30 किलोमीटर चौड़ी पट्टी बारूदी सुरंगों से भरी पड़ी है और उसी के ऊपर से गुजरते हुए पूर्वी यूक्रेन के 2,20,000 बच्चे हर रोज स्कूल जाते हैं. करीब हर हफ्ते एक बच्चा ताबूत में लौटता है.
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बेहताशा बारूदी सुरंगों के चलते पूर्वी यूक्रेन दुनिया के सबसे खतरनाक इलाकों में से एक है. यूएन चिल्ड्रेन्स फंड (यूनिसेफ) के मुताबिक पूर्वी यूक्रेन के 2,20,000 बच्चे आए दिन मौत का जोखिम उठाते हैं. बारूदी सुरंग की चपेट में आने से इस साल हर हफ्ते एक बच्चे की या तो मौत हुई या फिर वह बुरी तरह जख्मी हुआ.
बारूदी सुरंगें रूस से सटे यूक्रेन के पूर्वी इलाके में हैं. 500 किलोमीटर लंबे और 30 किलोमीटर चौड़े इस इलाके में यूक्रेन की सेना और रूस समर्थक विद्रोही आमने सामने हैं. यूनिसेफ में यूक्रेन की प्रतिनिधि जियोवाना बारबेरिज दोनों पक्षों से इस खतरों को उखाड़न फेंकने की अपील कर रही है, "विवाद में शामिल सभी पक्षों को इन बर्बर हथियारों का इस्तेमाल तुरंत खत्म करना चाहिए. इनका समुदायों पर असर हो रहा है और बच्चे लगातार घायल होने या मरने का खतरा झेल रहे हैं."
कई बच्चे हथगोले या बम फ्यूज उठाते समय मारे जा चुके हैं. बारूदी सुरंगों के सबसे ज्यादा शिकार बच्चे ही होते हैं, करीब 40 फीसदी. बारूदी सुरंगों पर प्रतिबंध लगाने की अंतरराष्ट्रीय मांग के बावजूद इन जानलेवा हथियारों का इस्तेमाल जारी है.
इस बीच यूक्रेन और रूसी विद्रोहियों के बीच विवाद फिर सुलगने लगा है. यूक्रेन के राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको ने पूर्वी यूक्रेन में अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती का आदेश जारी किया है. हाल के दिनों में रूस समर्थक अलगाववादियों ने यूक्रेनी सेना के कई ठिकानों को रॉकेटों से निशाना बनाया. उन हमलों के बाद ही पोरोशेंकों ने यह आदेश दिया है.
इससे पहले दोनों पक्ष क्रिसमस के दौरान संघर्ष विराम के लिए राजी हुए थे. संघर्ष विराम 24 दिसंबर को शुरू होना है. लेकिन 2014 में शुरू हुए यूक्रेन संकट में संघर्ष विराम असफल ही साबित हुए हैं. विवाद में शामिल पक्ष अब तक कई बार संघर्ष विराम संधि तोड़ चुके हैं. यूक्रेन के संकट के चलते अब तक 10,000 लोग मारे जा चुके हैं.
बारूदी सुरंगों की विरासत कब होगी खत्म
दुनिया भर में बारुदी सुरंगों को बैन करने की कोशिशों के बावजूद अब भी दबे-छिपे तरीके से ये लगभग 50 देशों में सक्रिय हैं. इनके साथ हुई एक भी चूक जिंदगी पर भारी पड़ सकती है. आइयें डाले इन्हें खत्म करने की कोशिशों पर एक नजर.
तस्वीर: DW/D. Visevic
न जाने कितनी सुरंगें
अब तक कितनी बारुदी सुरंगों ने जमीन को बर्बाद किया है, यह ठीक-ठीक पता नहीं. एक अनुमान के मुताबिक यह संख्या करोड़ों में होगी. युद्ध के बाद गोली बंदूकों की आवाजें भले ही नहीं आतीं, लेकिन सुरंगों से खतरा जीवन और जमीन पर बना रहता है. साल 1997 की ओटावा संधि के फिलहाल 162 देश सदस्य है. इसका उद्देश्य बारुदी सुंरग के उपयोग, संग्रहण, उत्पादन और हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाना है.
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मिलेगा सुरंगों का सुराग
डेंडिलियन बीज की तरह नजर आने वाले माइन काफॉन या माइन एक्सप्लोडर को अफगानी मसूद हस्सानी ने तैयार किया है. इसकी मदद से बारुदी सुरंग का पता लगाया जा सकता है. इसमें लगी 175 प्लास्टिक प्लेटें, बांस के खंभों से जुड़ी होती हैं. आदमी के औसत वजन और लंबाई के आधार पर इसे तैयार किया जाता है. यह खर्चीला भी नहीं होता और हवा से चलता है.
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और विकास होना बाकी
बचपन में हवा वाले वाहनों से खेलने वाले हस्सानी ने अपने उस अनुभव से प्रेरणा लेकर माइन काफॉन को तैयार किया है. डच रक्षा मंत्रालय की सहायता से बनी यह डिवाइस फिलहाल प्रोटोटाइप और परीक्षण प्रक्रिया से गुजर रही है. शोध दल अब भी इस पर काम कर रहा है. हस्सानी के मुताबिक इस डिवाइस ने वैश्विक चर्चा अवश्य छेड़ी है.
तस्वीर: Massoud Hassani
दस साल में सुरंगों से मुक्ति
डिजाइनर भी माइन काफॉन ड्रोन पर काम कर रहे हैं. इस ड्रोन के जरिये छिपे हुए हथियारों का सेंसर के इस्तेमाल से पता लगाया जा सकता है. हस्सानी के मुताबिक यह अविष्कार अभी ऑप्टिमाइजेशन के चरण में है. इसे सुरक्षित, तेज और मौजूदा तकनीकों से कम खर्चीला बताया जा रहा है. इससे पूरी दुनिया अगले दस सालों में बारुदी सुंरगों से मुक्त हो सकती है.
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खतरे की आहट
बेल्जियम के एनजीओ अपोपो (APOPO) चूहों की ऐसी प्रजाति का संरक्षण कर रहा है, जिसे दुनिया भर में इन खतरनाक डिवाइसेज का पता लगाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है. इनकी सूंघने की क्षमता अधिक होती है और इन्हें टीएनटी की पहचान करने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है. एनजीओ का दावा है कि अब तक इस काम के चलते किसी चूहे की जान नहीं गई है.
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कु्त्ते भी देते साथ
इंसानों के सबसे वफादार कुत्ते भी सुरंग पहचानने में मदद करते हैं. कई महीनों के परीक्षण के बाद ये भी ऐसे विस्फोटकों की पहचान कर पाते हैं. मार्शल लेगेसी इंस्टीट्यूट ने अपना डॉग प्रोग्राम साल 1999 में शुरू किया था. तब से लेकर अब तक ये कुत्ते करीब 11 हजार एकड़ सुरंग वाली जमीन की खोज कर चुके हैं. दुनिया के 24 देशों में 900 कुत्ते अब भी काम कर रहे हैं.
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मशीन से सफाई
टैंक और कंबाइन हार्वेस का मिला जुला रूप लगने वाली इस मशीन में 72 चेन लगे हैं. यह आर्डवर्क माइन क्लीयरेंस मशीन जमीन पर जहां से गुजरती है, वहां अपने संपर्क में आने वाली सुरंगों पर खत्म कर देती है. हालांकि इसमें न तो मशीन को नुकसान होता है और न ही मशीन चालक को. यह मशीन रोजाना एक फुटबाल फील्ड के बराबर इलाका सुरंग मुक्त बनाती है.
तस्वीर: Aardvark
बना रहता है खतरा
बारुदी सुरंग को अगर एक बार बिछा दिया गया तो इसके सक्रिय रहने का खतरा अगले 50 सालों तक बना रहता है. इसके संपर्क में आने से न केवल शारीरिक नुकसान पहुंचता है बल्कि ये विस्थापित लोगों और शरणार्थियों की वापसी में भी बाधा बनती है. साथ ही ये विकास और पुनर्निमाण की प्रक्रिया को भी धीमा करती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जीवन बदलने वाले घाव
चीन और रूस सहित अब भी 11 देशों ने इन बारुदी सुरंग का उत्पादन जारी रखा है. हालांकि ओटावा संधि के बाद इस क्षेत्र में खासी प्रगति हुई है. लेकिन अब भी चुनौतियां बरकरार हैं. क्योंकि जब तक ये जमीन में रहेंगी जिंदगियों पर खतरा बना रहेगा, जानें जाती रहेंगी और शांति भी कायम नहीं हो सकेगी.