बेटा यूरोप पहुंचकर फुटबॉलर बन जाए, बस. लेकिन सफर के दौरान बेटा मारा गया और तस्करों ने उसे समंदर में फेंक दिया. सेनेगल की अदालत ने अब बच्चे के पिता को सजा सुनाई है.
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पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल में अपने बेटों को यूरोप भेजने वाले तीन पिताओं को जेल की सजा सुनाई गई है. करीब दो साल की सुनवाई के बाद अदालत ने तीनों पिताओं को दो-दो साल जेल की सजा सुनाई. तीनों को "दूसरों का जीवन खतरे में डालने" का दोषी करार दिया गया.
अदालत ने माना कि तीनों पिताओं को पता था कि बच्चों को अंटलांटिक महासागर के जरिए यूरोप भेजने में जोखिम था, फिर भी उन्होंने ऐसा किया. पिताओं ने बच्चों को यूरोप ले जाने के लिए तस्करों को पैसा भी दिया. मामले का पता 15 साल के बच्चे डोडो की मौत के बाद चला.
2018 में नाव के जरिए अटलांटिक महासागर पार करने की कोशिश के दौरान डोडो की तबियत बिगड़ गई. उसे कोई इलाज नहीं मिला और उसकी मौत हो गई. तस्करों ने डोडो का शव समंदर में फेंक दिया.
गरीबी से निकलने की छटपटाहट
जांच में पता चला कि डोडो के पिता ने एक तस्कर को 380 यूरो दिए थे. तस्कर ने डोडो को स्पेन की फुटबॉल ट्रेनिंग एकेडमी पहुंचाने के वादा किया था. डोडो के साथ और परिवारों के बेटे भी थे. उनसे भी तस्करों ने एक बच्चे को इटली के फुटबॉल ट्रेनिंग सेंटर में भर्ती करवाने का वादा किया था. तीनों पिता मछुआरे हैं.
कैनरी द्वीप पर घुसने की नाकाम कोशिशों के बाद दो बच्चे लौट आए और उन्होंने डोडो की दर्दनाक कहानी बताई. इसके बाद डोडो के समर्थन में सेनेगल में प्रदर्शन हुए. गरीबी और किसी तरह यूरोप पहुंचने के दबाव को लेकर अभियान छिड़ गए.
अदालती सुनवाई के दौरान डोडो के पिता ने कोर्ट से कहा, "मैं उसके लिए सफलता के दरवाजे खोलना चाहता था. मैं दुआ के लिए उसे ओझाओं के पास भी लेकर गया. अगर मुझे पता होता कि वह कभी नहीं लौटेगा तो मैं ऐसा जोखिम हरगिज नहीं लेता."
बेटे की मौत से टूटे पिता ने अदालत में गिड़गिड़ाते हुए कहा, "मैं आपके सामने हूं लेकिन मेरी आत्मा मुझे पहले ही छोड़ चुकी है."
अफ्रीका और यूरोप के बीच जानलेवा समंदर
सेनेगल के तट से 100 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर स्पेन के कैनरी द्वीप हैं. यूरोप आने की चाहत रखने वाले कई अफ्रीकी किसी तरह इन द्वीपों तक पहुंचना चाहते हैं. तस्कर उन्हें खचाखच भरी कच्ची पक्की नावों में सवार करते हैं और अंधेरे में कैनेरी द्वीप के तटों पर उतरने के लिए मजबूर करते हैं.
यूएन के इंटरनेशनल ऑफिस फॉर माइग्रेशन के मुताबिक 2020 में इस कोशिश में 500 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. पिछले साल यह संख्या 210 थी. वहीं दूसरी तरफ शरणार्थियों की बढ़ती संख्या की वजह से यूरोप में दक्षिणपंथी राजनीति तेज हुई है. अब यूरोपीय देश आप्रवासियों को अपने तटों से दूर रखने की भरसक कोशिशें कर रहे हैं.
जन्मभूमि हर किसी को प्यारी होती है. लेकिन हिंसा, भुखमरी और तंगहाली के कारण अक्सर लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. देखिए ऐसे ही कुछ लोगों का सफर.
तस्वीर: picture-alliance/A. Emric
गरीबी और ठंड से संघर्ष
ये लोग बोस्निया हर्जगोविना से क्रोएशिया जा रहे हैं. बोस्निया हर्जगोविना की आर्थिक हालत खस्ता है. वहीं क्रोएशिया यूरोपीय संघ का हिस्सा है. बेहतर भविष्य की तलाश में लोग कड़ाके की सर्दी में मीलों पैदल चलकर बॉर्डर पार करने की कोशिश करते हैं. इस दौरान कुछ लोग बर्फीले तूफान में दम भी तोड़ देते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/A. Emric
उम्मीदों का ट्रक
यह तस्वीर मध्य अमेरिका की है. हिंसा और भुखमरी के चलते लोग होंडूरास, निकारागुआ, अल सल्वाडोर और ग्वाटेमाला छोड़ रहे हैं. उनकी मंजिल अमेरिका है. लेकिन वहां अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अवैध अप्रवासन के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है. किसी तरह अमेरिका पहुंचने की कोशिश में ज्यादातर मेक्सिको सीमा में ही फंसे रह जाते हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Garcia Rawlins
बिखर गए सपने
ऑस्ट्रेलिया की सरकार नहीं चाहती कि उनके यहां रिफ्यूजी आएं. वहां से बड़ी संख्या में शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजा जा रहा है. डिपोर्टेशन को लेकर ऑस्ट्रेलिया ने प्रशांत क्षेत्र के कई देशों से समझौता भी किया है. वापस भेजने से पहले रिफ्यूजियों को कैंप में रखा जाता है. जान जोखिम में डालकर ऑस्ट्रेलिया पहुंचे ऐसे लोग इन कैंपों में बड़ी बुरी मनोदशा में होते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Hass Hassaballa
कोई सुध बुध लेने वाला नहीं
हुसैन आबो शानान 80 साल के हैं. वह कई दशकों से जॉर्डन में बतौर फलस्तीनी रिफ्यूजी रह रहे हैं. जॉर्डन की आबादी की करीब एक करोड़ है, जिसमें रिफ्यूजियों की संख्या 23 लाख है. कुछ तो 1948 से वहां रह रहे हैं. उन्हें अपनी मिट्टी पर लौटने की कोई उम्मीद नहीं है और जॉर्डन में दशकों बाद भी उन्हें पूरे अधिकार नहीं मिले हैं.
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तेल से समृद्ध देश के गरीब नागरिक
वेनेजुएला के पास बड़ी मात्रा में तेल और गैस के भंडार हैं. लेकिन कारोबारी प्रतिबंधों के चलते देश आर्थिक तंगी, दवाओं की कमी और महंगाई का सामना कर रहा है. ज्यादातर नागरिक देश छोड़ने की फिराक में हैं. उनका आखिरी ठिकाना कोलंबिया होता है.
तस्वीर: DW/F. Abondano
सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप
दुनिया का सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप बांग्लादेश के कुतुपलोंग में है. म्यांमार से भागने वाले ज्यादातर रोहिंग्या मुस्लिम यहीं रहते हैं. बांग्लादेश आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है, रिफ्यूजी संकट ने उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है.
तस्वीर: Jibon Ahmed
पड़ोस की अशांति का असर
मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक खनिजों से भरा है. वहां की जमीन भी उपजाऊ है. लेकिन पड़ोसी देशों में छिड़े युद्ध, जातीय हिंसा और आतंकवाद ने राजधानी बांगी को विस्थापितों से भर दिया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Blackwell
गरीब देश पर और बोझ
लंबे समय तक गृहयुद्ध ने युगांडा को झुलसाए रखा. लेकिन अब अन्य अफ्रीकी देशों के मुकाबले वहां हालात काफी सामान्य हुए हैं. इसी वजह से युगांडा अब दक्षिणी सूडान के लोगों का ठिकाना सा बन गया है. जान बचाने के लिए हजारों सूडानी नागरिक युगांडा में रिफ्यूजी की जिंदगी जी रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Wire/J. Merida
पहुंच गए यूरोप
स्पेन के मलागा पहुंचे इन रिफ्यूजियों को रेड क्रॉस प्राथमिक उपचार दे रहा है. अफ्रीका से भागकर यूरोप आने वाले ये लोग जान जोखिम में डालकर समंदर पार करते हैं. पहले वे लीबिया के रास्ते आते थे. सैकड़ों रिफ्यूजियों के लीबिया में कैद होने के बाद अब नए रिफ्यूजी अल्जीरिया या मोरक्को के रास्ते यूरोप के लिए निकलते हैं. (रिपोर्ट: कार्स्टन ग्रुन/ओएसजे)