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बदहाली का शिकार बंगाल का मुस्लिम समुदाय

प्रभाकर, कोलकाता१९ फ़रवरी २०१६

पश्चिम बंगाल में जिस मुस्लिम समुदाय के समर्थन से पहले लेफ्टफ्रंट ने कोई साढ़े तीन दशक तक शासन किया और फिर पांच साल पहले तृणमूल कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई, वह बेहद बदहाली का शिकार है.

Indien Winter Kalkutta Muslimisches Restaurant
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

राज्य में इस समुदाय के समर्थन के बिना किसी भी राजनीतिक पार्टी का चुनाव जीतना या सरकार बनाना मुश्किल है. लेकिन तमाम दावों और करोड़ों की लागत से शुरू की गई योजनाओं के बावजूद इस तबके के हालत जस की तस है. एक ताजा सर्वेक्षण में इस हकीकत का खुलासा हुआ है.

सर्वेक्षण रिपोर्ट

मशहूर अर्थशास्त्री व नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कोलकाता में इस सर्वेक्षण रिपोर्ट को जारी किया. पश्चिम बंगाल में रहने वाले मुस्लिमों की हकीकत शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को एसएनएपी, गाइडेंस गिल्ड और सेन की संस्था प्रतीची ट्रस्ट की ओर से कराए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया गया है. यह सर्वेक्षण 97,017 मुस्लिम परिवारों के बीच किया गया है. इसमें 81 ब्लाकों के 325 गांवों के अलावा शहरी क्षेत्र के 73 वार्डों को शामिल किया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 80 फीसदी मुस्लिम परिवारों की मासिक आय पांच हजार रुपये है, जबकि 38.3 फीसदी परिवारों को महज ढाई हजार रुपये महीने की आय में गुजारा करना पड़ता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, महज 3.8 फीसदी मुस्लिम परिवार ही हर महीने पंद्रह हजार रुपये कमा पाते हैं. राज्य के 13.24 फीसदी मुस्लिम वयस्कों के पास तो मतदाता पहचान पत्र तक नहीं हैं. महज 1.54 फीसदी मुस्लिम परिवारों के पास ही सरकारी बैकों में अकाउंट हैं. शिक्षा के मामले में भी उनकी स्थिति बेहतर नहीं है. राज्य में औसतन एक लाख की आबादी पर 10.06 सेकेंड्री और हायर सेकेंड्री स्कूल हैं. लेकिन दो अल्पसंख्यक बहुल जिलों—मुर्शिदाबाद और मालदा में एक लाख की आबादी पर क्रमश: 7.2 और 8.5 फीसदी स्कूल ही हैं. यही नहीं, राज्य में छह से 14 वर्ष की उम्र के बीच के 14.5 फीसदी मुस्लिम बच्चे स्कूल तक जा ही नहीं पाते.

तस्वीर: Reuters

अहम हैं अल्पसंख्यक

बंगाल में मुस्लिम आबादी लगभग 29 फीसदी है. राज्य की 294 में से कम से कम 140 सीटों पर हार-जीत में इस तबके के वोटरों की अहम भूमिका है. राज्य के 23 जिलों में से पांच में ही मुस्लिम आबादी ही बहुसंख्यक है. इनमें उत्तर व दक्षिण दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद और बीरभूम शामिल हैं. इनके अलावा नदिया, उत्तर व दक्षिण 24-परगना में भी मुस्लिमों की खासी आबादी है. इन जिलों के ग्रामीण इलाकों में इसी तबके के वोटर निर्णायक हैं.

तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images

सेन कहते हैं, "मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए सरकार को अभी काफी कुछ करना होगा. महज हवाई वादों और दावों से इस तबके का कोई भला नहीं होगा." सेन ने इस रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा कि ममता बनर्जी सरकार अपने कार्यकाल में अल्पसंख्यकों की उम्मीदों पर खरा उतरने में नाकाम रही हैं. उनका कहना था कि सरकार के दावों के उलट इस तबके के उत्थान की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना है. इस सर्वेक्षण रिपोर्ट को तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले जहांगीर हुसैन कहते हैं, "सच्चर समिति ने ज्यादातर सूचनाएं सीधे जुटाने की बजाय दूसरे स्त्रोतों से जुटाई थी. इसलिए हमने प्राथमिक स्त्रोतों से आंकड़े जुटा कर राज्य में इस समुदाय की असली तस्वीर सामने लाने का फैसला किया."

हालांकि रिपोर्ट में इस बदहाली के लिए सीधे-सीधे सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है. लेकिन राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले जारी इस रिपोर्ट ने मुस्लिमों के हित में किए गए कार्यों के बारे में तृणमूल कांग्रेस सरकार के दावों की पोल खोल दी है. ऐसे में इस रिपोर्ट पर राजनीति तो तय ही है.

((क्या आपको लगता है कि पश्चिम बंगाल का मुस्लिम समुदाय तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति का शिकार हुआ है. अपनी राय नीचे लिखे कमेंट बॉक्स में लिखें.))

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