सुकमा में माओवादी हमले में दो दर्जन से ज्यादा सीआरपीएफ जवानों की मौत के बाद माओवाद की समस्या एक बार फिर सुर्खियों में हैं. इस बीच, ममता बनर्जी ने दावा किया है कि इस मामले में केंद्र सरकार बंगाल मॉडल से सीख ले सकती है.
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इस मुद्दे पर केंद्र ने दिल्ली में तमाम माओवाद-प्रबावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई ताकि माओवादियों से निपटने की कोई ठोस रणनीति ईजाद की जा सके. लेकिन इस बैठक से भी कोई ठोस रणनीति सामने नहीं आई.
केंद्र में सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या बीजेपी की, माओवाद की समस्या जस की तस ही रही है. खासकर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश की सीमा पर बसे बस्तर इलाके में तो तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक इस समस्या पर कोई अंकुश नहीं लग सका है. इस बीच छत्तीसगढ़ में भी सरकारें तो बदलीं, लेकिन किसी ने माओवाद की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए कोई असरदार रणनीति नहीं अपनाई. नतीजा सामने है. माओवादी जब चाहे तब सुरक्षा बल के जवानों को घेर कर गोलियों से भुन देते हैं. लेकिन जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों को अब तक कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी है. सुरक्षा बल के जवान मुठभेड़ में जिन माओवादियों को मार गिराने का दावा करते हैं उन पर भी अक्सर विवाद खड़ा हो जाता है. कई मामलों में इस लड़ाई में बेकसूर गांव वालों को ही जान से हाथ धोना पड़ता है. कल की बैठक में भी सबसे ज्यादा चर्चा छत्तीसगढ़ की ही हुई. बीते दिनों हुए हमलों से साफ है कि देश में फिलहाल यही राज्य इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित है. अब केंद्र ने दूसरे राज्यों में तैनात सुरक्षा बलों को भी माओवादियों से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ भेजने का फैसला किया है.
छत्तीसगढ़ के हमलों से खुफिया एजंसियों की नाकामी और राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच तालमेल की कमी का मुद्दा भी सामने आया है. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी यह बात कबूल करते हैं. वह कहते हैं, "सुकमा में जिस पैमाने पर हमला हुआ उसकी पहले से कल्पना तक नहीं थी." सिंह मानते हैं कि बस्तर और सुकमा इलाकों से खुफिया सूचनाएं नहीं मिल पातीं. उन्होंने बैठक में खुफिया सूचनाएं जुटाने और सुरक्षा बलों के बीच आपसी तालमेल बढ़ाने के साथ संचार प्रणाली को और उन्नत करने का भी प्रस्ताव दिया है. केंद्रीय गृह मंत्री का दावा है कि नोटबंदी के बाद माओवादियों को हथियार खरीदने के लिए पैसे जुटाने में भारी दिक्कत हो रही है. हथियार जुटाने के लिए ही सुरक्षा बलों पर इस बड़े पैमाने पर सुनियोजित तरीके से हमले किए जा रहे हैं.
बंगाल मॉडल
पश्चिम बंगाल में भी खासकर झारखंड से सटे तीन जिलों में वर्ष 2010 तक माओवाद की समस्या काफी गंभीर थी. स्थानीय लोगों की सहानुभूति और समर्थन की वजह से सुरक्षा बलों को माओवादी गतिविधियों की कोई सूचना नहीं मिल पाती थी और किसी बड़ी वारदात के बाद वह लोग सीमा पार कर झारखंड के जंगल में स्थित शिविरों में छिप जाते थे. ममता बनर्जी ने वर्ष 2011 में सत्ता में आने के बाद इलाके में शांति बहाल करने की रणनीति के तहत पहले माओवादियों का जनाधार खत्म करने की मुहिम शुरू की. इसके तहत विकास से कोसों दूर रहे ग्रामीण इलाकों में एकमुश्त सैकड़ों परियोजनाएं शुरू की गईं. इलाके में आधारभूत ढांचा भी नहीं के बराबर था. सरकार ने वहां आधारभूत ढांचा विकसित करने के लिए तमाम परियोजनाएं शुरू कीं. इसके साथ ही हथियार डालने वाले माओवादियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए सरकार ने पुनर्वास पैकेज का एलान किया. इसके तहत ऐसे काडरों को पुलिस और होमगार्ड में नौकरियां दी गईं. ममता कहती हैं, "माओवाद पिछड़ेपन की गोद में ही फलता-फूलता है. इसलिए सरकार ने पहले इलाके में आधारभूत ढांचा विकसित करने पर जोर दिया. उसके बाद बेहतर पुनर्वास पैकेज की वजह से सैकड़ों माओवादियों ने हथियार डाल दिए." वह कहती हैं कि इस मॉडल को अपना कर दूसरे राज्यों में भी इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.
सबसे खतरनाक देश
लेगाटम प्रोस्पैरिटी इंडेक्स 2015 ने ऐसे देशों की लिस्ट बनाई, जहां जीवन खतरनाक है. और ये 10 देश लिस्ट में टॉप पर हैं.
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नंबर 10, केन्या
सोमालियाई आतंकवादी संगठन अल शबाब ने चेतावनी जारी की है कि केन्या में हमले किए जाएंगे. केन्या ने सोमालिया में आतंकवादियों के खिलाफ सेना भेजी थी.
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नंबर 9, नाइजीरिया
इस्लामिक आतंकवादी संगठन बोको हराम का आतंक देश के ज्यादातर हिस्सों में महसूस किया जा सकता है. आतंकवादी हमले और बम धमाके लगातार होते हैं.
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नंबर 8, इराक
इराक में एक दशक से ज्यादा समय से युद्ध चल रहा है. जून 2014 से तो गृह युद्ध ने देश को तीन तबकों में बांट दिया है जो एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं.
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नंबर 7, चाड
चाड की सीमा सूडान, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और नाइजीरिया से लगती है. तीनों देश हिंसा से पीड़ित हैं और उस आग की आंच इतनी ज्यादा है कि चाड को भी झुलसा रही है.
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नंबर 6, सूडान
सूडान आमतौर पर एक सुरक्षित देश है. पारंपरिक लिबास में महिलाएं आराम से आ जा सकती हैं. चोरी-चकारी भी नहीं है. लेकिन देश के कुछ हिस्से गृह युद्ध की चपेट में हैं.
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नंबर 5, पाकिस्तान
आतंकवादी हमले पाकिस्तान को दुनिया के सबसे खतरनाक देशों की सूची में 5वें नंबर पर ले आए हैं. हाल यह है कि किसी देश की क्रिकेट टीम पाकिस्तान जाने को तैयार नहीं.
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नंबर 4, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
दुनिया के सबसे गरीब देशों में शुमार यह देश इतनी ज्यादा दिक्कतों से जूझ रहा है कि इंसान के लिए मरना जीने से ज्यादा आसान हो गया है.
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नंबर 3, सीरिया
सीरिया अब एक देश नहीं, एक युद्ध का मैदान है. एक पत्रकार ने अपने बच्चों से जिंदगी के बारे में लिखने को कहा तो एक बच्चे ने लिखा: हम डरे हुए उठते हैं, डरे हुए दिन गुजारते हैं और डरे हुए ही सो जाते हैं.
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नंबर 2, अफगानिस्तान
काबुल में कब धमाका हो जाएगा, यह कोई नहीं बता सकता. सिर्फ आतंकवादी हमले नहीं, अपराध भी इतने बढ़ गए हैं क्राइम इंडेक्स में देश पांचवें नंबर पर है.
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नंबर 1, डीआर कांगो
इस रिपोर्ट के मुताबिक डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कोंगो दुनिया का सबसे खतरनाक देश है. अपहरण, बलात्कार और कत्ल इतना आम है कि कोई भी सुरक्षित नहीं है.
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दूसरे राज्यों की समस्या
लेकिन बंगाल में इस रणनीति से माओवादियों के खिलाफ मिली कामयाबी के बावजूद दूसरे राज्य इस मॉडल को क्यों नहीं अपना रहे हैं और वहां इस समस्या से निपटने में कामयाबी क्यों नहीं मिल रही है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बंगाल मॉडल की कामयाबी के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ही कई मोर्चों पर एक साथ काम करने की रणनीति जरूरी है. माओवादी स्थानीय लोगों के सहयोग और समर्थन के चलते ही सुरक्षा बलों की निगाहों से बचे रहते हैं. पहले उनको गांव वालों से काटना जरूरी है. राजनीतिक पर्यवेक्षक अनिल मरांडी कहते हैं, "बंगाल के माओवाद प्रभावित इलाकों में विकास योजनाओं के जरिए ममता बनर्जी ने पहले गांव वालों को माओवादियों से दूर किया. उसके बाद ही सरकार को इस समस्या से निपटने में कामयाबी मिली." वह कहते हैं कि गांव वालों को काटने के बाद बड़े पैमाने पर आधारभूत ढांचा मुहैया कराने और खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान बढ़ा कर माओवादियों के खिलाफ लड़ाई में जीत हासिल की जा सकती है. इसके साथ ही राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि केंद्रीय बलों पर स्थानीय लोगों पर अत्याचार के आरोप भी लगते रहे हैं. उसके जवानों को अपनी यह छवि सुधारनी होगी. उसके बाद ही गांव वालों का भरोसा हासिल किया जा सकता है. खासकर छत्तीसगढ़ जैसे जंगल से भरे इलाके में सड़कों, स्कूलों और अस्पतालों का बड़े पैमाने पर निर्माण जरूरी है.
लेकिन इसके लिए सबसे पहले जरूरी है एक ठोस रणनीति और केंद्र व संबंधित राज्य सरकारों की इच्छाशक्ति. महज सुरक्षा बलों की तादाद बढ़ा कर इस समस्या से निपटना संभव नहीं है. दिलचस्प बात यह है कि तमाम सरकारें और शीर्ष नेता भी मानते हैं कि माओवाद के खिलाफ जारी जंग को हथियारों से नहीं जीता जा सकता. इसे एक सामाजिक-आर्थिक समस्या के तौर पर देखते हुए इससे निपटने की सही रणनीति तैयार करनी चाहिए. लेकिन हकीकत में होता इसका ठीक उल्टा है. यही वजह है कि देश के विभिन्न राज्यों में यह समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है.
(बारूदी सुरंगों की विरासत कब होगी खत्म)
बारूदी सुरंगों की विरासत कब होगी खत्म
दुनिया भर में बारुदी सुरंगों को बैन करने की कोशिशों के बावजूद अब भी दबे-छिपे तरीके से ये लगभग 50 देशों में सक्रिय हैं. इनके साथ हुई एक भी चूक जिंदगी पर भारी पड़ सकती है. आइयें डाले इन्हें खत्म करने की कोशिशों पर एक नजर.
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न जाने कितनी सुरंगें
अब तक कितनी बारुदी सुरंगों ने जमीन को बर्बाद किया है, यह ठीक-ठीक पता नहीं. एक अनुमान के मुताबिक यह संख्या करोड़ों में होगी. युद्ध के बाद गोली बंदूकों की आवाजें भले ही नहीं आतीं, लेकिन सुरंगों से खतरा जीवन और जमीन पर बना रहता है. साल 1997 की ओटावा संधि के फिलहाल 162 देश सदस्य है. इसका उद्देश्य बारुदी सुंरग के उपयोग, संग्रहण, उत्पादन और हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाना है.
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मिलेगा सुरंगों का सुराग
डेंडिलियन बीज की तरह नजर आने वाले माइन काफॉन या माइन एक्सप्लोडर को अफगानी मसूद हस्सानी ने तैयार किया है. इसकी मदद से बारुदी सुरंग का पता लगाया जा सकता है. इसमें लगी 175 प्लास्टिक प्लेटें, बांस के खंभों से जुड़ी होती हैं. आदमी के औसत वजन और लंबाई के आधार पर इसे तैयार किया जाता है. यह खर्चीला भी नहीं होता और हवा से चलता है.
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और विकास होना बाकी
बचपन में हवा वाले वाहनों से खेलने वाले हस्सानी ने अपने उस अनुभव से प्रेरणा लेकर माइन काफॉन को तैयार किया है. डच रक्षा मंत्रालय की सहायता से बनी यह डिवाइस फिलहाल प्रोटोटाइप और परीक्षण प्रक्रिया से गुजर रही है. शोध दल अब भी इस पर काम कर रहा है. हस्सानी के मुताबिक इस डिवाइस ने वैश्विक चर्चा अवश्य छेड़ी है.
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दस साल में सुरंगों से मुक्ति
डिजाइनर भी माइन काफॉन ड्रोन पर काम कर रहे हैं. इस ड्रोन के जरिये छिपे हुए हथियारों का सेंसर के इस्तेमाल से पता लगाया जा सकता है. हस्सानी के मुताबिक यह अविष्कार अभी ऑप्टिमाइजेशन के चरण में है. इसे सुरक्षित, तेज और मौजूदा तकनीकों से कम खर्चीला बताया जा रहा है. इससे पूरी दुनिया अगले दस सालों में बारुदी सुंरगों से मुक्त हो सकती है.
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खतरे की आहट
बेल्जियम के एनजीओ अपोपो (APOPO) चूहों की ऐसी प्रजाति का संरक्षण कर रहा है, जिसे दुनिया भर में इन खतरनाक डिवाइसेज का पता लगाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है. इनकी सूंघने की क्षमता अधिक होती है और इन्हें टीएनटी की पहचान करने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है. एनजीओ का दावा है कि अब तक इस काम के चलते किसी चूहे की जान नहीं गई है.
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कु्त्ते भी देते साथ
इंसानों के सबसे वफादार कुत्ते भी सुरंग पहचानने में मदद करते हैं. कई महीनों के परीक्षण के बाद ये भी ऐसे विस्फोटकों की पहचान कर पाते हैं. मार्शल लेगेसी इंस्टीट्यूट ने अपना डॉग प्रोग्राम साल 1999 में शुरू किया था. तब से लेकर अब तक ये कुत्ते करीब 11 हजार एकड़ सुरंग वाली जमीन की खोज कर चुके हैं. दुनिया के 24 देशों में 900 कुत्ते अब भी काम कर रहे हैं.
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मशीन से सफाई
टैंक और कंबाइन हार्वेस का मिला जुला रूप लगने वाली इस मशीन में 72 चेन लगे हैं. यह आर्डवर्क माइन क्लीयरेंस मशीन जमीन पर जहां से गुजरती है, वहां अपने संपर्क में आने वाली सुरंगों पर खत्म कर देती है. हालांकि इसमें न तो मशीन को नुकसान होता है और न ही मशीन चालक को. यह मशीन रोजाना एक फुटबाल फील्ड के बराबर इलाका सुरंग मुक्त बनाती है.
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बना रहता है खतरा
बारुदी सुरंग को अगर एक बार बिछा दिया गया तो इसके सक्रिय रहने का खतरा अगले 50 सालों तक बना रहता है. इसके संपर्क में आने से न केवल शारीरिक नुकसान पहुंचता है बल्कि ये विस्थापित लोगों और शरणार्थियों की वापसी में भी बाधा बनती है. साथ ही ये विकास और पुनर्निमाण की प्रक्रिया को भी धीमा करती हैं.
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जीवन बदलने वाले घाव
चीन और रूस सहित अब भी 11 देशों ने इन बारुदी सुरंग का उत्पादन जारी रखा है. हालांकि ओटावा संधि के बाद इस क्षेत्र में खासी प्रगति हुई है. लेकिन अब भी चुनौतियां बरकरार हैं. क्योंकि जब तक ये जमीन में रहेंगी जिंदगियों पर खतरा बना रहेगा, जानें जाती रहेंगी और शांति भी कायम नहीं हो सकेगी.