यह सुनकर हैरत जरूर हो सकती है. लेकिन अपेक्षाकृत प्रगतिशील समझे जाना वाला पश्चिम बंगाल बाली उमर में विवाह के मामले में पूरे देश में अव्वल है.
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बीते छह साल से राज्य में एक महिला ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री होने और सरकार की ओर से इस कुरीति को खत्म करने की दिशा में उठाए गए कदमों के बावजूद समस्या जस की तस है. युवतियों के लिए शादी की कानूनी उम्र 18 साल है. लेकिन राज्य की 40 फीसदी से ज्यादा युवतियों का विवाह इससे पहले ही हो जाता है. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है.
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे यानी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें हैं. इसमें कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में 18 से 29 साल की उम्र वाली 44 फीसदी महिलाओं की शादी कानूनी उम्र से पहले ही हो गई थी. 21 से 29 साल तक के पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 17 फीसदी है.
गांव शहर का अंतर
बाली उम्र में विवाह करने वाली युवतियों के मामले में बंगाल के बाद क्रमशः बिहार, झारखंड और आंध्र प्रदेश का स्थान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में लगभग 44 फीसदी महिलाएं न्यूनतम कानूनी उम्र तक पहुंचने से पहले ही शादी कर लेती हैं. इस मामले में पांच फीसदी आंकड़े के साथ लक्षद्वीप का स्थान सबसे नीचे है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कम उम्र में होने वाली शादियों की तादद समय के साथ घट रही है.
रोजाना 20 हजार नाबालिग बनती हैं दुल्हन
दुनिया के तमाम देशों में बाल विवाह पर कानूनी बंदिशें हैं लेकिन इसके बावजूद रोजाना तकरीबन 20 हजार लड़कियों की शादी गैरकानूनी रूप से होती है. वहीं तकरीबन 10 करोड़ नाबालिग लड़कियों के पास इससे बचने के लिए कोई कानून नहीं है.
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बाल विवाह
वर्ल्ड बैंक और बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल 75 लाख लड़कियां बाल विवाह का शिकार होती हैं और सबसे अधिक बाल विवाह पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में होते हैं.
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जिम्मेदार समाज
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे विवाहों का सबसे बड़ा कारण सामाजिक परंपराएं और धार्मिक प्रथायें हैं जिनके चलते बाल विवाह कानूनों को समाजिक स्वीकारता नहीं मिलती है और प्रथाओं के नाम पर ये समाज में बने रहते हैं.
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शिक्षा और स्वास्थ्य
रिपोर्ट के मुताबिक बाल विवाह लड़कियों को न सिर्फ शिक्षा के अवसरों से वंचित करता है बल्कि उनकी सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं. इन लड़कियों पर घरेलू हिंसा और यौन प्रताड़ना का खतरा भी बना रहता है.
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गरीबी बनी वजह
स्टडी में गरीबी को इसकी एक बड़ी वजह बताया गया है. कई बार अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए भी मां-बाप अपनी लड़कियों की जल्दी शादी करा देते हैं और अफ्रीका में दुल्हन पर तो कीमत भी मिलती है.
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कानून भी नहीं
वर्ल्ड बैंक ने जून 2016 की एक रिपोर्ट में कहा था कि बाल विवाह पर रोक से जनसंख्या वृद्धि दर पर लगाम लगेगी और लड़कियों के शैक्षणिक स्तर में बेहतरी आयेगी. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की तकरीबन 10 करोड़ लड़कियों के पास ऐसे विवाहों से बचने के लिए कानून नहीं है.
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सर्वेक्षण में देश की 5.78 लाख महिलाओं का शामिल किया गया था. इससे उनके यौन आचरण के बारे में भी कई दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं. इसमें कहा गया है कि 25 से 49 आयु वर्ग की 10 फीसदी महिलाओं ने 15 साल की उम्र से पहले ही यौन संबंध बना लिए थे, जबकि 18 साल की उम्र से पहले ऐसा करने वाली महिलाओं की तादाद 38 फीसदी थी. इस मामले में ग्रामीण इलाकों की महिलाएं शहरी महिलाओं के मुकाबले आगे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी महिलाएं ग्रामीण महिलाओं के मुकाबले दो साल देरी से यौन संबंध बनाती हैं.
बीते साल 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबध कायम करने को अपराध की श्रेणी में रखने का फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की एक खंडपीठ ने भी एक रिपोर्ट के हवाले से बंगाल में बाल विवाह के आंकड़ों पर चिंता जताई थी. उसमें कहा गया था कि बंगाल 40 फीसदी ऐसे मामलों के साथ शीर्ष पर है. ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा बढ़ कर 47 फीसदी हो जाता है.
वर्ष 2011 की जनगणना में यह तथ्य सामने आया था कि युवतियों के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है. राज्य में यह औसत 7.8 फीसदी था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसदी) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था.
कन्याश्री
राज्य के खासकर ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह के बढ़ते मामलों और इससे होने वाली चौतरफा छीछालेदर को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के बाद वर्ष 2013 में कन्याश्री नामक एक अनूठी योजना शुरू की थी. इसके तहत आठवीं से 12वीं तक की छात्राओं को सालाना साढ़े सात सौ रुपए की स्कॉलरशिप और 18 की उम्र पूरी होने पर एकमुश्त 25 हजार रुपए के अनुदान का प्रावधान है.
क्या है बाल विवाह की कीमत
कम उम्र में बच्चों की शादी की कुप्रथा के कारण बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास ही प्रभावित नहीं होता बल्कि इससे पूरे समाज और देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है. देखिए समाज को कितना महंगा पड़ता है बाल विवाह.
घट सकती है गरीबी
भारत जैसे विकासशील देशों को बाल विवाह के कारण सन 2030 तक कई खरब डॉलर का नुकसान उठाना होगा. विश्व बैंक के अनुसार, यह कुप्रथा गरीबी मिटाने के वैश्विक प्रयासों की राह में एक बहुत बड़ी रुकावट है. केवल इसे रोकने भर से राष्ट्रीय आय में औसतन एक फीसदी की बढ़ोत्तरी हो सकती है.
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हर 2 सेकंड में, 1 बालिका वधू
इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के अनुसार, हर साल 1.5 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो रही है. यानि हर दो सेकंड में एक नाबालिग लड़की की शादी होती है. नाइजर में 77 फीसदी जबकि बांग्लादेश में 59 फीसदी है बाल विवाह का आंकड़ा.
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सुधरेगा लड़की का जीवन
बाल विवाह पर रोक से तेजी से हो रही जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने में मदद मिलेगी. इससे लड़कियों का स्कूल छूटने में कमी आयेगी और उनकी कमाई के स्तर में भी सुधार आ सकता है. बाल विवाह के कारण महिलाओं की आय औसतन 9 फीसदी कम हो जाती है.
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काफी नहीं है गिरावट
जागरुकता और सक्रिय प्रयासों के चलते विश्व भर में बाल विवाह की दर में कमी तो आयी है. लेकिन चूंकि जनसंख्या उससे भी ज्यादा तेज दर से बढ़ती जा रही है, इसलिए बाल वधुओं की संख्या भी बढ़ी है. जनसंख्या दर में कमी आने से देश के शिक्षा बजट में भी 5 फीसदी से अधिक की बचत होगी.
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बच्चों की पैदाइश
जिन महिलाओं की शादी जल्दी होती है उनके बच्चे भी जल्दी पैदा होने की संभावना रहती है. बांग्लादेश का उदाहरण लें, तो केवल बाल विवाह रोकने भर से देश की प्रजनन दर 18 फीसदी कम की जा सकती है.
कम जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध विकासशील और गरीब देशों की जीडीपी में बढ़ोत्तरी और समृद्धि से पाया गया है. अगर 2015 में बाल विवाह रुक गया होता, तो नेपाल जैसे देश को हर साल करीब एक अरब डॉलर की बचत होती.
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बाल मृत्युदर और विकास
कम उम्र की मांओं के बच्चों में कुपोषण के कारण जान जाने या विकास बाधित होने का खतरा कहीं ज्यादा होता है. 5 साल से कम उम्र में मरने वाले हर 100 में से तीन बच्चों की मांएं कम उम्र की होती हैं. अगर इस आयु वर्ग के बच्चों को बचाया जा सके तो 2030 तक पूरे विश्व को इससे सालाना 98 अरब डॉलर का फायदा होगा. (ऋतिका पाण्डेय)
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इस योजना का मकसद जहां लड़कियों में स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देना हैं वहीं इससे बाल विवाह जैसी कुरीति पर भी अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी. राज्य के 16 हजार से ज्यादा संस्थानों और स्कूलों के जरिए लागू होने वाली इस योजना के तहत फिलहाल 40 लाख से ज्यादा छात्राएं पंजीकृत हैं. सरकार अब इस योजना को स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाने जा रही है. बीते साल संयुक्त राष्ट्र ने हेग (नीदरलैंड्स) में आयोजित एक कार्यक्रम में जनसेवा वर्ग में इस योजना को पुरस्कृत भी किया था.
अलग-अलग वजहें
आखिर राज्य में बाल विवाह के मामलों पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? दरअसल, इसकी कई वजहें हैं. कलकत्ता विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की दो एसोसिएट प्रोफेसरों-अरिजित दत्ता और अनिंदिता सेन ने बीते साल इस मुद्दे पर गहन शोध के बाद सितंबर में एक रिपोर्ट लिखी थी. उसमें उन्होंने दावा किया था कि गरीबी बाल विवाह की अकेली नहीं लेकिन एक अहम वजह है. अरिजित दत्ता कहती हैं, "ग्रामीण इलाकों में शिक्षा को बढ़ावा देकर ही बाल विवाह पर अंकुश लगाया जा सकता है. कन्याश्री परियोजना के तहत धीरे-धीरे ही सही, लेकिन यह काम हो रहा है." वह कहती हैं कि मुर्शिदाबाद समेत राज्य के सबसे पिछड़े तीन जिलों में बाल विवाह और लड़कियों के पढ़ाई बीच में छोड़ने के मामलों में पहले के मुकाबले कमी आई है. सेन कहती हैं, "कन्याश्री की वजह से बाल विवाह के नकारात्मक पहलुओं के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है."
समाजशास्त्री डॉ मनोरंजन माइती कहते हैं कि स्थिति में पहले के मुकाबले मामूली सुधार जरूर हुआ है. लेकिन अब भी सरकार के साथ ही सामाजिक संगठनों को मिल कर इलाके में जागरूकता अभियान शुरू करना और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना जरूरी है. ऐसे सतत प्रयासों के जरिए ही बंगाल के माथे पर लगे इस कलंक को मिटाया जा सकता है.
बाल विवाहः 8 तथ्य
18 साल से कम उम्र में शादी लड़की के आगे बढ़ने के सारे मौके रोक देती है. उसका स्कूल छूट जाता है, कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाती. अधिकतर मामलों में वह घर में ही बंध कर रह जाती है. काम करे भी तो मजदूरी ही कर पाती है.
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दुनिया भर में 70 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल से कम उम्र में हो गई थी. करीब 25 करोड़ की 15 साल से भी पहले.
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यूनिसेफ की सूची में बांग्लादेश का नंबर चौथा और भारत का 12वां है. भारत में बाल विवाह गैर कानूनी होने के बावजूद अभी भी लड़कियों की शादी 18 से कम उम्र में कर दी जाती है.
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अगर अभी की गति बनी रही तो 2011 से 2020 के बीच 14 करोड़ से ज्यादा लड़कियों की 18 से कम उम्र में शादी हो जाएगी.
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पुरानी परंपरा के अनुसार भारत के कई राज्यों में होने वाली शादियां तय तो बचपन में हो जाती थीं लेकिन लड़कियों का गौना बाद में होता था.
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अधिकतर अफ्रीकी देशों में लड़कियों की हालत बहुत खराब है. गरीबी के कारण अक्सर लड़कियों की शादी कर दी जाती है, वह भी अपने से दुगने तिगुने बड़े पुरुष से.
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यूनिसेफ के 2013 के आंकड़ों के मुताबिक बाल विवाह का सबसे ज्यादा प्रतिशत नाइजर में है, जहां 75 फीसदी लड़कियों की शादी 18 से कम उम्र में हो जाती है.
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यमन में हाल ही में एक बच्ची का नादा अल अहद का मामला सुर्खियों में आया था जो बूढ़े व्यक्ति से शादी होने की आशंका से घर से भाग गई थी. और मां बाप से कहा कि शादी करने की बजाय वह जान देना पसंद करेगी.
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जिन लड़कियों की बचपन में शादी हो जाती है वह स्कूल नहीं जा पाती. अल्पायु में गर्भ धारण करने पर प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताओं के कारण वे जान खो देती हैं.