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बढ़ता भारत-अफगान मीडिया सहयोग

२ अप्रैल २०१३

बच्चों के लोकप्रिय धारावाहिक सेसमी स्ट्रीट को लेकर अफगान और भारतीय निर्माता दिल्ली के एक स्टूडियो में माथापच्ची कर रहे हैं. इस सीरियल को अफगान संस्कृति के हिसाब से ढालने की चुनौती है और इसमें भारतीयों का रोल बढ़ रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जिस देश में सिर्फ 50 फीसदी लोग साक्षर हैं, उन्हें ट्रेनिंग देने के साथ साथ इस बात का भी ख्याल रखा जाना है कि संस्कृति की दीवार कितनी मजबूत है. अफगान निर्माताओं को लगता है कि भारतीयों की हिस्सेदारी से उनकी सांस्कृतिक विरासत को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा, ताकि उनके दर्शकों को किसी तरह का सांस्कृतिक झटका न लगे.

अफगानिस्तान में 2011 में एक शो को सफलतापूर्वक चला चुके निर्माता सैयद फरहाद हाशमी अब सेसमी स्ट्रीट को बागे सिमसिम के नाम से शुरू करना चाहते हैं. उनका कहना है कि धार्मिक भावनाओं वाले देश में किसी भी कार्यक्रम को पेश करते हुए खास ध्यान रखना जरूरी होता है, "मां बाप टेलीविजन पर नियंत्रण रखते हैं और अगर कुछ उनके लिए नापसंद हुआ, तो वे टीवी बंद कर देते हैं."

हेरात में थियेटरतस्वीर: DW/Sharafyar

हाशमी कहते हैं कि वे ऐसा नहीं चाहते और इसलिए कार्यक्रम को लेकर सरकार और मां बाप की राय का भी ध्यान रखा जाता है, "ज्यादातर जगहों पर स्कूल भी नहीं खुले हैं और इसलिए हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है." अमेरिकी धारावाहिक सेसमी स्ट्रीट को पाकिस्तान से लेकर तंजानिया और तुर्की तक में दिखाया जाता है. भारतीय संस्करण की इरा जोशी का कहना है, "हमारा उद्देश्य है कि बच्चों को स्थानीय चीजों का बोध हो."

भारतीय और अफगान निर्माता इस उधेड़बुन में लगे हैं कि सीरियल के उस सीन को कैसे तैयार किया जाए, जिसमें सात साल की एक लड़की अफगानिस्तान का पारंपरिक नृत्य सीख रही है. अफगान मूल के कनाडियाई निर्माता मीना शरीफ का कहना है, "हमें उसके प्रैक्टिस में उसके भाई को भी शामिल कर लेना चाहिए." अमेरिका का विदेश मंत्रालय इस सीरियल को तैयार करने के लिए पैसे दे रहा है और यह हफ्ते में चार दिन दोपहर के वक्त प्रसारित किया जाता है.

शरीफ का कहना है, "हमें पूरे परिवार को इसमें शामिल करना है, हर कोई ताली बजाएगा, यहां तक कि दादा भी." शुरू में निर्माताओं को डर लगा कि क्या कोई मां बाप बच्चों को डांस के लिए इजाजत देगा, क्योंकि अफगानिस्तान के लिए यह बेहद संजीदा और संवेदनशील मुद्दा है. लिहाजा तय हुआ कि पूरे परिवार को ही इसमें शामिल कर लिया जाए. लेखकों का कहना है कि अगर बहन भाई साथ में डांस करेंगे तो लैंगिक समानता का भी संदेश जाएगा. अफगानिस्तान में औरतों की हालत बेहद खराब है.

पाकिस्तान में सेसमी स्ट्रीटतस्वीर: Tanvir Shahzad

अमेरिका में 1969 में इस सीरियल की शुरुआत हुई, जो पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुआ. इससे जुड़ी लीलिथ डोलार्ड का कहना है, "जैसे ही आप लड़के को इसमें शामिल करेंगे, लैंगिक समानता का पुट अच्छी तरह पेश किया जा सकेगा. हमारे लिए यह बहुत जरूरी मुद्दा है."

निर्माताओं का कहना है कि अफगानिस्तान में बागे सिमसिम को तीन से सात साल के दस लाख बच्चों के लिए बनाया जा रहा है. लेकिन इसके दर्शक इससे कहीं ज्यादा होंगे क्योंकि इस सीरियल को पूरा परिवार देखेगा.

हाशमी का कहना है, "पहले दिन के स्कूल का अनुभव बांटने के लिए हमने एक लड़की को रोल मॉडल चुना है, जो अपने मां बाप के साथ स्कूल जाती है. हमने इसके लिए लड़के को नहीं चुना है."

शो को हिट बनाने के लिए थोड़े बहुत गाने भी डाले गए हैं. डोलार्ड का कहना है कि इसे भारी भरकम संदेश वाला प्रोग्राम नहीं, बल्कि मजेदार प्रोग्राम बनाना जरूरी है.

एजेए/एनआर (एएफपी)

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