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बचपन की राह में टचस्क्रीन की दीवार

२७ अप्रैल २०१२

जिन उंगलियों को यह नहीं पता कि छूना किसे कहते हैं वो टेबलेट पीसी के टचस्क्रीन से खेल रही हैं. स्मार्टफोन और टेबलेट ने जिंदगी आसान की है या मुश्किल अभी इस पर बहस चल ही रही है कि एक नया सवाल नन्हे बच्चों ने उठा दिया.

तस्वीर: dapd

पैरिस के एक घर में 22 महीने का जॉर्ज छोटी सी नीली कुर्सी पर बैठ सामने रखी मेज पर रखे बड़ों के खिलौने से खेल रहा है. नन्ही नन्ही उंगलियां आईपैड में दिख रहे बत्तखनुमा आईकन मू बॉक्स को छूती हैं. तरह तरह के जनवर चहकते, भौंकते और दहाड़ते सामने आते हैं. जॉर्ज की मां ऑरेली मेर्सियर के लिए आईपैड की एक बड़ी उपलब्धि यह है कि उनके मासूम की दुनिया का विस्तार हो रहा है. वह आइपॉड में आभासी कीबोर्ड से पियानो का संगीत बजाता है और इसी तरह के कई और खेलों का मजा लेता है. जॉर्ज की मां कहती हैं, "यह एक ऐसी खिड़की है जिससे होकर हजारों चीजें हमारे घर में आ रही हैं, सबकुछ बहुत छोटे में समा गया है."

जॉर्ज जैसे बच्चों की दिलचस्पी से उत्साहित कंपनियां बड़े जोर शोर से नन्हे मुन्नों के लिए एप्लिकेशन बनाने में जुट गई हैं. हालांकि टेबैलेट पीसी और स्मार्टफोन जैसी चीजें इतने छोटे बच्चों के हाथ में देने के बारे में मनोचिकित्सकों और अभिभावकों की राय बंटी हुई है. बच्चों के विकास में इन शुरूआती सालों की अहम भूमिका को देखते हुए यह सवाल उठाना लाजमी है कि क्या उनके हाथों में ऐसे खिलौनों को दिया जाना चाहिए जो बड़ों की भी नींद उड़ा रहे हैं.

न्यूयॉर्क में पिछले महीने इसी मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई. "बेबी ब्रेन्स एंड वीडियो गेम्स" नाम से हुई इस चर्चा में अभिभावकों से अनुरोध किया गया कि बच्चों के सामने इस तरह के उपकरणों का इस्तेमाल सीमित कर दें. चर्चा में शामिल वारेन बकलाइटनर ने कहा, "आप बच्चों के हाथ से यह चीजें नहीं छीन सकते." बकलाइटनर चिल्ड्रेन्स टेक्नोलॉजी रीव्यू पत्रिका के संपादक हैं.

जॉर्ज सप्ताह में करीब एक घंटा आईपैड के साथ बिताता है. पहले 10 महीने तक उसे निशान लगाने और फिर उसे हल्के से छूने को कहा गया. जॉर्ज के मां बाप दोनों ग्राफिक आर्टिस्ट हैं. उन्होंने हाल ही में पहला एप्लिकेशन बनाया जो तस्वीरों को स्क्रीनशॉट में बदल देता है. वैसे तो यह बड़ों के लिए बनाया गया है लेकिन मर्सियर जॉर्ज को इसके साथ खेलने देती हैं. मासूम उंगलियों की छुअन से तस्वीरे पूरे स्क्रीन पर भर जाती हैं. अब उन्हें मासूमों की पहचान का कुछ कुछ अंदाजा हो गया है जैसे कि चटकीले रंग, आवाजें, बड़े बटन और सरलता. जॉर्ज के मां बाप बच्चों के लिए दूसरे एप्लिकेशन तैयार करने में जुटे हैं. मर्सियर ने कहा, "हम जॉर्ज को परीक्षण करने वाले की तरह इस्तेमाल करेंगे, हम उसे अच्छी सलाह देने वाला मान रहे हैं."

न्यूयॉर्क में सीएनएन की तकनीकी जानकार केटी लिनेन्डॉल तो एप्लिकेशन को बच्चों की सबसे बढ़िया आया मानती हैं. वह अपनी भांजी को क्रेजी पियानो या फिर क्रायोला कलर स्टूडियो एचडी के साथ बड़ी खुशी से वक्त बिताते देखती हैं. लिंडॉल कहती हैं, "अगर आपके पास सरल और ऐसा एप्लिकेशन है जिसे आसानी से समझा जा सके तो बच्चे उसके साथ खेलते हैं."

हालांकि कुछ मां बाप की राय है कि कंप्यूटर की दुनिया बच्चों को पारंपरिक तरीके से पलने बढ़ने के रास्ते में आ रही है. बोस्टन में रहने वाली सारा रॉमैन एप्स ने बताया कि उनका दो साल का बेटा, "कागज पर क्रेयॉन्स के साथ तस्वीर बनाना पसंद करता है लेकिन जब तस्वीरें चलती नहीं तो वह परेशान हो जाता है. मुझे लगता है कि वीडियो और एनिमेशन की लगातार फैल रही संस्कृति की वजह से ऐसा हो रहा है." पैरिस में रहने वाले बच्चों के मनोवैज्ञानिक सेर्गे टिसरॉन यह सब देख कर परेशान हो जाते हैं. उनका मानना है कि एप्लिकेशन बच्चों को थ्री डी स्पेस ठीक से समझने की राह में बाधा बन रहे हैं जो उनके विकास के लिए जरूरी है. टिसरॉन ने कहा, "हम जानते हैं कि बच्चों के लिए सारी इंद्रियों का इस्तेमाल करना जरूरी है." हालांकि वो तकनीक के खिलाफ नहीं हैं. 64 साल के टिसरॉन खुद वीडियो गेम के बड़े शौकीनों में हैं. पर उनका मानना है कि जब तक और रिसर्च नहीं हो जाते मासूम ऊंगलियों को स्क्रीन से दूर रखना ही अच्छा है.

पहले दो सालों में दिमाग का आकार तीन गुना बढ़ जाता है और यह मुमकिन होता है बच्चों के चीजों को छूने, फेंकने, पकड़ने, काटने, सूंघने, देखने और सुनने जैसी गतिविधियों से. टिसरॉन का कहना है कि हालांकि आईपैड और आईफोन बहुत सारी गतिविधियों के अपने में समेटे हैं लेकिन इनके साथ बच्चों की सारी इंद्रियों का इस्तेमाल नहीं हो सकता. वो यहां कुछ हद तक देख और सुन सकते हैं लेकिन स्वाद, गंध और प्राकृतिक चीजों को महसूस नहीं कर सकते. टिसरॉन तो यहां तक कहते हैं, "एप्लिकेशन के दो ब्लॉक्स जोड़ कर या एक एक ऊपर दूसरे को रख कर आकृति बनाने में हुए अनुभव वास्तविक दुनिया की जगह नहीं ले सकते." इस उम्र के बच्चों को टीवी देखने से होने वाले नुकसानों पर तो पहले ही बात हो चुकी है और उसे बुरा भी बताया जा चुका है लेकिन स्मार्टफोन पर अभी बात नहीं हुई.

जॉर्ज की मां कभी भी उसे टेबलेट के साथ अकेला नहीं छोड़ती वो कोशिश करती हैं एक संतुलन बनाए रखने की जब तक व्यापक रिसर्च से सब कुछ सामने नहीं आ जाता बड़ों के खिलौने से बच्चों को दूर ही रखना बेहतर है.

एनआर/ओएसजे(एएफपी)

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