दक्षिण अमेरिकी देश कोलंबिया जैव विविधता के मामले में दुनिया के सबसे अहम देशों में गिना जाता है. यहां खास कर परिंदों की सबसे ज्यादा प्रजातियां देखने को मिलती हैं. लेकिन उन्हें बचाना बड़ी चुनौती है.
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कोलंबिया के लोस कोलोराडोस नेशनल पार्क के 2500 एकड़ के इलाके में परिंदों की 280 प्रजातियां रहती हैं. लेकिन जैसे जैसे शहर बढ़ रहे हैं, सड़कें बन रही हैं, पेड़ कट रहे हैं, ये परिंदे और जंगली जानवर समझ नहीं पा रहे कि वो जाएं कहां. उनके जीवन का आधार धीरे धीरे सिमट रहा है. नेशनल पार्क के ठीक बाहर इंसानी आबादी बढ़ रही है. लोगों के पास भी इसके अलावा और कोई चारा नहीं है. लुइस ऑर्तेगा पार्क के अंदर घर बना रहे हैं, जबकि उन्हें पता है कि यह गैरकानूनी है. लेकिन शहर में जमीन कम और महंगी भी है. वे कहते हैं, "मैं यहां घर बना रहा हूं ताकि मेरे बच्चों को भी कल एक भविष्य मिले. मेरे तीन बच्चे हैं, बीवी है, साली है, बड़ा परिवार है. मैं अपने परिवार के लिए अच्छा कल चाहता हूं."
पांच दशकों से कोलंबिया में सरकारी सुरक्षा बलों, ड्रग तस्करों, वामपंथियों और दक्षिणपंथी हथियारबंद गुटों के बीच खूनी संघर्ष हो रहा था. लुइस का परिवार हिंसा से बचने के लिए घर से भाग गया. उसे खुशी है कि परिवार को अब नया बसेरा मिला है. यहां उन्हें सुरक्षा का अहसास मिला है, "हमारे लिए यह सुरक्षित जगह है, पहाड़ों से ज्यादा सुरक्षित. यहां हम गांव के करीब है, और कम से कम अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं."
इलाके में नेशनल पार्क के अधिकारी नियमित रूप से गश्त लगाते हैं. लेकिन उनका मकसद यहां रहने वाले लोगों को उजाड़ना नहीं है. दूसरी ओर अच्छा घर मिल जाए तो लुइस ऑर्तेगा को भी कहीं और बसने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन उनके पास कहीं और खुद घर बनाने के लिए धन नहीं है. नेशनल पार्क की रक्षा करने वाले पर्यावरण संरक्षकों के सामने सवाल है कि कौन ज्यादा अहम है, इंसान या पशु. लोस कोलोराडोस नेशनल पार्क के खोर्गे फेरर कहते हैं, "हमारे लिए सचमुच दुविधा है. इसलिए हम इन लोगों के साथ मिलकर हल तलाशने की कोशिश करते हैं. हम लोगों को यह समझाने की कोशिश भी कर रहे हैं कि पर्यावरण की रक्षा कितनी जरूरी है."
इसलिए नेशनल पार्क के कर्मचारी एक और दीर्घकालीन योजना पर भी काम कर रहे हैं. वह है लोगों को शिक्षित करने का अभियान. यहां शहर के किशोर भी आते हैं, देखने के लिए कि नेशनल पार्क की रक्षा कैसे की जा रही है. लोगों और पर्यावरण की जरूरतों में सामंजस्य कैसे बिठाया जा रहा है. स्कूली बच्चों में कुछ पार्क में बनी बस्ती में रहते हैं. पहले यहां एक घाटी थी, मालीबू जनजाति के लोग इसका इस्तेमाल प्रार्थना के लिए करते थे. उनके लिए प्रकृति पावन थी.
कोलंबियाई गुरिल्ला योद्धाओं की झलक
लैटिन अमेरिका का सबसे बड़ा और सबसे पुराना गुरिल्ला समूह फार्क कोलंबिया में सरकारी सेनाओं के खिलाफ करीब 5 दशक से लड़ रहा है. इनकी महिला योद्धाएं बेहद खतरनाक मानी जाती हैं. कोलंबिया के जंगलों में इनके जीवन की झलकियां...
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/R. Abd
फार्क और सरकारी सेनाओं के बीच हिंसक संघर्ष को खत्म करने के लिए 23 मार्च तक एक शांति समझौता तैयार किए जाने का लक्ष्य है. इसमें अब तक दो लाख से ज्यादा मौतें और करीब 40,000 लोग गुमशुदा हो चुके हैं. कोलंबियाई गुरिल्ला योद्धाओं में से एक जूलियाना (तस्वीर में) का 16 साल की उम्र में उसके सौतेले पिता ने बलात्कार किया. फिर वह भाग कर फार्स में शामिल हो गयी. अब जंगलों में अलेक्सिस उसका पार्टनर है.
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करीब 7,000 की तादाद वाले फार्क लड़ाकू दस्ते में लगभग एक तिहाई महिलाएं हैं. खूफिया जानकारी इकट्ठा करना, सरकारी बलों की गतिविधियों के बारे में जानकारी देना और आम शहरियों के साथ घुल मिल कर उनसे ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं निकालना इनके प्रमुख काम हैं. हवाना की शांति वार्ता के बाद गुरिल्ला योद्धा जूलियाना राजनीति में सक्रिय होना चाहेंगी.
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फार्क की महिलाएं पूछताछ के दौरान काफी क्रूर रवैया अपनाने के लिए जानी जाती हैं. इन्हें पुरुषों के मुकाबले अपनी विचारधारा को लेकर ज्यादा कट्टर भी माना जाता है. वामपंथी विचारों वाले फार्क ने अपनी पहली लड़ाई किसानों के हक के लिए लड़ी थी. मार्क्स और चे गुएवेरा से प्रभावित ये योद्धा अपनी लड़ाई का खर्च निकालने के लिए ड्रग्स कारोबार भी करते हैं.
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कुछ साल पहले यह पता चला था कि कैसे इन गुटों में शामिल महिलाओं के गर्भवती होने का पता चलने पर उनका जबरन गर्भपात करवा दिया जाता था. अगर कोई बच्चा पैदा हो भी गया तो उसे मां से कहीं दूर ले जाया जाता था. ऐसी कई महिलाएं जो युद्ध छोड़ कर भाग निकलीं थीं, अपने खोए हुए बच्चों की तलाश में जंगलों में भटकती हैं.
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जंगलों में रहते हुए भी इन योद्धांओं की कार्यशैली काफी आधुनिक है. कास्त्रो (तस्वीर में) की ही तरह गुट की महिला सदस्य आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर बाहरी दुनिया के बराबर संपर्क में रहती हैं. हवाना में आयोजित शांति वार्ता में फार्क की ओर से कास्त्रो ने भी हिस्सा लिया था. शांति वार्ताओं को शुरु हुए करीब तीन साल हो चुके हैं.
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कम उम्र के बच्चों और बच्चियों को जबरन इस सेना में शामिल किए जाने की कई कहानियां रही हैं. लेकिन इस जंगल कैंप की तस्वीरों से ऐसा नहीं लगता. यहां लिंग के आधार पर कोई भेदभाव भी नहीं दिखता. महिला और पुरुष दोनों ही हथियार चलाने से लेकर खाना बनाने तक के सारे काम करते हैं.
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इन जंगलों में भी आमतौर पर वही खाना खाया जाता है जो कि एक गरीब दक्षिण अमेरिकी परिवार में मिलता है. चावल, अंडे, सॉसेज और बीन्स. ये अपना खाना साथ लेकर यायावरी का जीवन जीते हैं. अलेक्सिस ने बताया, "फार्क में हम पैसों को कभी हाथ नहीं लगाते, हमारे पास ड्रग्स से लेकर सिगरेट तक सब कुछ रहता है."
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41 साल के जुआन पाब्लो 35वीं फार्क फ्रंट के कमांडर हैं. पिछले 25 सालों से लड़ाई में शामिल रहे पाब्लो का मानना है, "इस लड़ाई का अंत बिना किसी विजेता के होगा." शांति समझौते के अनुसार ये गुरिल्ला योद्धा हथियार छोड़ देंगे. कोलंबिया का यह गृह युद्ध दुनिया के सबसे जानलेवा संघर्षों में गिना जाता है.
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कुछ साल पहले यहां जंगलों में रहने वाली मालीबू जनजाति के लोगों के लिए सभी जानवर बंधुओं जैसे थे. तेंदुआ उनके लिए भगवान सा था. और इस भगवान की पूजा वे पत्थरों पर बने निशानों वाले प्रतीक के साथ करते हैं. नेशनल पार्क अधिकारी खोर्गे फेरर बताते हैं कि वे प्राचीन परंपराओं को फिर से जिंदा करना चाहते हैं. "हम इसे यहां फिर से विकसित करना चाहते हैं, और किशोरों को दिखाना चाहते हैं कि प्रकृति का पहले कितना महत्व था. ताकि वे भी अपने पूर्वजों की तरह इसका मूल्य समझें.
पहली बार स्कूली बच्चे अपनी सांस्कृतिक विरासत का परिचय पा रहे हैं. नेशनल पार्क के अधिकारी अपने प्रयासों से बच्चों को पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्रेरित कर रहे हैं. खेल खेल में ये किशोर पार्क में मौजूद प्रतीकों और जीव जंतुओं के बारे में सीखते हैं. जंगल और परंपराओं के बारे में उनके पास जितनी अधिक जानकारी रहेगी उनका महत्व भी उतना ही ज्यादा होगा. लेकिन समय के प्रवाह में बहुत कुछ खो भी गया है. मसलन अब यहां तेंदुए नहीं होते. लेकिन उनके सम्मान में यहां जैगुआर फेस्टिवल का आयोजन जरूर होता है. साल में एक बार यहां प्रकृति का जश्न मनाया जाता है.