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शिक्षा

बंगाल में दाखिले के समय धर्म बताना मजबूरी नहीं होगी

५ जून २०१९

पश्चिम बंगाल ने कॉलेजों में दाखिले के समय धर्म के कॉलम में कई विकल्प दिए हैं. अगले शिक्षण सत्र से तमाम डिग्री और पोस्टग्रेजुएट कालेजों में दाखिला लेने वालों छात्रों के सामने अब धार्मिक पहचान बताने की मजबूरी नहीं होगी.

Kalkutta Universität
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

पश्चिम बंगाल के चार दर्जन से ज्यादा कॉलेजों में अब दाखिले के लिए ऑनलाइन भरे जाने वाले फार्म में छात्र हिंदू, मुस्लिम और ईसाई जैसे पारंपरिक धर्मों के अलावा नास्तिक, धर्म पर विश्वास नहीं करने वाला, मानवता और अज्ञेयवादी जैसे विकल्प चुन सकते हैं. यानी अब उनके सामने अपना असली धर्म बताने की मजबूरी नहीं है. कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में दाखिले के समय धर्म के उल्लेख की अनिवार्यता कोई 26 साल पहले खत्म कर दी थी. लेकिन वर्ष 2008-09 में फिर दाखिले के फार्म में धर्म का कॉलम शामिल कर लिया गया. हालांकि इसमें अन्य लिखने का भी विकल्प है. छात्रों के अलावा शिक्षाविदों ने भी इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया है.

डिग्री कालेज में दाखिला लेने वाले छात्र कुछ समय से दाखिले के समय धर्म का जिक्र करने के औचित्य पर सवाल उठा रहे थे. बीते साल तक इस कॉलम में उनके सामने पारंपरिक धर्मों के अलावा अन्य का विकल्प ही था. लेकिन अब छात्रों के समक्ष कई विकल्प हैं. उसके बाद राज्य के कई कॉलेजों ने ऑनलाइन आवेदन के समय धर्म के कॉलम में मानवता और नास्तिक जैसे कई विकल्प दे दिए हैं. इनमें कोलकाता के कई प्रतिष्ठित कालेज भी शामिल हैं. महानगर के एक सदी पुराने बेथून कालेज के एक अधिकारी ने बताया कि इससे छात्रों के समक्ष अपना धर्म बताने की मजबूरी नहीं होगी. अब तक इस कॉलेज में जितने फार्म भरे जा रहे थे उनमें ज्यादातर छात्रों ने खुद को नास्तिक बताया था. इसे ध्यान में रखते हुए कालेज प्रबंधन ने अबकी धर्म के कॉलम में मानवता का विकल्प भी मुहैया कराया गया है. उत्तर कोलकाता के स्काटिश चर्च कालेज जैसे कई कॉलेजों ने अब धर्म के कॉलम में अज्ञेयवादी, धर्मनिरपेक्ष और अधार्मिक या धर्म पर विश्वास नहीं करने वाला जैसे विकल्प भी मुहैया कराए हैं. मानवता का विकल्प मुहैया कराने वाले कॉलेजों में मौलाना आजाद कालेज, राममोहन कालेज, बंगवासी कालेज, हावड़ा का महाराज स्रीशचंद्र कालेज और मेदिनीपुर का मेदिनीपुर कालेज शामिल हैं.

कॉलेज में धर्म बताना जरूरी नहीं.तस्वीर: picture-alliance/robertharding/M. Cristofori

कलकत्ता विश्वविद्यालय ने वर्ष 1993 में पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए बने फार्म से धर्म का कॉलम हटा दिया था. लेकिन वर्ष 2008-09 में फिर वह कॉलम बहाल हो गया. आखिर उस फैसले को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी? विश्वविद्यालय के एक अधिकारी बताते हैं कि पंद्रह साल तक फार्म में धर्म का जिक्र नहीं करना पड़ता था. लेकिन वर्ष 2005 में गठित सच्चर समिति ने जब कलकत्ता विश्विवद्लाय में मुस्लिम छात्रों के बारे में आंकड़े मांगे तो उसे जुटाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा अल्पसंख्यकों को स्कॉलरशिप देने के मामले में भी समस्या होती थी. इन वजहों से धर्म का कॉलम दोबारा बहाल करने का फैसला किया गया. अब पोस्टग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए दाखिले के ऑनलाइन आवेदन में धर्म का कॉलम तो है लेकिन जो लोग अपना धर्म नहीं बताना चाहते उनके लिए अन्य का विकल्प भी है. महानगर के एक कॉलेज में अंग्रेजी (आनर्स) में दाखिले के लिए आवेदन करने वाली स्वातिलेखा चौधरी कहती हैं, "किसी धर्म की बजाय मानवता का विकल्प देकर कॉलेज ने एक बेहद प्रगतिशील कदम उठाया है.”

दूसरी ओर, शिक्षाविदों और छात्रों का कहना है कि मानवता की जगह मानवतावाद बेहतर विकल्प साबित होता. कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक शिक्षक नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, "यह ऐतिहासिक फैसला है. लेकिन हमें मानवतावाद का विकल्प मुहैया कराने पर विचार करना चाहिए.” बेथून कॉलेज में दाखिले के लिए पहुंची एक छात्रा सागरिका सेन का कहना था, "यह एक प्रगतिवादी कदम है. वह कहती है कि जन्म से हिंदू होने के बावजूद उसे अपनी धार्मिक पहचान उजागर करना पसंद नहीं है.” एक अन्य छात्र तन्मय सेनगुप्ता इस पहल को नई दिशा दिखाने वाला करार देते हैं. तन्मय का कहना है, "यह लीक से हट कर एक नई पहल है. हम सब किसी न किसी धर्म को मानते हैं. लेकिन वह हमारी पहचान नहीं बन सकता. मानवतावाद ही हमारा धर्म है और हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धर्म एकदम निजी मामला है.”

मानवतावाद और नास्तिकता के विकल्प भी विद्यार्थियों को दिए गए हैं.तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में समाजविज्ञान के प्रोफेसर प्रशांत राय कहते हैं, "धार्मिक पहचान उजागर करना एक बेहद निजी फैसला है. एक दौर में अज्ञेयवादी होना विरोध का हथियार था. लेकिन मुझे मानवता की बजाय मानवतावाद का विकल्प बेहतर लगता है.” राज्य के कॉलेजों में ऑनलाइन दाखिले के लिए जरूरी सॉफ्टवेयर तैयार करने वाले इन्फोटेक लैब के बिजनेस मैनेजर किंग्शुक राय कहते हैं, "विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों की सिफारिशों पर धर्म के कॉलम में कई नए विकल्प मुहैया कराए गए हैं. चार साल पहले नान-विलीवर का विकल्प जोड़ा गया था. अब विभिन्न क्षेत्रों से आने वाली सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए अगले साल से मानवता की जगह मानवतावाद का विकल्प मुहैया कराया जाएगा.”

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

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