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बढ़ते हादसों से मुश्किल हुई राहत

८ जनवरी २०१३

प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते कहर की आंच सब तक पहुंच रही है, आम लोगों से लेकर बीमा कंपनियों तक. बीमा कंपनियां कमर कस रही हैं लेकिन असली कवायद तो सरकार की है जिसे आम लोगों के साथ कंपनियों पर भी निगाह रखनी है.

तस्वीर: DW/M.Soric

दुनिया भर की सबसे बड़ी बीमा कंपनियों में प्रमुख म्युनिख रि ने नए साल की शुरुआत में जब गुजरे साल 2012 पर नजर डाली तो उसके पास मुस्कुराने की कोई वजह नहीं थी. सैंडी तूफान, फिर मध्यपश्चिम अमेरिका में सूखा, इटली में भूकंप, फिर चक्रवातों का दौर और फिलिपींस में तूफान बोफा, दुनिया भर में बीते साल हुए 900 से ज्यादा कुदरती हादसों में से केवल इन पांच ने ही दुनिया की अर्थव्यस्था को करीब 160 अरब अमेरिकी डॉलर का चूना लगाया. 2006 से अब तक कोई ऐसा साल नहीं रहा जब इन हादसों की तादाद 900 के नीचे गई हो. यह आंकड़े 1980 के दशक में सालाना 500 हादसों की तुलना में काफी ज्यादा हैं.

2011 में जापान के पूर्वी हिस्से में आए भूकंप के बाद उठी सूनामी और फिर फुकुशिमा के परमाणु रिएक्टर में हुआ हादसा इतिहास के सबसे बडे हादसों में एक है. अब तक इसकी वजह से 235 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. इसी तरह 2005 में आए कैटरीना तूफान ने न्यू ऑरलिंस को तबाह कर दिया और करीब 81 अरब डॉलर के नुकसान के साथ वह दूसरे नंबर पर है. बीमा कंपनियां इन नुकसानों के एक बड़े हिस्से का बोझ उठाती हैं लेकिन सैंडी के तूफान में तबाह हुए 60 अरब की संपत्ति में महज 25 अरब की संपत्ति ही ऐसी थी जिसकी जिम्मेदारी बीमा कंपनियों के पास थी. इन हादसों में धन की तबाही तो होती है लेकिन उसके साथ जो भावनात्मक नुकसान पहुंचता है उसकी तो कोई भरपाई ही नहीं.

तस्वीर: AP

दुनिया भर में पहले की तुलना में बहुत ज्यादा लोगों को वित्तीय मदद की जरूरत पड़ रही है और इसके लिए वो निजी और सरकारी बीमा कंपनियों और सरकारी सहायता की तरफ हाथ फैलाए खड़े हैं ताकि दोबारा जिंदगी को पटरी पर ला सकें.

संघीय आपात एजेंसी की जिम्मेदारी

61 साल की बेटी एम फुलर की आपबीती से समझा जा सकता है कि नुकसान की भरपाई कितनी मुश्किल है. अक्टूबर 2012 में सैंडी तूफान ने उनका घर तबाह कर दिया. इसके बाद उन्हें केवल 1,410 की रकम खर्च चलाने के लिए मिली. यह पैसा संघीय आपात एजेंसी, फेमा की तरफ से दी गई. इन पैसों से खरीदा राशन का भी कुछ हिस्सा खराब हो गया जब होटल की बिजली चली गई. वह अब भी बीमा के भुगतान के इंतजार में हैं. उन्होंने निजी बीमा कंपनी से अपने घर के लिए 223000 डॉलर का बीमा कराया था. इसके अलावा 31000 डॉलर की रकम किराए के रूप में हुए नुकसान और 1500 डॉलर की रकम ऊपरी खर्च के रूप में उन्हें मिलनी है. वो बताती हैं, "मुझे घर की हर चीज का हिसाब लिखना है, यहां तक कि टॉयलेट पेपर का भी."

तूफान के गुजरने के दो हफ्ते बाद उन्हें होटल से निकाल एक बस में बिठा कर उन्हें उनके बिखरे घर में पहुंचा दिया गया. वो बताती हैं, "वहां रेडक्रॉस के लोग एक ट्रक के साथ थे और हमें थोड़ा खाना मिला. वो लोग हर जगह दिख रहे थे और मदद कर रहे थे." बेटी एन फुलर के पास सरकारी मदद की तारीफ में कहने को बहुत कुछ है, "मैं फेमा से बहुत खुश हूं, उनके सहायता समूहों ने नुकसान के हर मामले में काफी मदद की चाहे, बीमा हो, मानसिक मसले हो या कुछ और." फुलर ने बताया कि सरकारी सहायताकर्मी हर जगह मौजूद थे और लगातार मदद कर रहे थे.

तस्वीर: Reuters

यह सरकारी मदद हाल ही में खतरे में आ गई. अमेरिकी संसद ने आखिरकार फेमा को 9.7 अरब डॉलर के कर्ज का अधिकार तो दे दिया लेकिन संसद की खींचतान ने यह आशंका जरूर मजबूत कर दी कि क्या संकट के समय में अमेरिका की सरकार पर मदद के लिए भरोसा किया जा सकता है. फुलर कहती हैं, "जो कुछ भी कांग्रेस और सीनेट में हो रहा है उससे मैं संघीय सरकार से इस वक्त काफी निराश हूं" फेमा के प्रवक्ता ने डॉयचे वेले को बताया कि फेमा का राष्ट्रीय खाद्य बीमा कार्यक्रम फिलहाल धन की कमी से जूझ रहा है, "जितना प्रीमियम जमा हुआ है उसकी तुलना में दावे काफी ज्यादा हैं."

भविष्य के हादसों की तैयारी

लोगों की निराशा और आशंकाएं दूर करने की कोशिश की जा रही है. सरकार चाहती है कि लोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी एजेंसियों पर भरोसा करें. साथ ही बड़े नुकसानों का असर कम करने की भी कोशिश की जा रही है. इसमें मकानों को मजबूत बनाने से लेकर लोगों को हादसों का सामना करने के लिए तैयार करना तक शामिल है. घरों को तूफान, बारिश और आग से बचाने के तौर तरीकों को बनाने और लोगों को उन्हें अपनाने के लिए तैयार करने पर खासा जोर दिया जा रहा है. इसके लिए बाकायदा अलग से संस्थान भी शुरू किए गए हैं. जानकारों का कहना है कि बीमा उद्योग को पूरी गंभीरता से हर बड़े हादसे के लिए पहले से तैयार रहना होगा. उनका मानना है कि हादसा होने के बाद उपाय करने से काम नहीं चलने वाला.

रिपोर्टः कोनर डिलन/एनआर

संपादनः महेश झा

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