया. अजगरों ने फ्लोरिडा के ज्यादातर जंगली जानवर चट कर दिए हैं. पूरा ईको सिस्टम तबाह होने के करीब है.
विज्ञापन
अमेरिकी प्रांत फ्लोरिडा मगरमच्छों के लिए विख्यात है. मगरमच्छों को वहां का राजा कहा जाता है लेकिन अब नई प्रजाति उनके दबदबे को चुनौती दे रही है. यह प्रजाति है बर्मी अजगर. भारत समेत दक्षिण पूर्वी एशिया में पाए जाने वाले इन अजगरों को 1970 के दशक में कोई अमेरिका ले गया. कुछ समय तक उन्हें पालने के बाद उस शख्स ने बेहद गैर जिम्मेदार तरीके से उन्हें जंगल में छोड़ दिया.
फ्लोरिडा की जलवायु एशिया के अजगरों को रास आई. वहां खूब भोजन मिलने और कोई प्राकृतिक दुश्मन न होने से बर्मी अजगरों की तादाद बहुत तेजी से फैली. अब इसके घातक परिणाम सामने आ रहे हैं. माना जा रहा है कि फ्लोरिडा में इस वक्त 1,50,000 से ज्यादा बर्मीज पायथन हैं. वन्यजीवन में वो गहरी घुसपैठ कर चुके हैं.
बर्मी अजगर 23 फुट तक लंबा हो सकता है. उसका वजन 113.4 किलोग्राम तक पहुंच सकता है. इन अजगरों ने फ्लोरिडा के जंगलों में रहने वाले ज्यादातर रैकून, लोमड़ी, हिरण, खरगोश और परिंदे चट कर दिए हैं. जमीन पर घात लगाकर शिकार करने वाले ये अजगह पानी में तैरकर और पेड़ों पर कुंडली मारकर भी दूसरे जीवों को निवाला बना रहे हैं.
विदेशी प्रजातियों की घुसपैठ पर नजर रखने वाले एनिमल बायोलॉजिस्ट माइकल किर्कलैंड चिंता में डूबे हैं, "फर वाले पशुओं की आबादी में हमने 99 फीसदी गिरावट दर्ज की है. अब वे पानी में रहने वाले पंछियों और कभी कभार मगरमच्छों को भी निशाना बना रहे हैं." हाल ही में वन्य जीव संरक्षकों ने 10 फुट लंबे अजगर की जकड़ से एक चार फुट लंबे मगरमच्छ को आजाद कराया.
छोटे वन्य जीवों के सफाये का असर पूरे आहार चक्र पर दिख रहा है. मगरमच्छों और फ्लोरिडा पैंथर (प्यूमा) को भूखे रहना पड़ रहा है. किर्कलैंड कहते हैं, "मियामी डैड काउंटी, एवरग्लेड्स नेशनल पार्क और उसके आस पास के इलाके में तो अजगरों ने पूरी तरह उनका आहार ही खत्म कर दिया है. अब यहां आहार चक्र में सबसे ऊपर अजगर हैं." अजगर अपने वजन से 111 फीसदी ज्यादा बड़ा शिकार निगल सकते हैं.
एवरग्लेड्स नेशनल पार्क और उसके आस पास के 16,187 वर्गकिलोमीटर इलाके में कभी वन्य जीवों की हजारों प्रजातियां रहती थीं. लेकिन आज जिधर देखो वहां अजगर ही अजगर हैं. किर्कलैंड कहते हैं, "कुछ नहीं करना कोई उपाय नहीं है." अब राज्य में अजगरों के शिकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं.
हाल में ही 1,100 अजगर पकड़े गए. अब शिकारियों को बंदूक के साथ एवरग्लेड्स नेशनल पार्क के भीतर जाने की इजाजत भी दी जा रही है. किर्कलैंड के मुताबिक अजगरों का गढ़ पार्क ही है. किर्कलैंड का कहना है कि अगर अजगरों को पार्क के भीतर जाकर खत्म नहीं किया गया तो वे पश्चिम और उत्तर का रुख करेंगे और ईको सिस्टम को तबाह करते चले जाएंगे.
(भारत में सदियों से सपेरे नाग व सांप को पकड़ते आये हैं. सपेरे शायद, दुनिया के सबसे अनुभवी सांप विशेषज्ञ हैं. लेकिन इनके हुनर की कोई कद्र नहीं.)
आधुनिकता के जहर से खत्म होते सपेरे
भारत में सदियों से सपेरे नाग व सांप को पकड़ते आये हैं. सपेरे शायद, दुनिया के सबसे अनुभवी सांप विशेषज्ञ हैं. लेकिन इनके हुनर की कोई कद्र नहीं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
कौन हैं सपेरे
भारत के कुछ खास कबीले सैकड़ों साल तक सांप पकड़कर अपना पेट पालते रहे. इन्हीं को सपेरा भी कहा जाता है. उनका ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी अनुभव के साथ आगे बढ़ा है. आम तौर पर सपेरों के बच्चे दो साल की उम्र में ही सांपों से खेलना शुरू कर देते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
सदियों पुरानी दोस्ती
भारत में मिलने वाले सांपों की दर्जनों प्रजातियां विषैली होती हैं. लेकिन जोगी, वादी और इरुला कबीले के बच्चे इनसे भी नहीं डरते. वह सांपों का मनोविज्ञान समझने का दावा करते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
पौराणिक विद्या
वादी कबीले के मुखिया बाबानाथ मिथुननाथ के मुताबिक, "रात में हम सब एक साथ बैठते हैं और फिर नागाओं के समय से चली आ रही विद्या को साझा करते हैं. 12 साल की उम्र तक बच्चे सांपों के बारे में सब कुछ सीख जाते हैं."
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
एक दूसरे के दोस्त
मिथुननाथ कहते हैं, "हम बच्चों को बताते हैं कि एक सांप को उसके प्राकृतिक आवास से सात महीने के लिए ही बाहर रखा जा सकता है. सात महीने से ज्यादा बाहर रखना ठीक नहीं. साथ में काम करते समय सांप और हम एक दूसरे पर भरोसा करते हैं."
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
जहर नहीं निकालते
बाबानाथ मिथुननाथ सांपों के जहरीले दांत तोड़ने से इनकार करते हैं, "हम उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते, क्योंकि वे तो हमारे बच्चों की तरह हैं. मैंने बचपन से आज तक सिर्फ एक ही बार सुना है कि एक आदमी को सांप ने काटा, क्योंकि उसने सांप को सात महीने से ज्यादा समय तक बाहर रखा."
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
गजब का ज्ञान
बिना किसी मशीनी ताम झाम के ये लोग एक पल में सांप की उम्र, उसका लिंग और उसका इलाका बता देते हैं. वे जानते हैं कि कौन सा सांप यहीं रहता है और कौन सा भटककर आया है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
एक मात्र उम्मीद
भारत के हजारों गांवों में आज भी सांप के काटने पर लोग इलाज के लिए सपेरों के पास जाते हैं. संपेरे पानी और जड़ी बूटियों से इलाज करते हैं. अक्सर उनके तौर तरीकों को चमत्कार भी बताया जाता है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
कानून की मार
भारत में 1991 में सांपों को नचाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अब सांपों को रखना भी कानूनन अपराध है. वादी कबीले के मुताबिक इस कानून की उन पर तगड़ी मार पड़ी. अब सपेरों के लिए रोजी रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
कहां जाएं, क्या करें
राजस्थान के वादी कबीले के मुताबिक, सांप का खेल बंद होने के बाद से उनका गांवों में आना जाना भी कम हो गया है. अब गांव वाले अक्सर उन्हें भगा देते हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
जब जरूरत पड़ी, याद किया
सांप के डंक की दवा सांप के ही जहर से बनाई जाती है. भारत में हर साल हजारों लोग सर्पदंश से मारे जाते हैं. दवा बनाने के लिए जब जहर की जरूरत पड़ती है तो वादी या इरुला कबीले के लोगों को याद किया जाता है.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
मान्यता बनाम कानून
हिंदू मान्यता के मुताबिक भगवान शिव की उपासना करने वाले सपेरे अब वाकई मुश्किल में हैं. उनके सदियों पुराने ज्ञान का फायदा उठाया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बाबानाथ मदारी कहते हैं, "भारत के अमीरों के पास गरीबों के लिए जरा भी समय नहीं है."