1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कहानियों और कामयाब जीवन का अनोखा संबंध

Jha Mahesh Kommentarbild App
महेश झा
१४ नवम्बर २०१५

याद है पुराने जमाने में दादी नानियों का किस्से सुनाना. आज भी बहुत से परिवारों में बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की परंपरा है. एक सर्वे के अनुसार बच्चों को जीवन में मिलने वाली कामयाबी में इसका भी अहम योगदान होता है.

तस्वीर: DW/G. Harvey

अक्सर देखा होगा कि मां बच्चे को सुलाने जाती है और बच्चा तो जगा रहता है, मां ही सो जाती है. जर्मन परिवारों की स्थिति कुछ अलग है. यहां बच्चों को अपने साथ सुलाने की परंपरा नहीं है. और अक्सर बच्चे जब तक जगे रहें मां से अलग नहीं होना चाहते. शायद यहीं से कहानी सुनाने की शुरुआत हुई ताकि बच्चा या तो कहानी सुनते सुनते सो जाए या कहानी से आश्वस्त होकर सो जाए.

जर्मनी में कम से कम हर तीसरे परिवार में छोटे बच्चों को, जिन्हें खुद पढ़ना और लिखना नहीं आता, किताब पढ़कर सुनाया जाता है. हर पांचवें माता पिता अपने बच्चे को हर रोज किताब पढ़कर सुनाते हैं. लेकिन 15 प्रतिशत माता पिता ऐसे भी हैं जो बच्चों के लिए कभी किताब हाथ में नहीं लेते. जबकि यह बच्चे के विकास के लिए बहुत ही जरूरी है. एक सर्वे के अनुसार जिन बच्चों के उनके माता पिता किताब पढ़कर सुनाते हैं स्कूल में उनका प्रदर्शन अच्छा रहता है.

जनमत सर्वेक्षण करने वाली एक संस्था आलेंसबाख के अनुसार स्कूलों में बच्चों की कामयाबी पर माता पिता असर डालते हैं. कम पढ़े लिखे माता-पिता के बच्चों का बड़ा हिस्सा हायर सेकंडरी स्कूल में न जाकर सामान्य हाई स्कूल में जाता है. बचपन में किताबों का पढ़कर सुनाया जाना बच्चों को सामान्य जिंदगी के लिए भी तैयार करता है. ऐसे परिवारों से आए 8 से 12 साल के 80 फीसदी बच्चों का कहना है कि उनके साथी उन्हें भरोसेमंद मानते हैं. शिक्षाशास्त्री सिमोने एमिष का भी कहना है कि ऐसे बच्चे सक्रिय और जिम्मेदार होते हैं.

बच्चों को किताब पढ़कर कहानियां सुनाने का एक लाभ ये भी होता है कि बाद में चलकर उनमें भी नियमित रूप से पढ़ने की आदत लगती है. इसका असर किताबों के कारोबार पर भी पड़ता है. जर्मनी में किताबों का कारोबार सालाना करीब साढ़े 9 अरब यूरो यानि 700 अरब रुपये का है. 8 करोड़ आबादी वाले जर्मनी में हर साल किताबों की करीब 90,000 टाइटल छपती हैं. इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक बुक और प्रिंट ऑन डिमांड की तादात भी बढ़ रही है. पिछले सालों में सेल्फ पब्लिशिंग का धंधा भी फैल रहा है. किताबों के प्रकाशन में स्कूली टेक्स्ट बुक का हिस्सा 6 प्रतिशत है जबकि बच्चों और किशोरों की किताबों का हिस्सा 11 प्रतिशत है.

जर्मनी में विदेशी साहित्य को पढ़ने की भी लंबी परंपरा है. 2014 में विदेशी साहित्य की करीब 11,000 टाइटलों का जर्मन में अनुवाद और प्रकाशन किया गया.जर्मनी के कुल पुस्तक प्रकाशन में विदेशी साहित्य का हिस्सा करीब 12 प्रतिशत है. अनुदित पुस्तकों में भारतीय पुस्तकों भी शामिल रही लेकिन बड़ा हिस्सा अंग्रेजी किताबों का है. दूसरे नंबर पर फ्रेंच, तीसरे पर जापान, चौथे पर स्वीडन और पांचवे पर इटली की किताबों का नंबर है.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें