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बच्चों को आत्मघाती हमलावर बना रहा है तालिबान

१५ फ़रवरी २०१२

दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार शहर का रहने वाला नसीबुल्लाह अपने घर के पास से खेलते खेलते अचानक गायब हो गया. ढाई माह बाद जब वह पुलिस को मिला तो उसे देख कर पुलिस अधिकारी भी हैरान रह गए. उसके शरीर पर बम बंधे थे.

खुदकुश हमलावर बना रहा है तालिबानतस्वीर: AP

पूछताछ हुई तो पता चला कि तालिबानी आतंकियों ने नसीबुल्लाह का अपहरण कर लिया. आतंकियों ने सैनिकों के खिलाफ उसके दिमाग में जहर भर दिया और उसे आत्मघाती हमलावर के रूप में तैयार कर दिया. लेकिन वह हमला कर पाता उसके पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया. नसीबुल्लाह तो सौभाग्य से बच गया लेकिन कई बच्चे उसकी तरह खुशकिस्मत नहीं होते.

आतंक का नया हथियार

तालिबान ने तबाही मचाने के लिए अपना नया हथियार आत्मघाती हमलावर बच्चों के रूप में तैयार करना शुरू कर दिया है. तालिबानी आतंकी गरीब परिवारों के बच्चों की ताक में घूमते रहते हैं. जैसे ही मौका मिलता है, बच्चों का अपहरण कर लेते हैं. फिर शुरू होता है बच्चों का ब्रेन वॉश. दो महीने तक मासूमों के दिमाग में जहर भरा जाता है और फिर उन्हें हमला करने भेज दिया जाता है.

खिलौने और पैसों का लालच

आतंकी छोटे छोटे बच्चों का ब्रेन वॉश करने के साथ ही उन्हें खिलौने और कपड़ों का लालच देते हैं. बच्चों को तैयार करने के बाद उनके शरीर पर बम बांध दिए जाते हैं. उन्हें बताया जाता है कि वह एक खिलौना है और उन्हें बहुत छोटा सा काम करना है. जैसे ही सैनिक नजर आएं खिलौने की केबल को आपस में जोड़ देना है. आखिर तक भी बच्चों को पता नहीं होता कि वे क्या करने जा रहे हैं.

नई पहल

20 दिन की पूछताछ के बाद नसीबुल्लाह को उसके माता पिता को सौंप दिया गया. लेकिन बहुत से बच्चों और किशोरों के साथ ऐसा नहीं होता. आत्मघाती हमलावर के रूप में पकड़े जाने के बाद उन्हें जेलों में डाल दिया जाता है. अधिकतर मामलों में आतंकवादी इनका अपहरण करते हैं. लेकिन सुरक्षाबल ये मानते हैं कि उन्होंने खुद आत्मघाती हमलावर बनने का रास्ता चुना.

2011 में अफगान राष्ट्रपति मोहम्मद करजई ने ऐसे कुछ बच्चों और युवाओं को रिहा करने का आदेश दिया था. इस पहल का उदेश्य था कि ऐसे बच्चे भी अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करें और नए जीवन की शुरुआत करें. करजई के अनुसार, "तालिबान अपने बच्चों को तो डॉक्टर और इंजीनियर बनाना चाहते हैं. जबकि अपराध के लिए हमारे बच्चों का इस्तेमाल करना चाहते हैं. ताकि हमारा देश आगे नहीं बढ़ पाए."

नसीबुल्लाह की कहानीतस्वीर: AP

पहले भी किया बच्चों का इस्तेमाल

अपने कथित जिहाद में बच्चों का इस्तेमाल तालिबान पहली बार नहीं कर रहा है. अफगान सेना के पूर्व कमांडर जनरल अतिकुल्लाह अमरखेल ने डॉयचे वेले को बताया, "सोवियत संघ के साथ युद्ध में किशोरों और युवाओं को जबरदस्ती सेना में भर्ती कर उन्हें युद्ध के लिए धकेला गया था. तब उन्हें जिहाद के नाम पर तैयार किया जाता था."

अमरखेल के अनुसार जिहाद के प्रचार का बच्चों के दिमाग पर गहरा असर होता है. कुछ बच्चे अपनी मर्जी से युद्ध के लिए चले जाते हैं और उनके माता पिता को पता तक नहीं होता. तालिबान के लिए लड़ने वाले युवा कुशल लड़ाके नहीं होते. वे तो तालिबान की मनोवैज्ञानिक लड़ाई का हिस्सा होते हैं. आत्मघाती हमलों के माध्यम से दुश्मन सेना और खास कर विदेशी सैनिकों पर प्रभाव डाला जाता है. इस तरह की लड़ाई सीमा पर नहीं लड़ी जाती. यह गुरिल्ला संघर्ष होता है. इसमें तालिबान भी अपने विरोधियों को कमजोर कर देना चाहता है ताकि वे हथियार डाल दें.

तालिबान का हथियार गरीबी

अफगान नागरिकों की गरीबी का सबसे ज्यादा फायदा तालिबान उठा रहा है. अफगानिस्तान में स्कूली शिक्षा हर बच्चा नहीं ले पाता. गरीबी की वजह से बच्चे और युवा तालिबान के चंगुल में फंस कर आत्मघाती हमलावर बनने के लिए तैयार हो जाते हैं. उन्हें या उनके परिवार को भारी रकम देने का वादा तालिबानी आतंकवादी करते हैं. काबुल के जन स्वास्थ्य विभाग के मनोवैज्ञानिक अजीजुद्दीन हेमत के अनुसार अधिकांश बच्चों को अपने काम के घातक परिणामों की जानकारी नहीं होती. इसका एक और पहलू यह भी है कि आत्मघाती हमलावर के रूप में खुद को मौत के मुंह में झोंकने वाले बच्चे अक्सर कट्टर धार्मिक परिवारों से होते हैं. तालिबान आसानी से उन्हें धर्म का हवाला देकर बहला लेते हैं.

इन दिनों नसीबुल्लाह के पिता राहत की सांस ले रहे हैं क्योंकि उनका बेटा लौट रहा है. वे कहते हैं "मैं 72 दिनों तक उसे जगह जगह तलाशता रहा. मेरे सारे रुपये भी खर्च हो गए. लेकिन मैं भाग्यशाली रहा कि मेरा बेटा मुझे वापस मिल गया."

उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में कंधार में सुरक्षा का स्तर सुधरेगा और इस तरह की दुखद घटनाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा.

रिपोर्ट: वसलत हसरत नजीमी/ जितेन्द्र व्यास

संपादनः ए जमाल

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