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बदल रहा है बंदरों का मेन्यू

२९ अप्रैल २०१३

दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव जंगल सुंदरबन में रहने वाले बंदरों के खाने-पीने का मेन्यू बदल रहा है. पर्यटकों की वजह से बंदरों की आदत ऐसी बिगड़ चुकी है कि वे चिप्स खा रहे हैं और कोक की घूंट मार रहे हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पश्चिम बंगाल में हुगली और बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर बसे सुंदरबन में हर बीतते साल के साथ पर्यटकों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. यही मुसीबत बनती जा रही है. पर्यटकों की वजह से सुंदरबन के जंगलों में रहने वाले बंदरों की खाने-पीने की आदतें बदल रही हैं. अब वह आलू के चिप्स और विभिन्न कंपनियों के शीतल पेयों पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. घूमने के लिए इलाके में जाने वाले पर्यटक बंदरों को अपने साथ ले गई यह चीजें खाने के लिए देते रहे हैं. पशुप्रेमियों ने बंदरों की इस बदलती आदत पर चिंता जताते हुए इस पर अंकुश लगाने की मांग की है.

कुछ साल पहले तक सुदंरबन में महज सर्दियों के समय ही पिकनिक के लिए पर्यटकों की भीड़ जुटती थी. लेकिन अब आवाजाही की बढ़ती सुविधा और इलाके में बने नए-नए होटलों और रिजार्टों की वजह से बरसात के सीजन को छोड़ कर पूरे साल इलाके में पर्यटक भरे रहते हैं. जिन इलाकों में पर्यटकों की भीड़ रहती है वहां खाने-पीने की चीजों के लालच में बंदरों का झुंड भी जुट जाता है. यह बढ़ते पर्यटक ही वन विभाग के लिए मुसीबत बन रहे हैं. पहले तो लोग इन बंदरों को शौकिया चिप्स के पैकेटों के अलावा कोक और पेप्सी के कैन थमा देते थे. अब इन चीजों का स्वाद चखने के बाद बंदर अक्सर पर्यटकों से यह सामान छीनने लगे हैं.

पशुप्रेमी संगठनों ने बंदरों के खाने-पीने की आदतों में होने वाले इल बदलाव पर कड़ी चिंता जताते हुए इस पर अंकुश लगाने की मांग की है. ऐसे ही एक संगठन प्रकृति संसद के सचिव कुणाल मुखर्जी कहते हैं, "पर्यटकों ने बंदरों के खाने-पीने की आदतें काफी हद तक बदल दी हैं. इस प्रवृत्ति पर तुरंत अंकुश लगाया जाना चाहिए. इससे बंदरों में संक्रामक रोग फैलने की संभावना भी बढ़ गई है."

तस्वीर: AP

पहले भी बंदरों का झुंड खाने-पीने की तलाश में जंगल से इंसानी बस्तियों में आता जरूर था. लेकिन दो-एक दिन में ही वापस चला जाता था. अब तो आने के बाद वह लौटने का नाम ही नहीं लेते. सुंदरबन के गोसाबा इलाके में रहने वाले श्रीजीत मंडल कहते हैं, "आलू के चिप्स और शीतल पेयों के लिए बंदर अब पर्यटकों पर धावा बोल देते हैं. धीरे धीरे यह समस्या गंभीर होती जा रही है." सुदंरबन बायोस्फेयर रिजर्व के एक कर्मचारी अभिजीत मंडल कहते हैं, "यहां आने वाले पयर्टक बंदरों के खाने-पीने की आदत बदल रहे हैं. बार-बार मना करने के बावजूद कोई इस पर ध्यान नहीं देता." अब समस्या गंभीर होने के बाद इस प्रवृत्ति पर रोकथाम के उपायों पर विचार विमर्श चल रहा है.

वन्यप्राणि संरक्षण विशेषज्ञ अपूर्व चक्रवर्ती कहते हैं, "सुंदरबन की तरह ही कुछ साल पहले महाराष्ट्र के नागजीरा टाइगर प्रोजेक्ट में भी बंदरों के खाने-पीने के मुद्दे पर गंभीर परिस्थिति पैदा हो गई थी. वहां खाने के लालच में बंदरों का झुंड कैंटीन में घुस जाता था. खाना नहीं मिलने पर वह लोग पर्यटकों पर हमले कर देते थे." वह बताते हैं कि आखिर में इस समस्या से तंग आकर अधिकारियों ने बंदरों को खाना देने वाले पर्यटकों पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाने का फैसला किया, उसी से वह समस्या हल हो गई.

वर्ल्टवाइड फंड फार वाइल्डलाइफ (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के स्थानीय अधिकारी दीपंकर घोष कहते हैं, "बंदरों को तरह-तरह की चीजें खिलाने की यह प्रवृत्ति सुंदरबन के अलावा उत्तर बंगाल में स्थित जंगलों में भी बढ़ रही है. यह गैरकानूनी है. जगह-जगह चेतवानी भरे साइनबोर्ड लगाने के बावजूद पर्यटक उन पर ध्यान नहीं देते." घोष के मुताबिक, पर्यटकों में जागरुकता के लिए अभियान चलाना भी जरूरी है.

पश्चिम बंगाल के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डेन नवीन चंद्र बहुगुणा कहते हैं, "हाल में यह मामला उनकी निगाह में आया है. पर्यटकों की ओर से खाने-पीने की ऐसी चीजें देने से बंदरों में कभी भी महामारी फैल सकती है." उत्तर भारत में ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे शहरों में पर्यटकों के दिए खाने की वजह से दर्जनों बंदर बीमार हैं. उनके गले फूले हुए दिखाई पड़ते हैं. आशंका है कि कई बंदर गले के कैंसर से जूझ रहे हैं.

इसकी मार इंसानों पर भी पड़ सकती है. जंगल के पारिस्थिकीय तंत्र को भी इससे खतरा होगा. बहुगुणा का कहना है कि विभाग पर्यटकों को जागरूक करने के लिए जल्दी ही एक अभियान शुरू करेगा. अगर उससे भी काम नहीं हुआ तो वन्यप्राणि संरक्षण अधिनियम के तहत जरूरी कदम उठाए जाएंगे.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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