बंटवारे की रेखा लाखों औरतों की देह से गुजरी
११ अगस्त २०१७1947 और 1948 के बीच सरला दत्ता को एक पाकिस्तानी सैनिक ने बंधक बना कर रखा. तब उनकी उम्र 15 साल थी. वह आज भी उस वक्त मिली तकलीफों को याद कर सिहर उठती हैं. तब धार्मिक हिंसा ने उग्र रूप धारण कर लिया था और उन्हें पुरुषों की लड़ाई में महिला होने की कीमत चुकानी पड़ी थी. सरला की मां का कम उम्र में ही देहांत हो गया था. वह कश्मीर के मीरपुर में अपने एक पारिवारिक मित्र के घर में रहती थीं और उनके पिता जम्मू के रेडियो स्टेशन में संगीतकार के रूप में काम करते थे. जो वहां से करीब 100 किलोमीटर दूर था.
जब हिंदुओं और सिखों की बस्ती पर मुसलमानों ने कब्जा किया तो वह अपना घर छोड़ कर भाग निकलीं. उन लोगों को वहां से जाने की धमकियां दी जा रही थीं कि जो भी बचा उसकी हत्या कर दी जाएगी. अब नई दिल्ली में रहने वाली सरला दत्ता कहती हैं, "उस रात जब हम भागे, तब हमने खेतों में पड़े बच्चों को देखा, जो रो रहे थे. पुरुष अपने बच्चों को छोड़ दे रहे थे और महिलाओ को डर था कि उनके साथ अगर तेजी से नहीं चलीं तो पीछे छूट जाएंगी. बहुत सी महिलाएं कमजोर भी थीं. इंसानियत बिल्कुल खत्म हो गयी थी. बहुत बुरा वक्त था."
अगली सुबह जब वो जंगल में छिपते छिपाते जा रहे थे तभी एक हथियारबंद गुट ने उन पर हमला किया. लड़कों और पुरुषों को गोली मार दी गयी, बूढ़ों को छोड़ दिया गया और महिलाओं को उन्होंने अगवा कर लिया. सरला को कालू नाम के एक सैनिक ने बंधक बना लिया. वह बताती हैं, "चार दिन तक पैदल चलने के बाद हम उसके गांव पहुंचे. मुझे एक मुस्लिम नाम अनवारा दे दिया गया और उसने मुझे कुरान पढ़ने को कहा. मुझसे कहा गया कि मेरी कालू के छोटे भाई से शादी होगी." अपनी कहानी सुनाते सुनाते वह सबूत के तौर पर अचानक कुरान की आयतें सुनाने लगीं.
बंधक रहने के दौरान उनका जीवन बहुत मुश्किल था. उन्हें जंगल से लकड़ियां चुनने और कुएं से पानी भरने जाना पड़ता था. वह बताती हैं, "गांव में मुझे पता चला कि काफिर महिलाओं का यौन शोषण किया जाता था और उन्हें जबरन बीवी बना कर रखा जाता था." उनका कहना है कि हिंदुस्तान में मुस्लिम महिलाओं के साथ हुए अपराधों का बदला लेने के लिए बलात्कार पीड़िताओं को पाकिस्तानी शहरों में नंगा घुमाया जाता था. सरला के मुताबिक कई महिलाओं ने तो जब उन पर हमला हुआ कुएं में कूद कर जान दे दी.
सात महीने तक कैद में रहने के बाद उनके आजाद होने की उम्मीद तब जगी जब भारत पाकिस्तान की सरकारें इस बात पर रजामंद हुईं कि कब्जे में रखी गयीं महिलाओं को उनके परिवारों में वापस लौटाया जाएगा. सरला ने पड़ोस की एक लड़की को कुछ गहने दे कर उससे पुलिस को अपने बारे में बताने के लिए कहा. सरला बताती हैं, "कालू मोर्चे पर गया था और उसकी बीवी ने मुझे अनाज के गोदाम में रखा था. जब अधिकारी आये और पुकार लगायी कि क्या यहां कोई काफिर महिला है तो मैंने हाथ हिला कर उन्हें बताया. उन लोगों ने मुझे बाहर निकाला. कालू की बीवी तो सन्न रह गयी." उम्र के आठवें दशक में पहुंच चुकी सरला उस पल को याद कर आज भी चहक उठती हैं.
उस इलाके से करीब 50 महिलाओँ को आजाद कराया गया लेकिन उनकी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं. सरला दत्ता और कुछ दूसरी महिलाओं के साथ अधिकारियों ने भी मीरपुर ले जाने के दौरान बलात्कार किया. वहां से उन्हें सरकार के ठेकेदार अब्दुल मजीद के पास ले जाया गया. तब तक उनकी तादाद 500 के करीब पहुंच गयी थी. मजीद ने महिलाओं की अपनी बेटियों की तरह हिफाजत की और उन्हें महिलाओं पर अत्याचारों के लिए कुख्यात रहे पठानों के हमले से बचाया. बहुत सी महिलाओं को भारत में अपने रिश्तेदार मिल गये लेकिन सरला दत्ता के पास अपने पिता का कोई पता नहीं था. वह बताती हैं, "करीब आठ महीने के बाद हमें बताया गया कि हमें जम्मू ले जाया जाएगा. हम सारी लड़कियां झूमने और नाचने लगीं. काली अंधेरी रात खत्म हो गयी थी. हमारी आजादी और परिवार के साथ रहने के दिन आ गये थे. हम सबने नारा लगाया अब्दुल मजीद जिंदाबाद. विभाजन के दौरान सारे लोग बुरे नहीं थे. मजीद तो हमारे लिए भगवान जैसा था."
सीमा पार करने के बाद इन सबको लाइन में खड़ा कर गिनती की गयी और उतनी ही महिलाओं को पाकिस्तान जाने के लिए आजाद किया गया. सरला कहती हैं, "मेरे रिश्तेदारों ने मुझे पहचान लिया. यह एक चमत्कार जैसा था मैं बिना किसी टूट फूट के सुरक्षित पहुंच गयी थी, जबकि मेरी उम्र काफी कम थी"
इतिहासकार बताते हैं कि 1952 तक कम से कम 25 हजार महिलाओं के बारे में या तो पता चला या फिर उन्हें बल पूर्वक आजाद कराया गया और उनमें से ज्यादातर को उनके रिश्तेदारों के पास पहुंचा दिया गया. बाद में सरला दत्ता ने सेना के एक क्लर्क के साथ शादी कर ली और फिर दिल्ली में बस गयीं. तकलीफें झेलने के बाद भी उनके मन में पाकिस्तान के लिये कोई दुर्भावना नहीं है. 1980 के दशक में तो वह दो बार पाकिस्तान घूम भी आयीं.
एनआर/एके (डीपीए)