पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान सेक्स एजुकेशन और गर्भ निरोधक अभियानों की वकालत करते रहे हैं. लेकिन अब भी महिलाओं के लिए हालात नहीं बदले. वे या तो बच्चा पैदा करती हैं या अल्सर की दवाइयाें से एबॉर्शन कराती हैं.
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पाकिस्तान में रहने वाली जमीना का परिवार गरीब और बेहद जरूरतमंद हैं. लेकिन गरीबी इनके लिए शायद सबसे बड़ी समस्या नहीं है. अगर कोई मुश्किल है तो वह है बच्चे पैदा करना. जमीना के सामने मजबूरी अपनी जान पर खेलकर अपने पति के छठे बच्चे को जन्म देने की थी. अगर बच्चा नहीं करती तो कहीं चुपचाप, चोरी-छुपे, गैरकानूनी ढंग से एबॉर्शन कराती. दोनों ही सूरतों में उसकी जान को बड़ा खतरा था. अंत में जमीना ने गर्भपात करा लिया.
लेकिन यह कोई इक्का दुक्का मामला नहीं है. पाकिस्तान में हर साल आधे से अधिक प्रेगनेंसी बिना प्लानिंग के होती हैं. अमेरिकी रिसर्च एजेंसी गुटमाखर इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट बताती है, "देश की तकरीबन 42 लाख महिलाएं बिना किसी तैयारी और सोच-विचार के गर्भधारण करती हैं. साथ ही पाकिस्तान की 54 फीसदी महिलाएं गर्भपात के लिए जाती है."
जमीना अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती हैं, "तीन साल पहले जब मेरी बेटी पैदा हुई तो डॉक्टर ने मुझसे कहा कि मुझे अब बच्चे पैदा नहीं करना चाहिए. बच्चा पैदा करना मेरी जान के लिए खतरा हो सकता है."
परिवार नियोजन से दूरी
पाकिस्तान में परिवार नियोजन हमेशा से ही एक विवादित मुद्दा रहा है. देश में सक्रिय धार्मिक नेता परिवार नियोजन के खिलाफ आलोचनात्मक रुख रखते हैं. साथ ही देश में सेक्स एजुकेशन और गर्भ-निरोधकों के इस्तेमाल को लेकर कोई खास जागरुकता भी नहीं है.
जमीना बताती है कि डॉक्टर की सलाह जब उसने अपने 35 साल के पति को बताई तो उसके पति ने जवाब में कहा, "खुदा पर भरोसा रखो." जमीना कहती है, "मेरा पति एक धार्मिक इंसान है और वह कई सारे बेटे चाहता है."
तकरीबन एक दशक पहले पाकिस्तान में परिवार नियोजन अभियान चलाया गया था. नारा दिया गया, "दो बच्चे ही अच्छे". लेकिन देश में सक्रिय कट्टर धार्मिक नेताओं ने इस पूरे कदम को सिरे से नकार दिया. देश के राष्ट्रवादी नेता ज्यादा से ज्यादा आबादी की वकालत करते हैं.
जर्मनी में सेक्स एजुकेशन
इंटरनेट में यूं तो हर तरह के मुद्दे पर जानकारी मौजूद होती है लेकिन अगर बात सेक्स की हो, तो अक्सर इस पर विवाद हो जाता है, फिर चाहे जर्मनी हो या भारत.
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क्या है मसला?
जर्मनी में हाल ही में सेक्स एजुकेशन वाली एक वेबसाइट लॉन्च हुई जो विवादों में घिरी है. इसमें दो मसले हैं, पहला यह कि इसे शरणार्थियों के लिए बनी कई वेबसाइटों में से एक बताया जा रहा है और दूसरा कि इसमें ऐसे कई चित्र और पिक्टोग्राम हैं जिनसे लोगों को आपत्ति है.
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क्या जरूरत है?
वेबसाइट को 12 भाषाओं में पढ़ा और सुना जा सकता है. जर्मनी में कई अलग अलग देशों से नाता रखने वाले लोग रहते हैं और वेबसाइट बनाते समय उन सभी की भाषाओं के बारे में सोचा गया. कई देशों में सेक्स पर बात करना ठीक नहीं माना जाता, ऐसे में वेबसाइट के जरिये जानकारी दी जा सकती है.
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विवाद के विषय
वेबसाइट में कुल छह सेक्शन हैं: बॉडी, फैमिली प्लैनिंग, इन्फेक्शंस, सेक्शुएलिटी, रिलेशनशिप्स एंड फीलिंग्स, राइट्स एंड लॉ. सबसे अधिक विवाद "सेक्शुएलिटी" वाले हिस्से पर है क्योंकि इसमें संभोग के अलग अलग तरीकों के बारे में बताया गया है.
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अपने शरीर को जानें
"बॉडी" वाले हिस्से में वेबसाइट जननांगों के बारे में विस्तार से समझाती है. वे सवाल जिनके जवाब अक्सर बच्चों को युवावस्था में पहुंच कर तब तक नहीं मिल पाते, जब तक वे खुद अनुभव नहीं कर लेते, ऐसे जवाब यहां मौजूद हैं और वो भी चित्रों के साथ.
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गर्भ धारण
जर्मनी में टीनेज प्रेग्नेंसी के मामले काफी देखे जाते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए स्कूलों में ही सेक्स एजुकेशन पर काफी जोर दिया जाता है ताकि लड़कियों को समझाया जा सके कि वे गर्भवती होने से कैसे बचें, अगर वे गर्भपात कराना चाहती हैं तो क्या विकल्प हैं और अगर बच्चा रखना चाहें तो भी उन्हें हर तरह की मदद दी जाए.
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सेक्स एजुकेशन की पढ़ाई
जर्मन स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की क्लास होती है जिसमें ना केवल बच्चों को शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में बताया जाता है, बल्कि कंडोम के इस्तेमाल, लिंग के आकार इत्यादि पर भी जानकारी दी जाती है. इसी तरह की जानकारी इस नई 'जांजू' नाम की वेबसाइट पर भी दी गयी है.
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यौन अपराध और कानून
सेक्स शिक्षा के दौरान यह भी बताया जाता है कि बिना महिला की सहमति के पुरुष उसके साथ संबंध नहीं बना सकता. यौन अपराध, हिंसा और जननांगों की विकृत्ति कानूनी अपराध हैं और इनके लिए सजा हो सकती.
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बीमारियों से बचें
जननांगों में किस किस तरह की बीमारी हो सकती है, इनसे कैसे बचा जा सकता है, सेक्स के दौरान इसका ध्यान कैसे रखा जा सकता है और जरूरत पड़ने पर किस से मदद ली जा सकती है, यह सब जानकारी इस वेबसाइट पर मौजूद है.
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शरणार्थियों के लिए क्यों?
वेबसाइट बनाने वालों का कहना है कि इसे बनाने में तीन साल का वक्त लगा है और ऐसे में मौजूदा हालात से इसे जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन जिन शरणार्थियों के लिए सेक्स से जुड़ी बातें वर्जित विषय हैं, उनके लिए यह फायदेमंद है.
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रोजाना 20,000
यह संख्या है उन लोगों की जो हर रोज इस वेबसाइट को देख रहे हैं. हालांकि शायद वेबसाइट का बदनाम होना ही इसकी लोकप्रियता की वजह बन गया है. लेकिन गलत जानकारी के साथ यहां पहुंचने वालों को शायद निराशा ही हाथ लगे क्योंकि यह कोई पोर्न वेबसाइट नहीं है, बल्कि शिक्षात्मक मकसद से बनी है.
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कौन तय करे सीमा?
सेक्स और जननांगों से जुड़े विषयों पर कई संस्कृतियों में चर्चा नहीं होती. भारत भी इसी समस्या से जूझ रहा है कि अगर जानकारी दें तो उसकी सीमा कैसे तय हो. हालांकि जर्मनी इसे सीमाओं में नहीं बांधता और यही वजह है कि इस खुलेपन पर विवाद उठ जाते हैं.
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आबादी का बोझ
पाकिस्तान की कुल आबादी 20.7 करोड़ के करीब है. अधिक बच्चे पैदा करने की चाहत देश के संसाधनों पर भी भारी पड़ रही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर बढ़ती जनसंख्या पर लगाम नहीं कसी गई तो देश के लिए मुश्किलें पैदा हो जाएगी. जमीना बताती हैं, "मेरी सास के नौ बच्चे हैं, जब मैं अपने पति से कहती हूं कि मुझे और बच्चे नहीं करने तो वह कहता है कि जब मेरी मां नहीं मरी तो तुम भी जिंदा रहोगी."
हो सकता है एबॉर्शन
अगर प्रेगनेंसी से मां की हालत को खतरा है तो एबॉर्शन हो सकता है. लेकिन अब भी कई डॉक्टर धर्म के चलते एबॉर्शन से मना कर देते हैं. इसी के चलते कुछ महिलाएं गैरकानूनी ढंग से एबॉर्शन कराती हैं. कुछ महिलाएं अल्सर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा का सहारा गर्भपात के लिए लेती हैं तो कुछ गैरकानूनी तरीको से एबॉर्शन के लिए जाती हैं.
हालांकि इस बीच अब कुछ गैरसरकारी संस्थाएं सामने आई हैं जो ऐसी महिलाओं की मदद कर रही हैं.
महिलाओं की मदद
गैरसरकारी संस्था अवेयर गर्ल्स अब महिलाओं को गर्भनिरोधक दवाओं के बारे में सही जानकारी दे रही है. संस्था की सह संस्थापक गुलालाई इस्माइल कहती हैं, "हम में से अधिकतर ऐसी महिलाओं को जानते थे जिनकी एबॉर्शन के चलते मौत हुई है." संस्था में काम करने वाली 26 साल की आयशा कहती हैं, "हॉटलाइन पर आने वाले कॉल पर हम लोगों को दवा की सही खुराक की जानकारी देते हैं."
परिवार नियोजन के लिए काम करने वाले एनजीओ ग्रीनस्टार से जुड़े डॉ हारुन इब्राहिम कहते हैं, "प्रशासन कभी इस विषय को जरूरी नहीं बना सका है. सारी बातें महज बयानबाजी और बेमतलब हैं." कुछ विशेषज्ञ इन हालातों को प्रशासनिक असफलता से भी नहीं चूकते हैं.
सरकार का रुख
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने दिसंबर 2018 में माना था कि इस मुद्दे पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही है.प्रधानमंत्री ने वादा भी किया था कि वह मीडिया, मोबाइल फोन, स्कूल और मस्जिदों के जरिए सेक्स एजुकेशन और गर्भनिरोधक अभियानों को शुरू करेंगे.
खान ने जोर देकर कहा था कि इस पूरे अभियान में मौलवियों की भूमिका अहम होगी. वहीं इस्लामिक विचारधारा को मानने वाली धार्मिक संस्था काउंसिल ऑफ पाकिस्तान ने सरकार को दिए अपने मशविरे में कहा कि परिवार नियोजन इस्लाम के खिलाफ है. काउंसिल ने समाचार एजेंसी से कहा, "सरकार की ओर से जन्म नियंत्रण अभियान को तुरंत रोका जाना चाहिए और इस कार्यक्रम को इकोनॉमिक प्लानिंग से हटा दिया जाना चाहिए."
भारत में गर्भनिरोध कैसे करते हैं लोग
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश के ज्यादातर लोग परिवार नियोजन के लिए कंडोम या फिर अन्य पारंपरिक तरीकों का सहारा लेते हैं. देखिए, भारत में 2012-13 के आंकड़ों के हिसाब से कितने लोग कौन सा तरीका अपनाते हैं.