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समाज

बदलेंगे या लकीर के फकीर बने रहेंगे?

ओंकार सिंह जनौटी
१९ जनवरी २०१७

जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ तमिलनाडु में बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं. ये प्रदर्शन संविधान और सुप्रीम कोर्ट में लोगों के घटते भरोसे को दिखाते हैं.

Bildergalerie Stierkampf Indien Pongal Festival in Madurai
तस्वीर: UNI

1985 में शाहबानो के केस में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तलाक की स्थिति में महिला को गुजर बसर के लिए भत्ता मिलना चाहिए. यह तारीखी फैसला था. पुरुषों द्वारा चलाये जा रहे है मुस्लिम बोर्डों ने इस फैसले का भारी विरोध किया. विरोध और राजनैतिक लाभ के बीच गुणा भाग कर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कोर्ट के फैसले को अध्यादेश के जरिये पलट दिया. सरकार की वो गलती आज तक मुस्लिम महिलाओं को सता रही है.

शाहबानो केस से साफ हुआ कि जोरदार विरोध प्रदर्शन कर सरकारों और अदालतों को झुकाया जा सकता है. लेकिन एक बात याद रखिये कि ऐसी कोशिशें, सरकारों और अदालतों से ज्यादा संविधान को छलनी करती हैं. संविधान विरोध करने का हक देता है. लेकिन तार्किक विरोध और झुंड की ताकत का फायदा उठाकर किये जाने वाले प्रदर्शन में फर्क है.

भारत की जनता ने खुद को अपना संविधान दिया है. संविधान तमाम राजनैतिक, भौगोलिक और सामाजिक अंतरों के बावजूद आपसी रजामंदी का दस्तावेज है. उसके प्रावधानों की व्याख्या करना संवैधानिक अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है. संविधान पशुओं पर क्रूरता की इजाजत नहीं देता. कई भारतीय कानूनों में इस बात का साफ जिक्र है कि पशुओं के साथ कैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए. यही वजह है कि सर्कस और फिल्मों में पशुओं के इस्तेमाल पर रोक लग चुकी है. जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध भी सर्वोच्च अदालत ने इसी आधार पर लगाया. अदालतों और सरकारों का कर्तव्य संविधान की रक्षा करना है. बदलते वक्त के साथ अगर संविधान को अपडेट करना पड़े तो किया जाना चाहिए. लेकिन आगे की बजाए परंपरा के नाम पर पीछे जाना, यह ठीक नहीं. जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ विरोध कुछ ऐसा ही है. विरोध करने वालों के अपने तर्क हैं, लेकिन कहीं न कहीं एक लकीर तो खींचनी ही पड़ेगी.

जरा सोचिये कि जिस तरह जलीकट्टू पर प्रतिबंध के फैसले का विरोध हो रहा है, वैसा ही विरोध अगर बलि प्रथा पर लगे प्रतिबंध का भी होने लगे. इतना ही नहीं सती, जाति और छुआछूत को भी परंपरा कहकर फिर से लागू करने की बात की जाने लगे तो. तारीख आगे जा रही है, इसीलिए उसके साथ आगे बढ़िये. पीछे तो बेजान छूटते हैं, फिर वो समाज हो या इंसान.

 

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