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बढ़ती तरक़्क़ी, बढ़ता तनाव

२९ जनवरी २०१०

हाल के कुछ सालों में भारत और चीन जैसे एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाएं तेज़ी से आगे बढ़ी हैं. उसी रफ़्तार से बढ़ रहा है वहां के लोगों का मानसिक तनाव. एक अमेरिकी सर्वे में यह बात सामने आई है.

इस तनाव का क्या करेंतस्वीर: PA/dpa

सर्वे में हिस्सा लेने वाले 86 फ़ीसदी चीनियों और 57 फ़ीसदी भारतीयों ने कहा कि 2007 के बाद से उनका स्ट्रेस यानी मानसिक तनाव लगातार बढ़ रहा है. यह सर्वे अमेरिका की कोर्पोरेट कंसल्टेंट कंपनी रेगस ग्रुप ने कराया है. एशियाई देशों में बड़ी प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले दस में छह लोग कहते हैं कि ऑफ़िस में बहुत तनाव होता है.

पंकज जैन भारत की एक बड़ी आईटी कंपनी में काम करते हैं, लेकिन इन दिनों एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में जर्मनी में हैं. वह कहते हैं कि जर्मनी के मुक़ाबले भारत में कहीं ज़्यादा तनाव होता है. उनके मुताबिक़, "जर्मनी के मुक़ाबले भारत में ज़्यादा घंटे काम करना पड़ता है. यहां तो नौ से छह काम करना होता है. लेकिन भारत में सुबह नौ बजे ऑफ़िस पहुंचने के बाद पता नहीं, घर कब जाना होगा."

तस्वीर: picture alliance/chromorange

आईटी के क्षेत्र में ही काम कर रहीं सुचेता केलकर के लिए ऑफ़िस का माहौल बहुत मायने रखता है. वह विदेश में काम कर चुकी हैं. पर इन दिनों भारत में ही हैं. वह कहती हैं, "अगर आपको कोई ऐसा प्रोजेक्ट मिलता है जिसमें काफ़ी काम करना है तो ज़ाहिर सी बात है आपको तनाव होगा. अब आप भारत में हो या उससे बाहर. लेकिन विदेश में काम करने की अच्छी बात है, वहां के मैनेजर, काम के प्रति सोच और ऑफ़िस का माहौल जो भारत के मुक़ाबले कहीं बेहतर है."

कई जानकार कहते हैं कि भारत और चीन में कंपनियों को अपने मैनेजरों को इस तरह ट्रेन करना चाहिए कि वह ऑफ़िस के तनाव को घटा सकें. बैंगलोर के भारत दर्शन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर अभिषेक कुमार कहते हैं, "कोशिश की जाए कि लोग जो कर रहे हैं उसमें उन्हें मज़ा आए. और यह काम सिर्फ़ बॉस या मैनेजर कर सकते हैं. और बेशक भारत और चीन जैसे देशों में भी ऑफ़िस और परिवार के लिए अलग अलग समय की लक्ष्मण रेखाओं का सम्मान किया जाए तो इससे मानसिक तनाव को कम करने में मदद मिलेगी."

भारत में एक अमेरिकी मल्टीनैशनल टेक्नॉलजी कंपनी में काम करने वाले सॉफ़्टवेयर इंजीनियर सौरभ लापालकर कहते हैं कि तनाव के लिए काम का दबाव ही ज़िम्मेदार नहीं है. आपको बराबर यह चिंता भी सताती रहती है कि आप करियर में आगे कैसे बढ़ें और कहीं आपकी नौकरी तो नहीं चली जाएगी. उनकी कंपनी में कहने को जिम भी है, खेलने के लिए टेबल टेनिस की टेबल भी है, लेकिन कमी है तो बस एक बात की. वह कहते हैं, "समय ही नहीं मिलता जिम में जाने का या फिर खेलने का."

तस्वीर: bilderbox

चीन में भी कॉर्पोरेट कंपनियों में काम करने वाले बहुत से लोग कोशिश कर रहे हैं कि ऑफ़िस के तनाव का उनकी निजी जिंदगी पर असर न पड़े. लेकिन शांघाई में सिटी कॉर्प सॉफ्टवेयर टेक्नॉलजी सर्विसेज़ में सिस्टम ऑपरेटर के तौर पर काम कर रही लिउ ली कहती हैं कि काम करने के निश्चित घंटे हों तो उससे मदद मिलती है. उनके मुताबिक़, "हमारे यहां दो शिफ़्ट होती हैं और एक घंटा लंच के लिए मिलता है. कभी कभी हमें शनिवार रविवार को भी काम करना पड़ता है. लेकिन इसके बदले हमें हफ़्ते में किसी और दिन छुट्टी दे दी जाती है."

अगर काम ठीक से ऑर्गेनाइज़्ड हो तो मानसिक तनाव को कम किया जा सकता है. फ़र्डीनैंड ब्राउन जर्मनी की एक टेलीकॉम कंपनी में सीनियर मैनेजर हैं. वह कहते हैं कि मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच ठीक से कम्युनिकेशन होता रहे तो काम का माहौल ठीक रहता है. उनके अनुसार, "अगर आप मुझे कोई काम देते हैं और एक निश्चित समय में उसे अपने हिसाब से पूरा करने की आज़ादी भी है. फिर उसके बारे में एक रचनात्मक फ़ीडबैक दिया जाता है. तो इस तरह मुझे नहीं नहीं लगता कि तनाव की कोई वजह हो सकती है."

जानकारों का कहना है कि आर्थिक संकट ने इस तरह के तनाव को और बढ़ा दिया है. कुछ मैनेजर सोच सकते हैं कि जो "क़ाबिल होगा, वही टिका रहेगा", लेकिन दूसरी तरफ़ यह बात भी अपनी जगह सही है कि अगर कोई ऑफ़िस में अच्छा महसूस करेगा तो कंपनी की बेहतरी के लिए बढ़िया योगदान दे सकता है.

रिपोर्टः देबारती मुखर्जी

संपादनः ए कुमार

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