महिलाओं का खतना कई देशों में नई बात नहीं है. यूनीसेफ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में जितना अनुमान लगाया गया था उससे 7 करोड़ ज्यादा महिलाएं इसकी चपेट में हैं. इंडोनेशिया की आधी महिलाएं इससे प्रभावित पाई गईं.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
विज्ञापन
यूनीसेफ की ताजा रिपोर्ट 90 देशों में किए गए सर्वे पर आधारित है. महिलाओं के जननांगों की विकृति के मामले तीन देशों में सबसे ज्यादा आम हैं. दुनिया भर में होने वाले महिलाओं के खतना के आधे मामले मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया में पाए गए. इंडोनेशिया ऐसा देश पाया गया जहां आधे से ज्यादा महिलाओं को इससे गुजरना पड़ा है. दुनिया भर इससे प्रभावित करीब 4.4 करोड़ लड़कियां 14 साल से कम उम्र की हैं. यूनीसेफ की उप कार्यकारी निदेशक गीता राव गुप्ता मानती हैं, "हर मामले में महिलाओं के जननांगों की विकृति महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों का उल्लंघन है." उनके मुताबिक इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए इसकी गंभीरता को निर्धारित करना बेहद जरूरी है.
इंडोनेशिया में महिलाओं के जननांगों की विकृति के बारे में सुनी सुनाई जानकारी पहले से थी लेकिन इसका स्तर कितना गंभीर है यह एक ताजा रिपोर्ट में सामने आया. यूनाइटेड नेशंस चिलंड्रेंस फंड के मुताबिक इंडोनेशियाई सरकार के राष्ट्रीय सर्वे डाटा से पता चलता है कि करीब 6 करोड़ महिलाओं के जननांगों को विकृत किया जा चुका है. दुनिया भर में खतना से प्रभावित महिलाओं की संख्या 13 करोड़ से बढ़कर 20 करोड़ होने में इंडोनेशिया के मामलों का बड़ा हाथ है.
जननांगों की विकृति की परंपरा
आधिकारिक रूप से लगी रोक के बावजूद कई अफ्रीकी देशों में महिलाओं के जननांगों को विकृत किया जाना बंद नहीं हुआ है. घुमक्कड़ जीवन जीने वाले केन्या के पोकोट कबीले में लड़कियों को आज भी ये दर्दनाक रस्म सहनी पड़ती है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
सबके लिए एक ही ब्लेड
केन्या की रिफ्ट घाटी में यह महिला अब तक चार लड़कियों का खतना कर चुकी है, वो भी एक ही रेजर से. पोकोट लोगों की मान्यता है कि खतने किसी लड़की के महिला बनने की प्रक्रिया का प्रतीक है. कई देशों में इस पर पाबंदी लगी होने के बावजूद आज भी कुछ ग्रामीण इलाकों में चलन जारी है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
'समारोह' की तैयारी
खतने की रस्म वाली एक ठंडी सुबह को पोकोट महिलाएं और बच्चे आग के आस-पास इकट्ठे होकर गर्म होते हैं. जिन महिलाओं का खतना ना हो उनकी शादी होना मुश्किल हो जाता है. अगर कोई खतने के लिए मना करे तो उस पर भारी दबाव डाला जाता है और कई बार समुदाय से बाहर भी निकाल दिया जाता है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
विरोध है नामुमकिन
खतने से पहले लड़कियों के कपड़े उतरवाए जाते हैं और उन्हें नहलाया जाता है. सबको पता होता है कि इस रस्म के बाद वे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित रहेंगी. जैसे उनकी मांएं पूरे जीवन सिस्ट, संक्रमण और बच्चे को जन्म देने से जुड़ी तकलीफें झेलती रही हैं. खतने की परंपरा 28 अफ्रीकी देशों में जारी है. यूरोप में रह रहे इन इलाकों के आप्रवासियों में भी ये किया जाता है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
डरावना इंतजार
पोकोट समुदाय की लड़कियां रिफ्ट वैली के बारिंगो काउंटी की झोपड़ी में बैठी उस दर्दनाक घड़ी के पल गिनती हैं. केन्या में इसे 2011 में बैन कर दिया गया था. यूनीसेफ बताता है कि देश की 15 से 49 साल के बीच की उम्र वाली करीब 27 फीसदी महिलाओं का खतना हो चुका है. आमतौर पर खतना बेहोशी की दवा दिए बिना ही किया जाता है. साफ औजारों का इस्तेमाल ना होने के कारण महिलाएं जीवन भर कई तरह के संक्रमण झेलती हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
सूक्ष्म पर्यवेक्षण
लड़कियों को बिना चीखे चिल्लाए उनके जननांगों को विकृत किए जाने का दर्द सहना होता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस प्रक्रिया के दौरान करीब 10 फीसदी लड़कियां तुरंत दम तोड़ देती हैं, जबकि दूसरी 25 फीसदी इससे पैदा हुई तकलीफों के कारण कुछ समय बाद मारी जाती है. मौत के असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होने का अनुमान है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
पत्थर पर खून
अलग अलग कबीलों में खतने के तरीकों में अंतर है. पोकोट समुदाय में योनि का मुंह सिल दिया जाता है. डब्ल्यूएचओ ने तीन तरह के तरीकों का उल्लेख किया है. पहले में क्लिटोरिस को निकाल दिया जाता है, दूसरे में लेबिया माइनोरा को भी काट देते हैं और तीसरे तरीके में लेबिया मेजोरा को भी निकाल दिया जाता है और केवल एक छेद छोड़कर बाकी घाव को सिल देते हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
सफेद रंग की पुताई
पोकोट परंपरा में लड़की का शरीर सफेद रंग से रंगा जाता है. ये पहले से ही मान के चलते हैं कि इस प्रक्रिया के कारण लड़की की मौत होने की काफी संभावना है. कई देशों में इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. 2014 में केन्या में एक स्पेशल पुलिस टुकड़ी बनाई गई और इन मामलों की रिपोर्ट देने के लिए हॉटलाइन भी बनी है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
जीवन भर का सदमा
इस दर्दनाक प्रक्रिया के बाद सदमे से ग्रस्त लड़की को ले जाकर जानवर की खाल में लपेटा जाता है. पोकोट अब इस लड़की को शादी के लायक मानते हैं. ऐसी लड़की के मां बाप उसकी शादी के लिए ऊंची कीमत मांग सकते हैं. इनका मानना है कि इससे महिला ज्यादा साफ, ज्यादा बच्चे पैदा करने लायक और पति के लिए ज्यादा वफादार हो जाती है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
मां से बेटी को?
कोई लड़की कभी वह दर्दनाक अनुभव नहीं भूल सकती. ये छोटी सी लड़की जो खुद खतने को मजबूर थी क्या अपनी बेटी को बचा पाएगी? कुछ देशों में बहुत छोटे बच्चों का खतना किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई जगहों पर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है और जब एक छोटा बच्चा रोता है तो वह कम ध्यान खींचता है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
9 तस्वीरें1 | 9
गांबिया में लगी रोक
गांबिया के कानून निर्माताओं ने एक ताजा बिल में महिलाओं के खतना को गैर कानूनी ठहराते हुए ऐसा करने वालों पर तीन साल तक की सजा देने का फैसला किया है. संसद ने बहुमत से महिलाओं के खतना की प्रथा पर रोक लगा दिया. इससे करीब महीना भर पहले राष्ट्रपति याह्या जमेह ने इस प्रथा को रूढ़िवादी बताते हुए महिलाओे के खतना को तुरंत बंद किए जाने का आदेश दिया था. उम्मीद की जा रही है कि महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरा बनी इस कुप्रथा को प्रतिबंधित करने वाला कानून महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगा.
महिलाओं का खतना गांबिया के अलावा अनेक अफ्रीकी देशों और मध्यपूर्व के कुछ हिस्सों में आम प्रचलन में है. इसे लड़कियों के वयस्क होने की प्रक्रिया का प्रतीक माना जाता है. दूसरी ओर खतना के विरोधी इसे महिलाओं को यौनसंबंध के सुख से दूर रखने की कोशिश बताते हैं. लड़कों की ही तरह उनका खतना आमतौर पर कच्ची उम्र में ही कर दिया जाता है. पिछड़े इलाकों में खतने के लिए इस्तेमाल होने वाले ब्लेड या छुरी से उनके स्वास्थ्य को अक्सर गंभीर समस्याएं हो जाती हैं. संक्रमण, अत्यधिक रक्त स्राव, बांझपन और बच्चे के जन्म में कठिनाई हो सकती है.
बिना खतने के औरत कहलाने का हक
एफजीएम यानि फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन या फिर महिलाओं के जननांगों की विकृति की परंपरा, आज भी अफ्रीका के कई देशों में है. केन्या में मासाई समुदाय की लड़कियां इसे खत्म कर रही हैं.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
अब तुम एक महिला हो!
मासाई समुदाय में तीन दिन तक चलने वाली रस्म के बाद लड़की को महिला का दर्जा मिलता है. इस रस्म के दौरान लड़कियों के जननांगों को काटने की परंपरा रही है. आज भी यहां तीन दिन तक त्योहार मनता है, नाच गाना होता है, लेकिन खतना नहीं.
तस्वीर: Anja Ligtenberg
जागरूकता से फायदा
अब इस त्योहार के दौरान लड़कियों को उनके शरीर के बारे में जानकारी दी जाती है. सदियों से इस समुदाय की महिलाएं खतने के दर्दनाक तजुर्बे से गुजरती रही हैं.
तस्वीर: Anja Ligtenberg
अपने शरीर को जानो
लड़कियों को बताया जाता है कि एक महिला का शरीर, उसके जननांग कैसे दिखते हैं, कैसे काम करते हैं और उनकी देखभाल कैसे की जाती है. कई गैर सरकारी संगठन इसमें मदद करते हैं.
तस्वीर: Anja Ligtenberg
लड़कियों की शाम
ना केवल उन्हें पुरानी दकियानूसी परंपरा से छुटकारा मिल रहा है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने पर भी जोर है. शाम को लड़कियां एक दूसरे के साथ मिल कर गीत गाती हैं और रात भर मोमबत्तियां जला कर नाचती हैं.
तस्वीर: Anja Ligtenberg
पुरुषों की भूमिका
रस्म शुरू होने से पहले मासाई समुदाय के पुरुष इकट्ठा होते हैं. इन्हीं में से कोई आगे चल कर समुदाय का मुखिया बनेगा. पुरानी परंपरा को खत्म करने के लिए पुरुषों का साथ बहुत जरूरी है.
तस्वीर: Amref Health Africa Italy
आजादी का एहसास
नाइस लेंगेटे इस समुदाय की पहली महिला हैं, जिनका खतना नहीं किया गया. रस्म के दौरान उन्होंने एक वर्कशॉप में हिस्सा लिया, जहां उन्हें अपने शरीर के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला. आज वे खुद लोगों को जागरूक करती हैं, "और कमाल की बात है कि वे मेरी बात सुनते भी हैं. मैं उन्हें कंडोम के बारे में बताती हूं, एचआईवी के बारे में भी."
तस्वीर: Amref Health Africa
हर रंग का एक मतलब
रस्म के लिए लड़कियां रंग बिरंगे कपड़े और गले में हार पहन कर तैयार होती हैं. मासाई समुदाय में हर रंग का अलग मतलब होता है. कोई रंग बहादुरी का प्रतीक है, तो कोई उर्वरता का. अब तक 7,000 लड़कियां इस नई तरह की परंपरा का लाभ उठा चुकी हैं.
तस्वीर: Anja Ligtenberg
बुरी नजर से बचो
कई छोटी छोटी रस्में पूरी की जाती हैं. कई परिवारों में महिलाएं सर मुंडवाती हैं, तो अधिकतर में लड़कियों के चेहरों को रंगा जाता है. ऐसा उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए किया जाता है.
तस्वीर: Anja Ligtenberg
आशीर्वाद
आखिरी दिन कुछ ऐसा होता है. समुदाय के सदस्य हाथ में छड़ियां ले कर खड़े होते हैं और लड़कियां एक कतार बना कर उनके नीचे से गुजरती हैं. इस दौरान गीत भी गए जाते हैं और भाषण भी दिए जाते हैं. अंत में लड़कियों को सर्टिफिकेट भी मिलते हैं.
तस्वीर: Anja Ligtenberg
9 तस्वीरें1 | 9
जमेह ने नवंबर 2015 में कहा कि इस्लाम महिलाओं के खतना की बात नहीं करता. देश की 18 लाख आबादी में 95 फीसदी मुसलमान हैं. जमेह ने हाल में गांबिया को इस्लामिक देश भी घोषित किया. संसद में इस मुद्दे पर मतदान से पहले इस बारे में कोई विशेष कानून मौजूद ही था. ये मामले गंभीर शारीरिक क्षति के लिए मौजूदा दंड संहिता पर निर्भर थे. महिलाओं के खतना को अंजाम देने या इस घटना के आयोजन में लिप्त होने पर तीन साल तक की सजा और 1300 डॉलर के जुर्माने की सजा हो सकती है. संयुक्त राष्ट्र चिल्ड्रेंस फंड के मुताबिक गांबिया की करीब तीन चौथाई महिलाएं इससे प्रभावित हैं.