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अपराध

बंधुआ मजदूरी के केस में सबसे बड़ा मुआवजा

३ मई २०१९

1976 में बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अभियान शुरू करने वाले भारत में आज भी गुलाम मजदूरों को जिला प्रशासन के सामने साबित करना पड़ता है कि वे बंधुआ मजदूर हैं. क्या रेहाना बेगम की जीत, बंधुआ मजदूरों को साहस दे सकेगी?

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तस्वीर: imago/ZUMA Press

रेहाना बेगम काम की तलाश में दिल्ली आईं. इसके बाद क्या हुआ यह बताते हुए वह कहती हैं, "मालिक ने मुझे नौकरी और डेरा देने का वादा किया. उसने सार्वजनिक शौचालय के बगल में एक झोपड़ी बना दी और मुझसे कहा कि किराया देने के बदले मुझे टॉयलेट साफ करना होगा. मैं हर रोज 16 घंटे काम करने लगी लेकिन तीन साल तक मुझे कोई पैसा नहीं दिया गया."

रेहाना के मुताबिक, "मालिक ने कहा कि अगर मैं टॉयलेट साफ नहीं करुंगी तो वह मुझे कभी कोई पैसा नहीं देगा. मुझे डर लगा कि अगर मैंने ये काम छोड़ा तो कहीं मैं अपनी सारी कमाई न खो दूं. मुझे पता नहीं था कि बंधुआ मजदूरी क्या होती है."

2016 में भारत सरकार ने बंधुआ मजदूरी झेलने वाले लोगों के लिए मुआवजे और पुनर्वास की योजना लागू की. बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना 2016 आने के बाद कई संस्थाओं ने जागरुकता अभियान भी शुरू किए. इसी दौरान रेहाना की मुलाकात कार्यकर्ताओं से हुई. रेहाना के मुताबिक उसे अगर बंधुआ मजदूरी के खिलाफ जागरुकता फैलाने वाले कार्यकर्ता नहीं मिले होते, तो आज भी वह बिना पैसे के टॉयलेट साफ कर रही होती.

गारमेंट इंडस्ट्री में भी बंधुआ मजदूरी के मामलेतस्वीर: imago/imagebroker

बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय अभियान छेड़ने वाले समिति के संयोजक निर्मल गोराणा कहते हैं, "जब हम उससे पहली बार मिले तो वह इस बात से दुखी थी कि लोग टॉयलेट को कितना गंदा करके छोड़ते हैं. उसने बताया कि कई सालों से उसे इस काम के बदले पैसा भी नहीं मिला है."

इसके बाद ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के वकीलों ने रेहाना की मदद की. उसने वह काम छोड़ दिया. काम छोड़ा तो वह झोपड़ी भी चली गई जिसमें रेहाना अपने पति के साथ रहती थी. बकाया पाने के लिए रेहाना ने अदालत का रुख किया. इससे नाराज मालिक ने रेहाना के पति की चाय की रेहड़ी तोड़ दी. पति बेरोजगार हो गया. गोराणा कहते हैं, "यह शर्मनाक है कि बचाए गए कामगारों को मुआवजे के लिए अदालत जाना पड़ता है."

दो साल की कानूनी लड़ाई के बाद रेहाना बेगम को मुआवजे के तौर पर 1.80 लाख रुपये मिले हैं. इसकी जानकारी निचली अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट को दी है. रेहाना के मुताबिक, मुआवजा बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन फिर भी इससे मदद मिलेगी, "अब मैं आजाद हूं लेकिन मुझे नौकरी चाहिए. मुझे एक घर चाहिए."

2016 की योजना के बाद भारत में बंधुआ मजदूरी के मामले में यह सबसे ज्यादा मुआवजा पाने वाला मामला है. बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना 2016 के मुताबिक, बंधुआ मजदूरी कर चुके लोग मुआवजे के हकदार हैं, लेकिन पूरा भुगतान तभी होगा जब अदालत का फैसला आएगा. भारत में अदालत का फैसला आने में कई साल गुजर सकते हैं.

कृषि क्षेत्र में भी काफी बंधुआ मजदूरतस्वीर: Reuters/A. Verma

इसके साथ ही योजना के तहत मुक्त कराए गए वयस्क बंधुआ मजदूरों को एक लाख रुपये से तीन लाख रुपये तक की राशि उपलब्ध कराई जानी है. यह राशि नगद और सीधे उनके बैंक खाते में जारी करने का प्रावधान है. इसके अलावा मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूरों के लिए घर का निर्माण, खेती के लिए जमीन का आवंटन या आजीविका चलाने के लिए अन्य लाभ दिए जाने के प्रावधान पहले से हैं. कौन बंधुआ मजदूर की श्रेणी में आता है और कौन नहीं, यह तय करना जिला दंडाधिकारी के दायरे में आता है.

भारत में बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए पहली बार कानून 1976 में बना था. कानून में बंधुआ मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया था. साथ ही बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों के आवास व पुर्नवास के लिए दिशा निर्देश भी इस कानून का हिस्सा हैं. लेकिन चार दशक बाद भी बंधुआ मजदूरी से जुड़े मामले आते रहते हैं. कई शोध रिपोर्टों के मुताबिक भारत में ईंट भट्ठों, मिलों, घरेलू काम काज, देह व्यापार और कृषि क्षेत्र में बंधुआ मजदूरों की संख्या अच्छी खासी है.

(बाल मजदूरी के सहारे चलने वाले उद्योग)

ओएसजे/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंनडेशन)

 

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