आम तौर पर बंदर आईना देख कर समझ नहीं पाते कि उसमें उन्हीं का प्रतिबिंब नजर आ रहा है. अब चीन की एक शोध टीम ने यह साबित कर दिया है कि अगर कोशिश की जाए, तो बंदरों को यह सिखाया जा सकता है. शोध के दौरान बंदरों के चहरे पर सियाही से एक निशान बनाया गया. वे इस निशान को आईने में ही देख सकते थे. इस 'मिरर टेस्ट' को पास करने के लिए उन्हें चहरे पर लगे इस निशान को छूना था. ऐसा करने पर इनाम के तौर पर उन्हें फल दिए जाते.
शुरू में लेजर किरणों का सहारा लिया गया. निशान वाली जगह पर जब लेजर के कारण खुजली होने लगती, तो बंदर उसे छू लेते और आईने में देख कर समझ जाते. कुछ हफ्तों तक ऐसा करने के बाद लेजर के इस्तेमाल को बंद कर दिया गया. इसके बावजूद बंदर आईने में देख कर सियाही के निशान को पहचान लेते. फलों और शाबाशी के लालच में उनका ध्यान केंद्रित रहता.
चतुर है इंसान
शंघाई की न्यूरो वैज्ञानिक नेंग गौंग बताती हैं कि आईना देखने की क्षमता हर प्राणी में नहीं होती है, लेकिन इंसान दो साल की उम्र से ही अपने प्रतिबिंब को पहचानने लगते हैं, "आईने में खुद को पहचानना आत्मचेतना की निशानी है, यह इस बात का प्रमाण है कि इंसान कितने बुद्धिमान हैं." नेंग गौंग ने कहा कि बंदर खुद को इसीलिए नहीं पहचान पाते हैं क्योंकि उनमें आत्मचेतना की कमी होती है, "हमने अपनी ट्रेनिंग से यह दिखाने की कोशिश की है कि बंदरों में मूलभूत हार्डवेयर तो मौजूद है लेकिन उन्हें सही सॉफ्टवेयर की जरूरत है, जो ट्रेनिंग के जरिए मुमकिन है."
दिमाग की कुछ बीमारियों में इंसान की खुद को पहचानने की क्षमता खत्म हो जाती है. ऑटिज्म, अल्जाइमर और स्किजोफ्रीनिया में ऐसा होता है. चीनी टीम को उम्मीद है कि इन बीमारियों में भी इस तरह की ट्रेनिंग से फायदा मिल सकता है.
आईबी/एसएफ (रॉयटर्स)
कुत्ते, बंदर या मधुमक्खियां भी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. वैज्ञानिकों को विश्वास है कि जानवरों का ये विज्ञान इंसान के लिए भी उतना ही फायदेमंद हो सकता है.
तस्वीर: imago/INSADCOइस चिंपाजी की तरह के बंदर क्या करते हैं जब उन्हें दस्त, मलेरिया या परजीवियों से होने वाली कोई और बीमारी होती है. वे पेड़ों से मिलने वाली दवाओं की मदद लेते हैं. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि चिंपाजी एसपिलिया नाम का पौधा ढूंढने के लिए काफी दूर तक जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaएसपिलिया की पत्तियां पेट खाली करने में मदद करती हैं. इनके कारण पेट के कीड़े निकल जाते हैं. इससे बीमारी ठीक हो जाती है. तंजानिया में लोग भी इस पेड़ का दवा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
तस्वीर: Mauricio Mercadante /CC BY-NC-SA 2.0बंदरों की पसंदीदा काली खुमानी, विटेक्स डोनियाना भी है. कहा जाता है कि सांप के काटने पर यह काफी प्रभावशाली होती है. पीतज्वर जैसी वायरल बीमारी के अलावा मासिक चक्र के दौरान होने वाले दर्द को भी ये कम करता है.
तस्वीर: Ema974/CC-BY-SA-3.0भेड़ के बच्चे अपनी मां की खाने पीने की आदतों पर गौर करते हैं. दो खुर वाले प्राणी पेट में कीड़े होने पर ऐसे पौधे चरते हैं जिसमें टैनिन एजेंट बहुत ज्यादा होता है. उटा की स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि जब इन्फेक्शन खत्म हो जाता है तो वो फिर से आम पौधे चरने लगते हैं.
तस्वीर: Fotolia/wyssuफलों पर होने वाली छोटी छोटी मक्खियां अल्कोहल की मदद से बढ़ती हैं. अगर कोई परजीवी पास में हो तो मादा मक्खी अंडे सड़े हुए फलों में दे देती है. लार्वा अल्कोहल वाले इन फलों को खाते हैं और बढ़ने वाले परजीवी मारे जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaखूब सारे रेशों वाले इस कीड़े के पास भी दवाई है. अगर कोई परजीवी इस पर हमला कर दे तो वह ऐसे पौधे की पत्तियां खाता है, जिसमें बेसिक नाइट्रोजन परमाणु वाला रसायन अल्कोलॉयड होता है.
तस्वीर: picture alliance/ZUMA Pressये तितली अंडों को बचाने के लिए रेशम के फूलों पर अंडे देती हैं. इसमें कार्डेनोलाइड नाम के स्टेरॉयड की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जो अंडे खाने वाले जीवों या परजीवियों के लिए जहरीला होता है.
तस्वीर: imago/INSADCOशहद बनाने वाली मधुमक्खियां प्राकृतिक रेजिन बनाती हैं जो उनकी कॉलोनी के लिए बहुत अहम रहता है. छत्ते की खाली जगहें सील करने के लिए प्रोपोलिस बनाती हैं. इनके कारण छत्ते में बीमारियां नहीं फैलतीं. इंसान के लिए भी ये प्राकृतिक रेजिन एंटीबैक्टीरियल, दर्द और सूजन कम करने वाला होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaमेक्सिको में चिड़िया या गोरैया सिगरेट की बट के आस पास घोंसला बनाती है. निकोटीन के कारण वे कीड़ों के प्रकोप से बच जाते हैं. हालांकि शोधकर्ता यह भी कहते हैं कि इन बटों के कारण पक्षियों की सेहत पर असर होता है.
तस्वीर: ISNAअक्सर आपने देखा होता कि बिल्लियां या कुत्ते घास खाने लगते हैं. इससे पेट में गड़बड़ी कम हो जाती है. घास वैसे भी उल्टी में मदद करती है.
तस्वीर: Fotolia/Discovodछोटे छोटे कोआला भालू कई तरह के नीलगिरी की पत्तियां और टहनियां खाते हैं. अगर कोई गलत पत्ती खा लें तो फिर बाद में वो मिट्टी खाते हैं. इससे जहरीला पदार्थ उनके शरीर में कम हो जाता है.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Greg Woodइन बंदरों के पास मच्छरों से बचने के लिए कोई मच्छरदानी तो नहीं इसलिए ये कीड़ों और मच्छरों से बचने के लिए खास पदार्थ अपने शरीर पर लगा लेते हैं.
तस्वीर: Mauricio Lima/AFP/Getty Imagesये बंदर कनखजूरे का जहर अपने शरीर पर लगाते हैं. इससे मच्छर मक्खियां दूर रहते हैं. सालों के निरीक्षण के बाद जानवरों ने ये तरीके सीखे हैं.
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