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बड़े बेआबरू होकर निकले बैर्लुस्कोनी

१३ नवम्बर २०११

इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बैर्लुस्कोनी ने इस्तीफा दे दिया है. अब कार्यवाहक सरकार बनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं. रविवार को दिनभर बैर्लुस्कोनी का उत्तराधिकारी खोजा जाएगा जो वित्तीय संकट में फंसे देश को संभाल सके.

तस्वीर: dapd

उम्मीद की जा रही है कि राष्ट्रपति जॉर्जियो नापोलीतानो पूर्व यूरोपीय आयुक्त मारियो मोंटी को तकनीकी जानकारों की एक सरकार बनाने के लिए कह सकते हैं. मारियो एक जानेमाने अर्थशास्त्री हैं.

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अपमानजनक विदाई

17 साल तक इटली की राजनीति पर छाए रहे बैर्लुस्कोनी की विदाई सुखद नहीं रही. जब वह इस्तीफा सौंपने राष्ट्रपति निवास किरिनाले पैलेस जा रहे थे तो उन्हें तानों और अपमानजनक नारों का सामना करना पड़ा. यूं भी पिछले कुछ हफ्ते उनके सबसे मुश्किल हफ्ते रहे. एक तरफ उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव झेलना पड़ रहा था क्योंकि सभी देश उनसे वित्तीय संकट से निकलने के लिए फौरन कदम उठाने को कह रहे थे. और फिर घरेलू मोर्चे पर भी उनका समर्थन लगातार गिरता चला गया. बीते मंगलवार को संसद में हुई वोटिंग से यह जाहिर हो गया कि अब वह पूरी तरह समर्थन खो चुके हैं और तब से बस इसी बात का इंतजार किया जा रहा था कि वह कब इस्तीफा देते हैं.

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बैर्लुस्कोनी के इस्तीफा देने से पहले ही नई सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो गई थीं. संसद की आजीवन सदस्यता पाए मोंटी ने पिछले हफ्ते यूरोपीय केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष मारियो द्रागी से मुलाकात की थी. शनिवार को वह अन्य पार्टियों के नेताओं से भी मिले ताकि बैर्लुस्कोनी के बाद नई सरकार को सत्ता सौंपी जा सके. हालांकि मोंटी को अभी आधिकारिक तौर पर नामांकित नहीं किया गया है लेकिन उन्हें कई विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है. बैर्लुस्कोनी की दक्षिणपंथी पार्टी पीडीएल भी उन्हें सशर्त समर्थन देने को राजी हो गई है. पीडीएल सांसद मारियो बाचिनी ने कहा, "आखिरकार सभी को अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ. अगर मोंटी सरकार यूरोपीय संघ के साथ किए गए पिछली सरकार के सुधारों के वादे निभाने को तैयार होती है तो पीडीएल उसका समर्थन करेगी."

तस्वीर: picture alliance / dpa

भविष्य डांवाडोल

देश में अभी चुनाव काफी दूर हैं. 2013 के चुनावों से पहले तकनीकी जानकारों की सरकार को 18 महीने का वक्त मिल सकता है. हालांकि यह वक्त सुखद नहीं होगा क्योंकि यूरोपीय संघ की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इटली वित्तीय बर्बादी के कगार पर खड़ी है. उसके पास अपने कर्जे चुकाने के लिए पैसा नहीं है. और अगर इटली विफल हो जाता है तो पहले यूरो जोन, फिर यूरोपीय संघ और उसके बाद पूरा यूरोप इस भंवर की चपेट में आ सकता है. बाकी दुनिया भी इससे अछूती नहीं रहेगी. इसलिए पूरी दुनिया की निगाहें उस ओर लगी हुई हैं. समस्या यह है कि इटली को राहत पैकेज देना यूरोपीय संघ के लिए भी आसान नहीं है. हाल ही में उसने आयरलैंड, पुर्तगाल और ग्रीस को राहत पैकेज देकर संकट से निकाला है. लेकिन इटली के लिए बहुत ज्यादा रकम की जरूरत होगी.

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अब यह बैर्लुस्कोनी के उत्तराधिकारियों की जिम्मेदारी है कि सबसे पहले तो वित्तीय बाजारों को इस बात का भरोसा दिलाया जाए कि इटली संकट से उबरने की क्षमता रखता है और नई सरकार खर्चों को काबू कर और पेन्शन, सार्वजनिक सेवाओं और श्रम बाजारों में सुधार जैसे नए कदम उठाकर स्थिति को नियंत्रण में कर सकती है.

मोंटी के नेतृत्व में तकनीकी जानकारों की सरकार चुनाव प्रचार अभियान जैसी चीजों से बचना चाहेगी क्योंकि इससे बाजारों में और ज्यादा अस्थिरता पैदा होगी. लेकिन इस सरकार का भविष्य संसद में मिलने वाले समर्थन पर निर्भर करेगा.

रिपोर्टः रॉयटर्स/एपी/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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