मेक्सिको और अमेरिका का सीमा विवाद किसी से छुपा नहीं हैं. अमेरिका ने मेक्सिको से आने वाले अवैध आप्रवासियों पर जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई हुई है. इसी के चलते अब सीमा पर मेक्सिको से आए बच्चों को भी बंदी बनाया जा रहा है.
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अमेरिका दुनिया का एक ऐसा शक्तिशाली मुल्क है जो कई मामलों में मानवाधिकारों का पैरोकार भी नजर आता है. लेकिन जब बात मेक्सिको की आती है, तो अमेरिका अपना कड़ा रुख दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता. यही कारण है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अवैध अप्रवासियों को लेकर "जीरो टॉलरेंस" की नीति अपनाई हुई है. इस नीति का सबसे ज्यादा असर मेक्सिको से आने वाले आप्रवासियों पर पड़ रहा है.
इस के तहत अमेरिका में गैरकानूनी रूप से प्रवेश करने वाले आप्रवासियों पर न सिर्फ कानूनी कार्रवाई होती है, बल्कि साथ आए बच्चों को भी उनसे अलग कर दिया जाता है. आप्रवासियों के इन बच्चों को अपने मां-बाप से अलग कर कस्टडी सेंटर या खास केंद्रों में रखा जा रहा है. बच्चों को रखने वाला ऐसा ही एक शेल्टर है कासा पेडरे.
कासा पेडरे, अमेरिका-मेक्सिको सीमा के पास बनी एक इमारत है. यह इमारत पहले कारोबारी कंपनी वॉलमार्ट के पास थी. लेकिन आज यह संघीय हिरासत में रह रहे 1400 अप्रवासी बच्चों का घर है. इन बच्चों में से कई टीनएजर्स हैं जो अकेले ही अमेरिका में घुसे थे. कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिन्हें सीमा पर मां-बाप से अलग कर जबरन यहां रहने के लिए भेजा गया.
जीरो टॉलरेंस नीति के लागू होने के बाद पत्रकारों को पहली बार इस शेल्टर में जाने की इजाजत दी गई. रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बिल्डिंग में क्षमता से ज्यादा बच्चों को रखा जा रहा है. इस शेल्टर का दौरा कर लौटे पत्रकार जेकब सोबोरॉफ कहते हैं, "इन बच्चों को कैद किया गया है." पत्रकारों के मुताबिक, यहां रह रहे बच्चों को रोजाना सिर्फ दो घंटे के लिए बाहर जाने की अनुमति मिलती है.
वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस शेल्टर में एक मैकडॉनल्ड और एक कैफेटेरिया है जहां चिकन, सब्जियां और फल मिलते हैं. इसके अलावा बच्चे यहां ऐनिमेटिड फिल्में देखते हैं और यहां के गैराज में कुछ बच्चे बास्केटबॉल भी खेलते हैं.
सीरियाई बच्चे: नन्हें कंधों पर बड़ा भार
तुर्की में बाल मजदूरी गैरकानूनी हैं. लेकिन वहां हजारों सीरियाई शरणार्थी बच्चे हैं जो स्कूल जाने की बजाय काम करने को मजबूर हैं. चलिए ऐसी ही एक टेलर वर्कशॉप में जहां कई सीरियाई बच्चे काम करते हैं.
तस्वीर: DW/J. Hahn
काम का बोझ
खलील की उम्र 13 साल है और कभी उसका घर दमिश्क में होता था. अब वह इस्तांबुल में रहता है और एक रिहायशी मकान के तहखाने में बनी इस टेलर वर्कशॉप में काम करता है, हफ्ते में पांच दिन. इस इलाके में लगभग हर गली में ऐसी सिलाई की दुकानें हैं और लगभग हर जगह खलील जैसे बच्चे काम करते हैं.
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पैसे कम, काम पूरा
यहां पर लगातार सिलाई मशीनें चलती रहती हैं. इस दुकान में काम करने वाले 15 लोगों में चार बच्चे हैं. और ये सभी बच्चे सीरिया से हैं. तुर्की के कपड़ा उद्योग में बहुत से लोग गैरकानूनी रूप से काम करते हैं. बहुत ही दुकानों और फैक्ट्रियों में बच्चों से कम पैसे में पूरा काम लिया जाता है.
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स्कूल नसीब नहीं
13 साल का खलील कहता है, "मैं भविष्य के बारे में नहीं सोचता." तस्वीर में वह सूती कपड़े को छांट रहा है. इस कपड़े से महिलाओं के अंडरवियर तैयार किये जा रहे हैं. खलील कहता है कि जब वह सीरिया में था तो तीसरी क्लास में पढ़ता था. फिर लड़ाई छिड़ गयी और परिवार को वहां से भागना पड़ा. तब से स्कूल जाना नसीब नहीं हुआ.
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मदद या फिर उत्पीड़न
तुर्की में 15 साल से कम उम्र के बच्चे को काम पर रखने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है. इस दुकान का मालिक भी इस बात को जानता है, इसलिए वह सामने नहीं आना चाहता. वह कहता है, "मैं बच्चों को काम देता हूं ताकि उन्हें भीख ना मांगनी पड़ी. मुझे पता है कि बाल मजदूरी पर रोक है, लेकिन मैं तो उनकी मदद ही कर रहा हूं."
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"उम्मीद है, घर जाऊंगा"
मूसा की उम्र 13 साल है. वह उत्तरी सीरिया के अफरीन प्रांत से है जो कुर्दिश बहुल इलाका है. जब काम नहीं कर रहा होता है तो मूसा क्या करता है. "फुटबॉल खेलता हूं." वह कहता है, "उम्मीद है कि जल्द ही सीरिया में शांति होगी और हम वापस घर जा सकेंगे. वहां जाकर मुझे पढ़ना है और डॉक्टर बनना है."
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सबको मुनाफा चाहिए
यहां हर दिन महिलाओं की हजारों पैंटियां बनती और पैक होती हैं. तुर्की के बाजारों में बिकने वाली अलग अलग साइज की इन पैंटियों में से हर एक की कीमत चंद लीरा है. तुर्की के व्यापारियों को चीन से आने वाले माल का मुकाबला करना है. बच्चों को यहां बड़ों के मुकाबले लगभग आधा मेहनताना मिलता है.
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12 घंटे काम
अरास 11 साल की है और चार महीनों से इस दुकान में काम कर रही है. उसकी मां गर्भवती है. पिता एक फैक्ट्री में काम करते हैं, लेकिन पैसे इतने नहीं मिलते कि अकेले उससे गुजारा हो पाये. इसलिए अरास को भी काम करना पड़ता है. कई बार तो सवेरे 8 बजे से लेकर रात 8 बजे तक काम होता है. दिन में दो बार ब्रेक मिलता है. वह महीने में 700 लीरा (लगबग 11 हजार रुपये) कमा लेती है.
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वीकेंड पर स्कूल
अरास सोमवार से लेकर शुक्रवार तक काम करती है. इसलिए वह आम स्कूलों में नहीं जा सकती. वह सीरियाई सहायता संगठन की तरफ से वीकेंड पर चलाए जा रहे स्कूल में जाती है. यहां गणित के अलावा अरबी और तुर्क भाषा पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं. यहां पढ़ाने वाले टीचर भी सीरिया से आए शरणार्थी हैं.
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बेहतर भविष्य की ओर..
इस छोटे से सीरियाई स्कूल में एक दिन में चार से 18 साल के उम्र के 70 बच्चे पढ़ने आते हैं. कई बार टीचर बच्चों के घर भी जाते हैं और उनसे माता पिता से अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए कहते हैं ताकि बेहतर भविष्य की तरफ वे कदम बढ़ा सकें.
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लेकिन अब अमेरिका की दक्षिणी सीमा से देश में प्रवेश करने वाले परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसके चलते इन शेल्टर्स की स्थिति भी बिगड़ने लगी है. व्हाइट हाउस की प्रवक्ता सारा सैंडर्स सरकार के इस फैसले का बचाव करते हुए कहती हैं, "अमेरिका सिर्फ मौजूदा नियमों का पालन कर रहा है."
कासा पेडरा, अमेरिका में चल रहे ऐसे 27 केंद्रों में से सबसे बड़ा है. इसे चलाने वाली गैरलाभकारी संस्था साल 1998 से सरकार के साथ मिलकर ऐसे केंद्र चला रही है. इस सरकारी कार्यक्रम में शामिल मार्टिन हिंनोजोसा कहते हैं, "कासा पेडरा में रहने वाले कुल बच्चों में से सिर्फ 5 फीसदी बच्चे ही ऐसे हैं, जिन्हें जबरन उनके मां-बाप से अमेरिका में घुसते वक्त अलग किया गया था."
वॉशिंगटन पोस्ट से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर सभी केंद्रों में रहने वाले कुल बच्चों के आंकड़ों पर नजर डालें, तो समझ आएगा कि ऐसे करीब 10 फीसदी बच्चे ही हैं. वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक देशभर में ऐसे शेल्टर्स में रहने वाले कुल बच्चों की संख्या करीब 5129 है. इनमें से करीब 500 बच्चों को जबरन मां-बाप से अलग किया गया है.
हाल में जीरो टॉलरेंस नीति पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था, "यह डेमोक्रेट्स द्वारा दिए गए खराब कानूनों का नतीजा है. परिवारों को तोड़ना एक भयंकर बात है." आलोचक कहते हैं कि आप्रवासियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कोई नई बात नहीं है. लेकिन आज तक कानूनों को इस तरह से लागू नहीं किया गया. साथ ही कोई भी कानून परिवारों को अलग करने की वकालत नहीं करता.
कैथोलिक चर्च ने भी बच्चों को मां-बाप से अलग करने की नीति को अनैतिक करार दिया है. वहीं सारा सैंडर्स ने पत्रकारों के साथ एक तीखी बातचीत में कहा, "किताबों में ऐसे कानून सालों से लिखे हुए हैं, राष्ट्रपति उन्हें बस लागू कर रहे हैं." लेकिन आप्रवासियों के मुद्दों को लेकर काम करने वाली संस्थाएं बच्चों के इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रहीं हैं. वहीं संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय इस नीति को मानवाधिकार सिद्धांतो के खिलाफ बता रहा है.
अपने लोग ही ट्रंप से हो रहे खफा
दुनिया को आए दिन अपने नये फैसलों से चौंकाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप स्वयं अमेरिकी लोगों की भी समझ में कम आ रहे हैं.
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कितने सही ट्रंप
सीएनएन के एक सर्वेक्षण मुताबिक, अमेरिका के सिर्फ 35 प्रतिशत लोगों ने ही ट्रंप को सही ठहराया है. सर्वेक्षण के मुताबिक मार्च में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद 45 प्रतिशत लोगों ने ट्रंप को पसंद किया था, लेकिन अब उनकी लोकप्रियता में भारी कमी आई है.
तस्वीर: Getty Images/M. Wilson
पसंद नहीं तरीका
सर्वे में शामिल 59 फीसदी लोगों ने कहा कि राष्ट्रपति के तौर पर वे ट्रंप के कार्य करने के तरीके को पसंद नहीं करते. ये अब तक के किसी भी राष्ट्रपति को मिली सबसे कम रेटिंग है.
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इन्हें किया खूब पंसद
पहला साल आमतौर पर सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए अब तक मोटा-मोटी बेहतर ही माना जाता रहा. पहले वर्ष में जॉर्ज डब्ल्यू बुश सीनियर को 86 प्रतिशत, जॉन एफ कैनेडी को 77 प्रतिशत, जॉर्ज डब्ल्यू बुश को 71 प्रतिशत और ड्वाइट आइजनहावर को 69 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया था.
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ट्रंप से रहे बेहतर
रिचर्ड निक्सन, जिमी कार्टर, बिल क्लिंटन और बराक ओबामा समेत अन्य पूर्व राष्ट्रपतियों को उनके कार्यकाल के पहले वर्ष में 50 फीसदी से ज्यादा लोगों ने सराहा था.
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घर में धाक
ट्रंप अपनी पार्टी में तो 85 फीसदी सहयोग जुटाने में कामयाब रहे लेकिन विरोधी उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते. महज 4 फीसदी डेमोक्रैट्स और 33 फीसदी ही निर्दलीय समर्थन उन्हें समर्थन देते नजर आते हैं.
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कितने लोग थे शामिल
14-17 दिसंबर के बीच हुए इस सर्वे में एक हजार से भी अधिक लोगों को शामिल किया गया. इन लोगों की फोन, मोबाइल या इंटरव्यू के जरिए राय ली गई.