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बटन दबाया और स्टेडियम में आ गई घास

२५ नवम्बर २०१७

जर्मनी के स्टेडियम में तकनीक के लिहाज से अपने आप में अनूठे हैं. कहीं घास वाली मैदान को खिसका कर हटाया जा सकता है तो कहीं, पूरे स्टेडियम के ऊपर छत लगाई जा सकती है. खास तकनीक ये सब मुमकिन बनाती है.

Fußballstadien in Deutschland- Allianz Arena in München
तस्वीर: picture-alliance/SvenSimon

म्यूनिख का अलियांस एरीना देश का दूसरा सबसे बड़ा और अत्यंत आधुनिक स्टेडियम है. रोशनी में नहाता म्यूनिख का अलियांस एरीना दूर से फुलाये गये प्लास्टिक के डब्बे जैसा दिखता है. डॉर्टमुंड में देश के सबसे बड़े स्टेडियम में घास को सूरज जैसी कृत्रिम रोशनी देकर हरा भरा रखा जाता है. शाल्के के स्टेडियम की खासियत मोबाइल फील्ड है. स्टेडियम अब इस तरह इसलिए बनाये जा रहे हैं कि उनका इस्तेमाल सिर्फ मैचों के लिए नहीं होता.

तस्वीर: DW/A.Götzmann

यूरोप के आधुनिकतम स्टेडियमों में फुटबॉल मैचों के अलावा दूसरे खेल और पॉप कंसर्ट भी आयोजित हो सकते हैं. अलियांस एरीना के तकनीकी प्रमुख उलरिष डार्गेल बताते हैं, "हमारे यहां गुरुवार को एक आयोजन हुआ जिसमें ब्रूस स्प्रिंग्स्टीन ने 60,000 दर्शकों के सामने गाना गाया. शनिवार को हमारा घरेलू मैदान वाला मैच हुआ और रविवार को अमेरिकन फुटबॉल मैच. एक हफ्ते के अंदर यहां तीन आयोजनों में हिस्सा लेने डेढ़ लाख से ज्यादा लोग आये."

अलग अलग आयोजन करा पाने की क्षमता कमाई के लिए जरूरी है. स्टेडियम की ग्लास फाइबर से बनी विशेष प्रकार की छत के दोनों पारदर्शी हिस्से मौसम खराब होने पर स्टेडियम को ढकने के काम आते हैं. जब बड़े कंसर्ट हों तो संगीत उपकरणों को बरसात से बचाना जरूरी होता है. छत को खोलने में 30 मिनट लगते हैं. करीब 4,000 वर्गमीटर बड़ी छत के हिस्सों का वजन करीब 2,000 टन है.

तस्वीर: picture-alliance/Sven Simon

स्टेडियम का फील्ड भी अनूठा है. इसे बनाने वालों को इस पर नाज है. केक की तरह उसे एरीना में यहां वहां खिसकाया जा सकता है. उलरिष डार्गेल बताते हैं, "11,000 टन भारी घास का मैदान हाइड्रॉलिक मशीन की मदद से एरीना में ले जाया जाता है. इसमें साढ़े तीन घंटे लगते हैं." इसके लिए कंक्रीट के बेस में टेफ्लॉन के कवर वाला स्टील का ट्रैक लगाया गया है. उसके ऊपर घास वाली विशाल तश्तरी खिसकायी जाती है. बटन दबाते ही पिलर पर स्थित ट्रैक हाइड्रोलिक की मदद से मूव करने लगता है

8 टन भारी मशीन के चार हाइड्रोलिक सिलिंडर मैदान को जमीन से बाहर निकालते हैं और उसे 75 सेंटीमीटर के हिसाब से खिसकाते हैं. इस तरह मैदान को 180 मीटर दूर अंतिम पोजीशन पर पहुंचाया जाता है. जर्मनी के इस सबसे महंगे स्टेडियम के निर्माण में तीन साल लगे. कीमत थी 34 करोड़ यूरो यानि करीब 25 अरब रुपये. एरीना के खोल के नीचे छुपा है अपने तरह का अकेला लाइट कंस्ट्रक्शन. म्यूनिख का ये स्टेडियम अच्छे मौसम वाली रातों में 100 किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Müller

जर्मन फुटबॉल के इस किले को सफेद, लाल और नीली रोशनी में नहाया देखकर दूसरे क्लबों के फैन भी उसकी तारीफ किये बिना नहीं रहते. रोशनी के इस खेल को करीब 1,000 एयर बफर संभव बनाते हैं. एयर बफर के पीछे स्टेडियम के चारों ओर साढ़े तीन मीटर बड़े क्युबिकल्स में करीब 25,000 इन्वर्टर रखे गये हैं. उनकी रोशनी अगल बगल रखी सफेद, लाल और नीली शीशे की प्लेटों के पीछे से चमकती रहती है. एक खास तौर पर विकसित सॉफ्टवेयर प्रोग्राम रोशनी के खेल को रेगुलेट करता है. इसकी मदद से स्टेडियम की रोशनी को सेकंड भर में बदला जा सकता है.

और डॉर्टमुंड के स्टेडियम में 80,000 दर्शकों के लिए जगह है. लेकिन ऊंचाई में बनी संरचना स्टेडियम में घास के बढ़ने के लिए पर्याप्त रोशनी नहीं आने देती. इंजीनियरों ने हल ये निकाला है कि घास तक कृत्रिम रूप से सूर्य की किरणें पहुंचायी जाती हैं. 8,000 वर्गमीटर घास के मैदान के लिए विली ड्रोस्टे जिम्मेवार हैं. "सूरज की रोशनी देने वाली मशीन की मदद से मौसम खराब रहने पर या सर्दियों में जब सूरज ही नहीं उगता, तब भी कृत्रिम रूप से घास को पर्याप्त रोशनी दी जा सकती है. हम ज्यादा घंटों तक रोशनी दे सकते हैं. इस तरह से घास पूरे साल नियमित रूप से बढ़ती है."

स्टेडियम में सूरज की रोशनी देने वाली 9 मशीनें लगाई गयी हैं जो मैदान के पूरे हिस्से को कवर करती हैं और घास को बढ़ने में मदद देती हैं. दिन में कई बार लैंपों वाला ढाई टन भारी फ्रेम मैदान पर लाया जाता है. इस तरह घास के हर टुकड़े को रोशनी में नहलाया जाता है. यह जड़ों को भी अंकुरण में मदद देता है, जो लंबे समय तक चलने वाली स्वस्थ घास के लिए बहुत जरूरी है. घास की हीटिंग के चलते डॉर्टमुंड में घास की देखभाल करने वालों का पांव ठंडा नहीं होता.

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