विश्व स्वास्थ्य संगठन जन्म के बाद कम से कम छह महीने तक शिशु को स्तनपान कराने की सलाह देता है. लेकिन अगर इस दौरान मां गांजा फूंकती हो, तो?
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स्तनपान के दौरान अकसर महिलाओं को अपने खाने पीने पर खास ध्यान देने को कहा जाता है. माना जाता है कि मां के खानपान का शिशु पर गहरा असर होता है. एक नए शोध के अनुसार जो महिलाएं स्तनपान के दौरान गांजे का सेवन करती हैं, उनके बच्चों के मस्तिष्क के विकास पर असर होता है.
विशेषज्ञों के मुताबिक गांजे में टीएचसी नाम का रासायन होता होता है, जिसका प्रभाव बच्चे के मस्तिष्क में मौजूद विकास कोशिकाओं पर पड़ सकता है. हालांकि यह असर कितना है, इस पर और शोध होने की जरूरत है. फिलहाल इसके ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं.
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में हुए इस शोध में स्तनपान कराने वाली ऐसी 50 महिलाओं को शामिल किया गया, जो गांजा लेती रहीं है. लैब परीक्षण के दौरान इनके सैंपल में टीएचसी के कुछ अंश पाए गए. शोधकर्ता कहते हैं, "परीक्षण के बाद इस बात का संदेह जाहिर किया जा सकता है कि नवजातों का टीएचसी और कैनिबॉल से जुड़ना उनके मस्तिष्क विकास पर प्रभाव डाल सकता है."
रिपोर्ट की सह-लेखिका क्रिस्टीना चैम्बर्स का कहना है कि कई साल पहले की तुलना में आज वाला गांजा ज्यादा शक्तिशाली है. हालांकि ये अब तक साफ नहीं हो सका है कि गांजे की कितनी मात्रा नुकसानदेह है. क्रिस्टीना बताती हैं कि रिसर्च टीम उन बच्चों की भी स्टडी कर रही है, जिनकी मांए गांजा पीती हैं.
इस दिशा में 1980 के दशक में दो शोध हो चुके हैं लेकिन ये दोनों ही एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं. उस वक्त की एक स्टडी के मुताबिक गांजे के इस्तेमाल से नवजातों के विकास पर कोई असर नहीं होता, तो वहीं दूसरी स्टडी विकास में मामूली देरी की बात मानती है.
इन सवालों से घिरे रहते हैं जर्मन माता पिता
बच्चे को पालने का सही तरीका क्या हो? उन्हें कब क्या खिलाया जाए? मां बाप अकसर ऐसे सवालों से घिरे रहते हैं. जानिए, भारत की तुलना में कितना अलग है जर्मनी में बच्चा पालना.
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नाम कैसा हो?
जर्मनी हो या भारत, बच्चे का नाम हमेशा ही एक बड़ा मुद्दा बना रहता है. नाम पारंपरिक भी हो और साथ ही मॉडर्न भी. कहीं माता पिता कोई ऊलजलूल नाम ना रख दें, इसलिए जर्मनी में ऐसे नामों की एक लिस्ट भी है, जिन्हें रखने की अनुमति नहीं है.
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दूध कहां पिलाएं?
हालांकि जर्मन लोगों को इससे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो महिलाओं को सरेआम अपने बच्चे को दूध पिलाने का हक देता हो. कभी कभार ऐसे मामले भी देखे गए हैं जहां रेस्तरां में महिलाओं को ऐसा करने से मना किया गया.
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कब तक पिलाएं?
बच्चे को दूध पिलाने के मामले में भारत को दुनिया के सबसे उदार देशों में माना जाता है. जर्मनी में बच्चा पैदा होने पर माओं से पूछा जाता है कि वे अपना दूध पिलाना पसंद करेंगी या नहीं. कम ही महिलाएं एक साल से ज्यादा बच्चे को अपना दूध पिलाती हैं.
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कौन सा किंडरगार्टन?
जर्मनी में बच्चा होने पर काम से लंबी छुट्टी मिलती है. एक साल तक माता पिता में से कोई एक घर पर रह सकता है. इसके बाद किंडरगार्टन की जरूरत पड़ती है. यह घर के करीब हो या दफ्तर के, बच्चा कितने घंटे वहां बिताएगा, मां बाप के सामने ऐसे कई सवाल होते हैं.
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टीका लगाएं या नहीं?
भारत में इस तरह का सवाल नहीं होता. लोग जानते हैं कि टीका लगवाना जरूरी है. लेकिन जर्मनी समेत कई पश्चिमी देशों में ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है कि टीके से बच्चा बीमार हो सकता है. हालांकि जर्मनी में 96 फीसदी लोग अपने बच्चों को टीका लगवाते हैं.
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रोने दें या नहीं?
90 के दशक में जर्मनी में एक किताब आई जिसका शीर्षक था, "हर बच्चा सोना जानता है". इस किताब के अनुसार बच्चा जब रोए, तो उसे रोने दें. आखिरकार वो खुद ही सो जाएगा. यह किताब खूब बिकी और लोग ऐसा करने भी लगे. हालांकि नए शोध इसे गलत बताते हैं.
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कहां सुलाएं?
कुछ लोग शुरू से ही बच्चे को अलग कमरे में या कम से कम अलग बिस्तर में सुलाते हैं, तो वहीं कुछ का मानना है कि बच्चे को सीने से लगा कर रखना चाहिए. ऐसे लोग घर से बाहर जाते समय भी बेबी बैग का इस्तेमाल करते हैं.
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कौन सा डायपर?
बगैर डायपर के शायद ही कोई बच्चा दिखे. लेकिन डायपर कैसा हो? कपड़े वाला या साधारण? सस्ता या महंगा? पेट्रोलियम वाला या ऑर्गेनिक? पार्क में जब माता पिता एक दूसरे से मिलते हैं, तो शायद सबसे ज्यादा चर्चा इसी विषय पर होती है.
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क्या खिलाएं?
बाजार में बच्चों को खिलाने के लिए कई तरह की चीजें मौजूद हैं. जिनके पास वक्त की कमी है, वे अकसर इनका सहारा लेते हैं. लेकिन जो लोग घर पर ही बच्चे का खाना बनाते हैं, उन्हें "अच्छे माता पिता" का दर्जा दिया जाता है.
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टीवी और स्मार्टफोन?
आज के जमाने में बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना बहुत मुश्किल है. टीवी, स्मार्टफोन और कंप्यूटर बच्चों के बड़े होने का हिस्सा हैं. लेकिन बच्चों को कितनी देर तक इनके सामने बैठने दिया जाए? सभी मां बाप अपनी समझ के हिसाब से फैसले लेते हैं.
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कितना मीठा?
पहले साल में ज्यादातर बच्चे को ना नमक दिया जाता है और ना ही चीनी. धीरे धीरे इनकी शुरुआत होती है और फिर एक वक्त ऐसा भी आता है जब बच्चे गर्मी के मौसम में हर रोज आइसक्रीम खाते हैं. लेकिन शाम छह बजे के बाद चीनी पर रोक होती है.
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क्रिस्टीना कहती हैं कि अब तक डॉक्टर स्तनपान को प्रोत्साहित करने के लिए इसके लाभों पर जोर देते रहे हैं लेकिन ऐसे मामलों में अब वे दुविधा में हैं. साइंस पत्रिका "पीडिऐट्रिक्स" में छपी अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडिऐट्रिक्स की यह ताजा रिपोर्ट अब भी स्तनपान को प्रोत्साहन देने की बात कहती है.
विशेषज्ञों का कहना है की माओं को स्तनपान को बढ़ावा देने और गांजे से दूर रहने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है. रिपोर्ट में कहा गया है, "जरूरी है कि हम आलोचनात्मक रुख न अपनाएं और लोगों को जागरूक करते हुए उन्हें संभावित खतरों से आगाह कराएं."
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में गर्भावस्था के दौरान हर 20 में से एक महिला गांजे का सेवन करती है. अमेरिका के नौ राज्यों में गांजा आम उपयोग के लिए कानूनी है. वहीं 31 राज्यों में चिकित्सीय स्तर पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.