बोकुल मंडल और उनके परिवार के लिए समुद्र के किनारे मीट्टी की बनी उनकी छोटी सी झोपड़ी में किसी तरह से पूरा परिवार सोता है. समुद्र के बढ़ते स्तर ने उनसे अब तक बहुत कुछ छीन लिया है और आगे शायद बचा खुचा भी कुछ ना रहे.
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समुद्र के खारे पानी ने काफी पहले ही मंडल के परिवार की करीब 5 एकड़ खेती लायक जमीन को तबाह कर दिया. मंडल के पूर्वज पहले भारत के बाली द्वीप पर इस जगह धान की अच्छी खेती करते थे और तालाबों में मछली पालते थे. फूस के छप्पर वाली उनकी झोपड़ी सार्वजनिक जमीन पर बनी है. पिछले पांच सालों में बनी यह पांचवी झोपड़ी है. हर साल समुद्र का तल बढ़ने के कारण उन्हें अपना ठिकाना बदलना पड़ता है. मंडल बताते हैं, "हर साल हमें थोड़ा और अंदर की ओर खिसकना पड़ता है."
आंकड़े बताते हैं कि सुंदरबन में समुद्र स्तर विश्व औसत दर से दोगुनी दर पर बढ़ रहा है. सुंदरबन एक गहरा-डेल्टा क्षेत्र है जहां से बंगाल की खाड़ी में करीब 200 द्वीप बनते हैं. इन द्वीपों में आज भी लगभग 1.30 करोड़ गरीब भारतीय और बांग्लादेशी लोग रहते हैं. मंडल जैसे लाखों लोग बेघर हो चुके हैं और वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले 15 से 25 सालों में पूरा सुंदरबन पानी के नीचे डूब सकता है.
जलवायु परिवर्तन से डूबते द्वीप
पर्यावरण में परिवर्तनों के कारण समुद्र के जलस्तर बढ़ रहा है जिससे कई तटीय इलाकों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है. इस सहस्त्राब्दी के अंत तक समुद्र का स्तर 26 से 82 सेंटीमीटर के बीच बढ़ जाएगा.
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डूबता स्वर्ग
हिन्द महासागर में स्थित मालदीव अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर है. पृथ्वी पर यह भौगोलिक रूप से सबसे निचला द्वीप है. समुद्रीय स्तर से मात्र डेढ़ मीटर ऊंचा यह द्वीप पानी के बढ़ते स्तर के कारण शायद बहुत जल्द रहने लायक भी नहीं बचेगा.
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समुद्र के नीचे
पानी का स्तर बढ़ने से द्वीपों पर रहने वाले कई परिवार ऊपरी ठिकानों की तरफ बढ़ने लगे हैं. प्रशांत महासागर में बसे कीरिबाटी द्वीप के कई गांव बाढ़ में पूरी तरह डूब जाते हैं. नमकीन पानी से किसानों की फसलें भी बरबाद हो रही हैं.
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पानी से बचाव
कीरिबाटी एक लाख तीस हजार लोगों का घर है. यहां से विस्थापित हुए लोग अक्सर दक्षिणी तरावा के द्वीप पर पनाह पाते हैं. यहां निचले इलाकों को पानी से बचाने के लिए बांध बनाए गए हैं लेकिन ये भी कोई स्थायी इंतजाम नहीं.
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लहरें तट तक ही रहें
समुद्र से शहरों की रक्षा के लिए डच खास कर जाने जाते हैं. उनके यहां बाढ़ से रक्षा के लिए पहला घेरा 1000 साल पहले बनाया गया था. इसी के कारण आज लोग वहां कई क्षेत्रों में निचले इलाकों में रह पा रहे हैं. हालांकि नीदरलैंड्स में और बेहतर बांध बनाने की योजना जारी है.
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डूबती विश्व धरोहर
इटली के वेनिस शहर में बाढ़ का आना कोई अनोखी बात नहीं है. खूबसूरती का बेमिसाल नमूना यह शहर धीरे धीरे डूबता जा रहा है. विश्व धरोहर को बचाने के लिए 9.6 अरब यूरो का निवेश किया जा चुका है. यह काम 2016 तक पूरा होने की उम्मीद है.
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करैबियाई संकट
कई छोटे द्वीपों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे पर्यावरण परिवर्तन के महंगे कार्यक्रमों को अंजाम देने के लिए बड़े कदम उठा सकें. उन्हें न सिर्फ बाढ़ का खतरा रहता है बल्कि समुद्र से उठने वाले भयानक तूफान भी उनकी तरफ लपकते रहते हैं.
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बढ़ रहे हैं तूफान
पिछले साल फिलीपींस में हैयान तूफान से हुई तबाही बढ़ते खतरे की गवाह है. इस तूफान में 6200 लोग मारे गए और हजारों बेघर हुए.
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बढ़ता पर्यावरण संकट
इस बारे में चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी है कि पश्चिम के बढ़ते औद्योगिकरण का खामियाजा कम विकसित और कमजोर देश उठा रहे हैं. वारसा सम्मेलन में फिलीपींस के पर्यावरण परिवर्तन आयुक्त येब सांयो ने अपील की कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जल्द जरूरी कदम उठाए जाएं.
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बाढ़ में तैरती जिंदगी
अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण बांग्लादेश पर पर्यावरण परिवर्तन के प्रभावों का भारी खतरा है. समुद्र का स्तर एक मीटर चढ़ने का मतलब है आधे देश का पानी में डूब जाना. बढ़ती बाढ़ों के बीच किसानों ने पानी में तैरती खेती की तकनीक अपनाना शुरू कर दिया है.
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शरणार्थियों की नई प्रकार
इस बात का खतरा बढ़ रहा है कि जैसे जैसे समुद्र स्तर बढ़ेगा समुदायों का विस्थापन बढ़ेगा. हो सकता है कुछ दिनों में दुबई के जैसे कृत्रिम टापुओं को शरणार्थियों के लिए तैयार करना पड़े.
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विश्व बैंक के साथ काम करने वाले दिल्ली स्थित पर्यावरण विशेषज्ञ तापस पॉल बताते हैं कि इससे लाखों "क्लाइमेट रिफ्यूजी" इलाके को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे. इससे भारत और बांग्लादेश दोनों सीमावर्ती देशों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी होगी. विश्व बैंक हर साल करोड़ों डॉलर खर्च कर सुंदरबन इलाके में नुकसान का अंदाजा लगाने और उससे निपटने की योजना बनाने की कोशिश कर रहा है. पॉल कहते हैं, "अगर सुंदरबन के सभी लोगों को उनका घर छोड़ कर जाना पड़े तो यह मानव इतिहास में आज तक की सबसे बड़ी विस्थापन की घटना होगी." अब तक ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ा विस्थापन 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय हुआ था, जिसमें करीब एक करोड़ लोग के एक से दूसरे देश में जाकर बसे थे.
मंडल को नहीं पता कि वह कहां जाएंगे. उनके परिवार के छह सदस्य फिलहाल उन पड़ोसियों पर निर्भर हैं जिनकी जमीन अभी भी समुद्र ने नहीं ली है. ऐसे भी दिन आते हैं जब उन्हें खाने को कुछ भी नहीं मिलता. सूनी आंखों से पास ही समुद्र के दलदली किनारे को देखते मंडल कहते हैं, "पिछले दस सालों तक मैं समुद्र से लड़ता रहा, लेकिन अब सबकुछ जा चुका है."
सुंदरबन में डूबने के डर के साथ जी रहे निवासी बाघ, घड़ियालों, जहरीले सांपों और दलदली इलाकों में पाई जाने वाली खास तरह की विशालकाय मधुमक्खियों के खतरे से भी जूझते हैं. इस सबके बीच उनके लिए खेती या मछली पकड़ने जैसे जरूरी काम भी चुनौती बन चुके हैं. भारत की सीमा के करीब 50 लाख और बांग्लादेश के करीब 80 लाख लोग सुंदरबन के इस इलाके में जीने को मजबूर हैं.