एक नई रिसर्च से पता चला है कि आमतौर पर ठंडे दिल वाली छवि के विपरीत मादा अजगर ना सिर्फ अपने घर का बल्कि, अंडों से बाहर आने के बाद अपने नन्हें बच्चों का भी ख्याल रखती हैं.
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दक्षिण अफ्रीकी अजगर के बारे में इस रिसर्च के नतीजे लंदन की विज्ञान पत्रिका जर्नल ऑफ जूलॉजी में छपे हैं. अंडे देने वाले सांपों के बच्चों की देखभाल के बारे में पहली बार इस तरह की कोई रिपोर्ट छापी गई है. जोहानिसबर्ग यूनिवर्सिटी के ग्राहम अलेक्जेंडर ने सात साल तक जंगलों में रिसर्च करने के बाद देखा कि मादा अजगर सहवास के बाद से बच्चों के अंडों से बाहर आने के करीब सात महीने के समय में बिना कुछ खाए रहती हैं.
सरीसृप होने के कारण अजगर का शरीर बाहर की गर्मी पर निर्भर रह सकता है. वहीं स्तनपायी जीवों के शरीर में उष्मा के लिए अंदर ही भट्ठी होती है और इसे चलाते रहने के लिए भोजन के रूप में ईंधन की जरूरत होती है. यही वजह है कि सरीसृप जीव बिना भोजन किए भी लंबे समय तक जिंदा रह सकते हैं. स्तनपायी जीवों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है.
सांपों की दिलचस्प और डरावनी दुनिया
सांप और इंसानों का रिश्ता बड़ा ही अनोखा है. धरती के ध्रुवों को छोड़कर वे हर जगह पाए जाते हैं और पाया जाता है उनका डर भी. देखिए कैसे कैसे हमारी जिंदगी से जुड़े हैं ये सरीसृप.
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मशहूर, लेकिन खतरे में
जर्मनी की दवा कंपनियों के लोगो और विश्व स्वास्थ्य संगठन के झंडे पर बना सांप का यह निशान दुनिया में सबसे प्रसिद्ध है. यह असल में एस्कुलाप्नाटेर सांप है, जो जहरीला नहीं होता. फिर भी इनका आवास सिकुड़ने और गैर कानूनी व्यापार बढ़ने के कारण इनके अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है.
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जहरीले, मगर काम के
जहरीले सांपों से कौन नहीं डरता. लेकिन सांप का जहर बहुत काम की चीज है. जर्मनी में हैम्बर्ग के पास उटरसन में यूरोप का सबसे बड़ा स्नेक फार्म है. यहां रोजाना करीब 1,500 सांपों का जहर निकाला जाता है. सांप का जहर बहुत कम मात्रा में दवा का काम करता है. इससे हाइपरटेंशन का इलाज होता है और सांप के डसने का तोड़ यानि एंटीडोट भी उसका जहर ही है.
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नई खोज, नए खतरे
सांपों की नई नई किस्मों की खोज होती रहती है. जैसे कि इटली के पियमॉन्ते इलाके की अल्पाइन घाटियों में मिला "वाइपेरा वाल्सर" जो इस तस्वीर के वाइपर जैसा ही दिखता है. यह खुले घास के मैदानों में रहता है. इसके जैसे सांप पिछली सदी में ही विलुप्त हो चुके थे, यह खोज एक विलुप्त प्रजाति के वापस आने जैसी है.
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टाइगर पायथन का आक्रमण
एवरग्लेड्स नेशनल पार्क में बर्मा के अजगरों की किस्म का आतंक मच गया था. ऐसे की अजगरों को अमीर लोगों ने पालतू बना कर रखा था और उनके पिंजरों से निकल कर इन अजगरों ने जानवरों और इंसानों दोनों को डराया. इन्हें जान से मारने के लिए इनाम रखा गया. शिकारियों ने केवल एक महीने में 68 अजगरों को मार डाला.
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बीन पर नचाना
भारत को सपेरों का देश माने जाने की मान्यता भी सदियों पुरानी है. बीन की धुन पर सांपों को नचाते सपेरों की नियंत्रण देख पश्चिमी देश हैरत में पड़ते रहे. लेकिन सच तो ये है कि सांप बीन की धुन पर नहीं नाचता बल्कि अंधेरे डलिए से बाहर निकाला गया सांप दिन के प्रकाश में भी कुछ ठीक से देश नहीं पाता. बीन की हरकत को कोई दुश्मन समझ वह उस पर हमल करने की ताक में उसी के साथ साथ हिलता है.
तस्वीर: picture alliance / WILDLIFE
धार्मिक मान्यताएं भी
डर अपनी जगह है लेकिन हिंदू मान्यता में सांप को पवित्र भी माना जाता है. कहीं वर्षा ऋतु और उर्वरता का प्रतीक तो कहीं पूर्वजों की आत्मा तक का प्रतीक माना जाता है. भारत की कई पौराणिक कथाओं में इच्छाधारी नाग-नागिनों का जिक्र मिलता है, यानि ऐसे इंसान जिनके पास सांप जैसी शक्तियां थीं. और जो जब चाहे दोनों में से कोई भी रूप ले सकते थे.
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अजगर को समेटे
यूरोप में कई प्रेमी जोड़े सांपों और अजगरों को टेरेरियम में रखते हैं. इन्हें रखने के लिए फर्श को गर्म करने, प्रकाश की व्यवस्था के अलावा उसकी भूख मिटाने के लिए जिंदा जीव भी उपलब्ध कराने होते हैं. चीन के बिंगजे परिवार ने तो अजगर को अपने साथ ही रखा हुआ है. चार मीटर का यह अजगर पूरे घर में कहीं भी घूमता है.
चीन के खानपान में सांपों की बड़ी मांग है, जहां वे विशेष मेनू का हिस्सा होते हैं. तो वहीं हांगकांग में सांप का सूप खूब पसंद किया जाता है. मान्यता है कि सांप में कई घावों को भरने के विशेष गुण होते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है और बीमारियां दूर होती हैं. अब इन गुणों के प्रचार के बाद मांग क्यों ना बढ़े.
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सांप से मालिश करवाएंगे?
मांसपेशियों को दुरुस्त रखने और उनकी जकड़न में आराम दिलाने के लिए मसाज या मालिश के फायदे जगजाहिर हैं. लेकिन एक सांप अगर आपकी मसाज करे तो क्या आप करवाएंगे? इंडोनेशिया में कुछ खास वेलनेस प्रोग्रामों में सांपों का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे बाली की इस तस्वीर में अजगर से पीठ की मसाज करवाई जा रही है.
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अलेक्जेंडर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "इसके पीछे जरूर कोई क्रमिक विकास संबंधी फायदा भी होगा क्योंकि अगर मां इतने लंबे समय तक बिना खाए रहती है तो निश्चित रूप से उस पर इसका बड़ा असर भी होता होगा, जाहिर है कि जरूर उसे इसका कोई फायदा मिलता होगा जिसके बलबूते वह इस असर से बेपरवाह रहती है." मादा अजगर इस दौरान अपने शरीर का 40 फीसदी तक वजन गंवा सकती है.
हालांकि इसकी भी एक सीमा है. बच्चों के अंडे से बाहर आने के बाद मादा केवल दो हफ्ते तक ही उनके साथ रह सकती है. आम तौर वे दर्जनों की तादाद में बच्चों को जन्म देती हैं. दो हफ्ते के इस समय में ना तो वे बच्चों को खाना खिला सकती हैं ना ही उन्हें जंगल में जीने के तरीके बता सकती हैं.
हालांकि इस दौरान बच्चे रात के वक्त मां की कुंडली में सुरक्षित रहते हैं. ऐसा करके मां अपने नन्हें बच्चों को गर्म रखती है और इस तरह उनके जीवित रहने के आसार बढ़ जाते हैं. इसी तरह का व्यवहार नागों में भी देखने को मिलता है लेकिन वे सीधे बच्चों को जन्म देते हैं. दूसरे अजगर भी अपने अंडों को सेने के दौरान ज्यादातर वक्त उनके साथ रहते हैं लेकिन अंडों से बाहर आने के बाद उनके वक्त नहीं बिताते. अंडे देने वाले सरीसृपों में घड़ियाल जरूर अपने घरों में रहते हैं और अंडों से बाहर निकले बच्चों के साथ वक्त बिताते हैं.
वैज्ञानिकों ने इसके रिसर्च के लिए प्रीटोरिया के पास मौजूद डिनोकेंग गेम रिजर्व में छानबीन की.