बच्चों का जीवन घटाने वाली हवा
५ अप्रैल २०१९कई वैज्ञानिक तरीकों से इसका अनुमान लगाया जा सकता है कि कोई इंसान कितना लंबा जीवन जी सकता है. रिसर्चरों का कहना है कि अगर आज कोई बच्चा पैदा हो तो वायु प्रदूषण के कारण सेहत को होने वाले नुकसान के कारण उसकी उम्र करीब 20 महीने तक कम हो जाएगी. यह अनुमान दक्षिण एशियाई देशों के लिए लगाया गया है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है और दुनिया में सबसे ज्यादा है. पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश में जन्मे बच्चों की जीवन-प्रत्याशा तो 30 महीने तक घट सकती है. यह रिसर्च अमेरिका के हेल्थ एफेक्ट इंस्टीट्यूट नाम के गैरलाभकारी शोध समूह ने प्रकाशित किया है.
वायु प्रदूषण पर एनजीओ की सालाना रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरी दुनिया में लोगों की सेहत को जिन चीजों से सबसे ज्यादा खतरा है, उनमें वायु प्रदूषण का नंबर पांचवा है. इसके कारण हर साल जितने लोग मारे जाते हैं, वह संख्या सड़क दुर्घटनाओं और मलेरिया से मरने वालों की तादाद से भी ज्यादा है.
हेल्थ इफेक्ट संस्थान के अध्यक्ष डैन ग्रीनबाउम का कहना है, "बच्चों की सेहत किसी भी समाज के भविष्य के लिए बेहद अहम होती है और नए साक्ष्य दिखाते हैं कि इतने ज्यादा प्रदूषण में पैदा होने के कारण उनका जीवन कहीं छोटा हो सकता है.” वे बताते हैं, "दुनिया के कई हिस्सों में किसी भी औसत शहर की हवा में सांस लेना ही सेहत पर ऐसा असर करता है जैसा किसी बहुत ज्यादा सिगरेट पीने वाले पर होता है.”
ऐसी प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने के असर के कारण 2017 में करीब 50 लाख लोगों की जान चली गई. मरने वालों में आधे चीन और भारत के थे. यानि दोनों देशों में करीब 12-12 लाख लोगों की समय से पहले ही मौत हो गई. रिपोर्ट बताती है कि 2010 से जहां चीन ने प्रदूषण पर काबू पाने की दिशा में काफी प्रगति की है, वहीं भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में हालात और बुरे हुए हैं.
रिसर्चरों के विश्लेषण से पता चलता है कि इनडोर या आउटडोर माहौल में प्रदूषित हवा के चलते उन्हें स्ट्रोक, दिल के दौरे, डायबिटीज, फेफड़ों के कैंसर जैसे रोग लग गए, जिससे उनकी जान गई. घर के भीतर की हवा इतनी खराब हो गई है कि रिसर्चर अब उसे बेहद खतरनाक बताने लगे हैं. जहां कहीं अभी भी खाना पकाने के लिए लकड़ी या कोयले से चूल्हा जलाया जाता है, वो हवा तो और भी खतरनाक होती है. आउटडोर प्रदूषण में सबसे बड़े स्रोतों में वाहनों और फैक्ट्रियों से आने वाला धुआं है. इसके बाद कोयला से चलने वाले बिजलीघरों का नंबर आता है.
संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनीसेफ, यूके के एलेस्टेयर हार्पर बताते हैं, "इसका असर बच्चों पर कहीं ज्यादा होता है क्योंकि उनके विकास करने की उम्र होती है, दिमाग बढ़ रहा होता है, फेफड़े बड़े हो रहे होते हैं, और अपने शारीरिक विकास के लिए वे ज्यादा तेजी से सांसें ले रहे होते हैं."
आरपी/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)