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बंद हुआ सबसे पुराना फोटो स्टूडियो

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता२१ जून २०१६

कोलकाता में मौजूद दुनिया का सबसे पुराना फोटो स्टूडियो आखिरकार बंद हो गया है. गुलामी से आजादी तक भारत के इतिहास पर नजर रखने वाला यह स्टूडियो तकनीकी क्रांति और घाटे की भेंट चढ़ गया.

तस्वीर: Bourne & Shepherd Studio

कोलकाता में मौजूद दुनिया का सबसे पुराना फोटो स्टूडियो आखिरकार बंद हो गया है. गुलामी से आजादी तक भारत के इतिहास पर नजर रखने वाला यह स्टूडियो तकनीकी क्रांति और घाटे की भेंट चढ़ गया.

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित खंडहर जैसी इस इमारत को देख कर इसका गौरवशाली इतिहास और अतीत समझना मुश्किल है. लेकिन इसे दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाला फोटो स्टूडियो होने का गौरव हासिल है. वर्ष 1840 में स्थापित इस स्टूडियो के फोटोग्राफरों ने देश में अपने 176 साल लंबे सफर के दौरान कई दुर्लभ और ऐतिहासिक क्षणों व घटनाओं को अपने कैमरे में कैद कर उनकी यादों को हमेशा के लिए अमर कर दिया था. लेकिन इस सप्ताह इस बोर्न एंड शेफर्ड नामक इस स्टूडियो का शटर हमेशा के लिए डाउन हो जाने के बाद अब वह सब इतिहास बन चुका है.

सैमुएल बोर्नतस्वीर: Bourne & Shepherd Studio

स्थापना

वर्ष 1839 में फ्रांस और लंदन में व्यावसायिक फोटोग्राफी शुरू होने के एक साल बाद विलियम हावर्ड ने कलकत्ता में इस स्टूडियो की स्थापना की थी. अब भारतीय जीवन निगम की ओर से इस साल अप्रैल में उसकी इमारत के अधिग्रहण के बाद इस हफ्ते यह स्टूडियो भी इतिहास का हिस्सा बन गया. इस स्टूडियो ने जो तस्वीरें खींची थी उनमें सबसे मशहूर तस्वीर रामकृष्ण परमहंस की है जो स्वामी विवेकानंद के कहने पर वर्ष 1886 में उनकी मौत के कुछ महीने पहले खींची गई थी. उसके अलावा भी इसने कोलकाता के एक कस्बे से लेकर ब्रिटिश राज की राजधानी और फिर देश का महानगर बनने के सफर को काफी करीब से देखा और कैमरे में कैद किया था. वर्ष 1863 में सैमुएल बोर्न और चार्ल्स शेफर्ड ने विलियम के साथ हाथ मिलाया था. तब इस स्टूडियो का नाम हावर्ड, बोर्न एंड शेफर्ड रखा गया. वर्ष 1866 में हावर्ड के जाने के बाद यह बोर्न एंड शेफर्ड हो गया. वर्ष 1870 में बोर्न भी भारत छोड़ कर चले गए. वर्ष 1911 में किंग जार्ज पंचम और क्वीन मैरी के भारत के सम्राट और साम्राज्ञी के तौर पर राज्यभिषेक के मौके पर आयोजित दिल्ली दरबार में आफिसियल फोटोग्राफर होने का गौरव इसी स्टूडियो को मिला था.

वर्ष 1930 से 64 के दौरान कई बार इसका मालिकाना हक बदला. उसके बाद मौजूदा मालिक जयंत गांधी ने इसे अपने हाथों में लिया. जयंत बताते हैं, "डिजिटल तकनीक में आए क्रांतिकारी बदलाव की वजह से यह स्टूडियो घाटे का सौदा बन गया था. बावजूद इसके वह इसे चलाते रहे. लेकिन अब बढ़ती उम्र के चलते उनके लिए इस स्टूडियो को चलाना संभव नहीं है."

हुगली तट की ऐतिहासिक तस्वीरतस्वीर: Bourne & Shepherd Studio

दरअसल, वर्ष 1991 में लगी भयावह आग के बाद यह स्टूडियो दोबारा कभी उबर ही नहीं सका. उस दौरान स्टूडियो की पूरी लाइब्रेरी जल कर राख हो गई थी. उस समय तमाम अहम तस्वीरें और निगेटिव जिस सेफ में रखी थी उसे जल जाने के बाद खोला ही नहीं जा सका. उस आग और फोटोग्राफी के फिल्म से डिजिटल में बदलने की प्रक्रिया से यह स्टूडियो धीरे-धीरे बंद होने के कगार पर पहुंचने लगा था. वर्ष 2008 में इसने ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों की प्रिटिंग बंद कर दी थी.

पहले यह स्टूडियो साढ़े चार हजार वर्गफीट में फैला था. लेकिन 1991 की आग के बाद वह तीन हजार वर्गफीट तक सिमट गया. वर्ष 1962 से ही यह स्टूडियो 30 पैसे वगर्फीट की दर से हर महीने किराये के तौर पर महज 900 रुपये का भुगतान कर रहा था. अब इसे अधिग्रहण करने वाले जीवन बीमा निगम ने कहा है कि अगर कोई नया मालिक इसका अधिग्रहण कर बाजार दर पर किराया देना कबूल करे तो यह स्टूडियो चलता रह सकता है. लेकिन उस इलाके में मौजूदा बाजार भाव तीन लाख प्रति वर्गफीट है. इसलिए इसकी संभावना नहीं के बराबर ही है.

दुख जताया

महानगर के पुराने फोटोग्राफरों और साहित्यप्रेमियों ने इस स्टूडियो के बंद होने पर गहरा दुख जताया है. इसमें आग लगने पर फिल्मकार सत्यजित रे काफी व्यथित हुए थे. वह और गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर अक्सर इस स्टूडियो में जाते थे. जाने-माने लेखक शंकर कहते हैं कि विश्व के बेहतरीन स्टूडियो में शुमार बोर्न एंड शेफर्ड का बंद होना दुखद है. साहित्यकारों का कहना है कि यह स्टूडियो अपने आप में एक इतिहास है. सरकार या किसी संगठन को इसका अधिग्रहण कर लेना चाहिए था. लेकिन इनलोगों का दर्द उस स्टूडियो को दोबारा शुरू करने के लिए काफी नहीं है. ऐसे में यह स्टूडियो भी कोलकाता और ब्रिटिश राज के इतिहास के साथ इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह गया है.

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