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बदलते समय के साथ बदलाव जरूरी

१० अक्टूबर २०११

रेडियो से इंटरनेट, हमारे इस बदलाव को पाठकों ने सराहा है, साथ ही वेबपेज पर लिखे आलेख उन्हें पसंद आ रहे हैं, आइए जाने क्या लिखते हैं हमारे पाठक...

तस्वीर: DW/picture alliance/dpa

आपके वेबपेज पर काला जादू पर रिपोर्ट पढ़ा. सच में यह रिपोर्ट रोगंटे खड़े करने वाली थी. आखिर इसके लिए कौन जिम्मेवार है, पाखंडी ओझा या परिजन? वास्तव में देखा जाए तो इसके लिए अशिक्षा और अज्ञानता ही मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं. इस तरह की कुरीतियां सभ्य समाज  के लिए विज्ञान और तकनीक के युग में एक बदनुमा धब्बा है. इधर किसी के प्रति आस्था का विरोध करने को कानून भी नहीं कहता. इस तरह की सामाजिक कुरीतियों को शिक्षा और जागरूकता से ही खत्म किया जा सकता हैं.

राघो राम, गांव अंधारी, जिला भोजपुर, बिहार

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गाँधी जिन्दा हैं - भारतीय विद्या भवन, यूएसए द्वारा 1998 में प्रकाशित और डा. ई एस रेड्डी द्वारा संपादित पुस्तक महात्मा गांधी लेटर्स टू अमेरिकन्स पढ रहा हूं. गांधी पर अनुपम संकलन है यह पुस्तक. गांधी कभी अमेरिका नहीं आए पर उन्होंने विपुल सामान्य एवं विशिष्ठ अमेरिकी नागरिकों से प्रभावशाली संपर्क बनाए. रिचार्ड एटेनबरो की फिल्म गम्भीर थी,  उसमें सच्चाई की फितरत थी. ऐसा "मुन्ना भाई" में नहीं हुआ. भारत के आधुनिक लोगों का सामान्य स्वभाव मनोरंजन प्रधान है. यह भी सच है कि गांधी के सबसे ज़्यादा आलोचक भी भारत में ही है. मानिए, न मानिए, जिस संस्कृति के लोगों ने "वसुधैव कुटुम्बकम" का घोष किया, वे ही धार्मिक अनुदारता का अवलम्बन लेकर गांधी को अस्वीकृत करते रहे हैं. आपके ये लघु टिपाणियों वाले आलेख अत्यन्त सराहनीय हैं. गांधी एक व्यक्ति के रूप में पार्थिव भले ही रहे हों किन्तु एक सिद्धांत और दर्शन के रूप में सर्वदा अमर और स्तुत्य रहेंगे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/Bildarchiv

प्रोफेसर प्रेम मोहन लखोटिया, यूएसए
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ब्रिटिश मैगज़ीन न्यूज स्टेट्समैन द्वारा तैयार सूची में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्कल को पहला स्थान दिया गया. यह उनकी कार्यकुशलता को अंकित करता है. आपकी गलत नीति की वजह से हम डीडब्ल्यू से वंचित हो गए. हालांकि डीडब्ल्यू उर्दू  सुनता हूं किंतु वे भी हिंदी भाषी श्रोता शायद पसंद नहीं करते. आप से अनुरोध है कि नवीनतम कार्यक्रम सूची जरूर भेजिएगा जिसमें इंटरनेट का पता हो.

उमेश कुमार शर्मा, स्टार लिस्नर्स क्लब, नारनौल, हरियाणा

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आजकल नेट पर जो डीडब्ल्यू के हिंदी क्लिप देखने को मिल रहे हैं, उन्हें देख कर बहुत करीब से असली ज़िन्दगी/तस्वीर सामने आ जाती है. यह आपने बहुत उचित कदम उठाया है, लेकिन जो घाटा डीडब्ल्यू के श्रोताओं को उठाना पड़ा है वो कभी पूरा नहीं हो पायेगा. इसका कारण है कि भारत में आज एक तो सभी के पास नेट की सहूलियत नहीं है, और दूसरा कुछ जगहों पर दूर दूर तक नेट नहीं मिलता. रेडियो पर तो हर कोई डीडब्ल्यू का आनंद उठा सकता था, ट्यून करते करते कोई नया दोस्त भी बन जाता था. आपको इस पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए.

तस्वीर: Eros Entertainment

गुरदीप सिंह, दौदपुरी, कपूरथला, पंजाब

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बदलते समय के साथ अपने आप में भी बदलाव लाना समय की जरुरत होती है, वरना हम पीछे रह जाते हैं. यह सीख मुझे आपसे मिली है. बेशक डीडब्ल्यू को रेडियो से हटने की घोषणा करना आपके और हमारे लिए कष्टकारी थी. पर डीडब्ल्यू ने समयानुकूल परिवर्तन लेकर दूरदर्शी काम किया है. आपने अपने साथियों के अथक प्रयास से इसकी खूबसूरती को निखारने का भरपूर प्रयास किया है, जिसके लिए मैं आपकी और आपकी पूरी टीम को हार्दिक धन्यवाद देती हूं. रंग तरंग में प्रत्येक क्षेत्र में चर्चित हस्तियों के साथ इंटरव्यू तथा उनके अनुभव पर आर्टिकल वेबपेज पर डाले जाए.

हमारा गॉव आरा जिला मुख्यालय से 47 किलोमीटर दूर देहाती क्षेत्र में पड़ता है. यहां बुनियादी सुविधाओं का आभाव है. डीडब्ल्यू रेडियो प्रोग्राम बंद होने के बाद हमने मोबाइल पर नेट चालू करायी और आपके प्रसारण से जुड़कर हमें काफी कुछ सीखने को मिला है. यही नहीं, हमारी सभी सहेलियां जिसके पास मोबाइल उपलब्ध है, आपके सभी आर्टिकलों का भरपूर लाभ उठा रही हैं. डीडब्ल्यू ठीक वैसी है जैसे किसी एक किताब में सारी खूबियां मौजूद हों.

गांधीजी पर आपके द्वारा प्रस्तुत आर्टिकल बेहद रोचक तथा प्रेरणाप्रद लगे, यदि देश को गांधीजी के विचारों के अनुसार चलाया गया होता तो भुखमरी, बेरोजगारी, कुपोषण, जैसी समस्याएं न जाने कभी के मिट जाते. आज समाज में व्यापक बेरोजगारी है, कई बस्तियों में साफ़ पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. देश में रोजगार बढे, अहिंसा और सचाई का बोलबाला हो, अपनी राष्ट्रभाषा अपना गौरव हासिल करे. यही हम सब के लिए "बापू" की सच्ची श्रद्धांजली होगी.

सुमन कुमारी, गांव अंधारी, जिला भोजपुर, बिहार

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सऊदी अरब में महिलाओं को वोटिंग का हक मिला - यह खबर सऊदी महिलाओं के लिए खुली बहार के झोके की तरह है. पर सही मायनो में उन्हें अपने अधिकार मिले यही हमारी कामना है...क्योंकि दुनिया में बड़े लोकतंत्र का दावा करनेवाला भारत भी सही मायने में अपने देश की महिलाओं को पूरी आजादी देने में सक्षम नहीं हुआ है...फिर ये तो इस्लामिक.....

कुसुम जोशी, फेसबुक पर

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संकलनः विनोद चढ्डा

संपादनः एन रंजन

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