तंबाकू से कैंसर के मरीज बढ़े
१८ दिसम्बर २०१३कैंसर विशेषज्ञों ने इस जानलेवा बीमारी पर अंकुश लगाने के लिए तंबाकू उत्पादों के ढके-छिपे विज्ञापनों पर पूरी तरह पाबंदी लगाने के लिए कड़े कानून बनाने और देश में तंबाकू के नशे की लत छुड़ाने के लिए और ज्यादा तादाद में नशामुक्ति केंद्र खोलने की जरूरत पर जोर दिया है. कोलकाता में जारी टोबैको कंट्रोल प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में यह बातें कही गई हैं.
कैंसर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीएफआई) ने एक सर्वेक्षण के बाद यह रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के शहरी और ग्रामीण इलाकों में जागरूकता बढ़ने के बावजूद लोगों को किसी न किसी रूप में तंबाकू के विज्ञापन देखने को मिलते रहते हैं. देश में इन उत्पादों के प्रत्यक्ष विज्ञापनों पर तो पाबंदी है, लेकिन इनके परोक्ष विज्ञापन पर भी पाबंदी लगाने की मांग की गई है. युवाओं पर चोरी-छिपे दिखाए जाने वाले सरोगेट विज्ञापनों का भी काफी असर पड़ता है और वह इन उत्पादों की ओर आकर्षित होते हैं.
उपाय
सीएफआई के संयोजक और कैंसर विशेषज्ञ शोमा राय चौधरी कहती हैं, "नशामुक्ति केंद्र लोगों में नशे की लत छुड़ा कर उनके पुनर्वास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कैंसर की रोकथाम में इनकी भूमिका अहम है." वह कहती हैं कि ऐसे केंद्रों में काउंसलरों, विशेषज्ञों और एक ठोस रूटीन के सहारे नशे के आदी हो चुके लोगों से तंबाकू की लत छुड़वाई जाती है. लंबे समय तक नशा नहीं करने के बाद यह लत अपने आप छूट जाती है. इसकी निरंतरता बनाए रखने में ऐसे केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों की तादाद में लगातार वृद्धि को ध्यान में रखते हुए ऐसे केंद्रों की पर्याप्त कमी है.
हीलियस सेक्सरिया इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक हेल्थ, मुंबई की प्रदेश संयोजक प्रतिभा पवार का कहना है कि किशोरों में तंबाकू के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में भी तंबाकू-विरोधी विषय शामिल किए जाने चाहिए. वह कहती हैं, "ज्यादातर किशोर 10-12 साल की उम्र में ही सिगरेट और दूसरे तंबाकू उत्पादों का सेवन शुरू करते हैं. स्कूली शिक्षा में इन मुद्दों को शामिल कर इस प्रवृत्ति पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है."
तंबाकू से बढ़ता खतरा
रिपोर्ट में कहा गया है कि तंबाकू से होने वाले कैंसर के मामलों में कोलकाता देश के तमाम महानगरों में पहले नंबर पर है जबकि मुंबई चौथे नंबर पर. कोलकाता में 44.4 फीसदी मामलों में तंबाकू ही इस बीमारी की वजह है और मुंबई में 39.2 फीसदी मामलों में. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की 34.6 फीसदी आबादी किसी न किसी रूप में तंबाकू उत्पादों का सेवन करती है. इनमें से 47.9 फीसदी पुरुष हैं और 20.3 फीसदी महिलाएं. पवार बताती हैं, "तंबाकू के धुएं में चार हजार से ज्यादा किस्म के केमिकल होते हैं. इनमें से कम से कम ढाई सौ केमिकल नुकसानदेह हैं और उनमें से 50 से ज्यादा केमिकल कैंसर पैदा करने में सक्षम हैं."
विशेषज्ञों का कहना है कि तंबाकू से होने वाले कैंसर की वजह से होने वाली मौतों पर विभिन्न उपायों से अंकुश लगाया जा सकता है. पूरी दुनिया में होने वाली हर 10 लोगों की मौत में एक की मौत तंबाकू की वजह से हुई बीमारी के चलते होती है. इस पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल नहीं की गई तो वर्ष 2030 तक सालाना 80 लाख लोग तंबाकू के सेवन की वजह से मौत के मुंह में समा सकते हैं. चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक देश है.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: महेश झा