1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
शिक्षा

बदहाली के शिकार हैं देश के सरकारी स्कूल

प्रभाकर मणि तिवारी
२४ जनवरी २०१९

शिक्षा के अधिकार की वजह से स्कूल जाने वाले बच्चों की तादाद बढ़ी है और पढ़ाई छोड़ने के मामलों में भी कमी आई है. लेकिन आठवीं कक्षा पास करने वाले ज्यादातर छात्र गणित का मामूली सवाल तक हल नहीं कर सकते.

Indien Schule
तस्वीर: Courtesy/M Ansari

एक गैर-सरकारी संगठन प्रथम की ओर से शिक्षा पर जारी सालाना रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं. मसलन आठवीं पास 25 फीसदी छात्र तो ठीक से पढ़ भी नहीं सकते. पश्चिम बंगाल में झारखंड से लगे इलाके के एक सरकारी स्कूल नव शिक्षा निकेतन में मिड डे मील के लालच में छात्र नियमित रूप से स्कूल आने लगे हैं. राज्य सरकार की ओर से शुरू की गई कन्याश्री और दूसरी स्कॉलरशिप परियोजनाओं की वजह से स्कूल आने वालों में छात्राओं की तादाद भी बढ़ी है. लेकिन इनमें से ज्यादातर का सामान्य ज्ञान बेहद निराशाजनक है.

स्कूल की पांचवीं और छठी कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों को भी न तो सौ तक गिनती याद है और न ही सामान्य गुणा-भाग की जानकारी है. गणित और विज्ञान विषयों में वे एकदम फिसड्डी हैं. स्कूल में शिक्षकों का अभाव तो है लेकिन जिस विषय के शिक्षक हैं उनमें भी छात्रों की जानकारी आधी-अधूरी ही है. इसकी वजह यह है कि छात्रों का ध्यान पढ़ाई पर कम और मिड डे मील और सरकारी योजनाओं पर ही ज्यादा रहता है.

इलाके के दूसरे सरकारी स्कूलों में भी यही हालत है. पश्चिम बंगाल की लेफ्ट फ्रंट सरकार ने 1980 के दशक में स्कूलों से अंग्रेजी की पढ़ाई खत्म करने का जो फैसला किया था उसका खामियाजा आज तक छात्रों को भुगतना पड़ रहा है. कभी शिक्षा के लिए शीर्ष राज्यों में शुमार बंगाल में इस बदहाली को ध्यान में रखते हुए ही राज्य सरकार ने हाल में सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया है. पहले इन स्कूलों में सिर्फ बांग्ला माध्यम से ही पढ़ाई होती थी. नतीजतन तमाम छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं और उच्च-शिक्षा में पिछड़ जाते थे.

ताजा रिपोर्ट

गैर-सरकारी संगठन प्रथम ने देश के 596 जिलों में शिक्षा की स्थिति पर अध्ययन के बाद अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि स्कूल जाने वाले छात्रों की तादाद हाल के वर्षों में कुछ बढ़ी जरूर है लेकिन उनकी जानकारी का स्तर यह है कि आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले 56 फीसदी छात्र मामूली गुणा-भाग भी नहीं जानते. इसी तरह तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले 70 फीसदी छात्र जोड़-घटाव में भी फिसड्डी हैं. आठवीं के 27 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा की पुस्तकें शुद्ध तरीके से नहीं पढ़ सकते.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2008 में जहां पांचवीं कक्षा के 37 फीसदी छात्र गणित के सामान्य सवाल हल कर सकते थे, वहीं अब ऐसे छात्रों की तादाद घट कर 28 फीसदी रह गई है. इसी तरह वर्ष 2008 में आठवीं कक्षा के 84.8 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा की पुस्तकें शुद्ध रूप से पढ़ सकते थे. लेकिन बीते एक दशक के दौरान ऐसे छात्रों की तादाद घट कर 72.8 फीसदी रह गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक गणित की जानकारी के मामले में लड़कियां लड़कों के मुकाबले पीछे हैं. लेकिन तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, पंजाब और हिमाचल जैसे राज्यों में लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर है. संगठन ने कहा है कि अब देश के ग्रामीण इलाकों के 96 फीसदी बच्चे स्कूलों में जाने लगे हैं. लेकिन उनमें से ज्यादातर में कुछ सीखने की ललक नहीं होती. कुछ राज्यों में तो हालत बेहद खराब है. मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले 60 फीसदी से ज्यादा छात्र गद्य नहीं पढ़ पाते.

पश्चिम बंगाल समेत कुछ राज्यों में बीते 12 वर्षों के दौरान पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों की तादाद में कमी आई है. बंगाल में 2006 में यह दर 24.9 फीसदी थी जो अब महज 4.8 फीसदी रह गई है. आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और ओडीशा में भी यह आंकड़ा कम हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पांचवीं से आठवीं कक्षा तक के छात्रों की हालत तो और दयनीय है.

बदहाली की वजह

नियमित रूप से स्कूल जाने के बावजूद इन छात्रों के सामान्य ज्ञान का स्तर इतना खराब क्यों हैं? विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों में आधारभूत ढांचे का अभाव और संबंधित विषयों के शिक्षकों की कमी के चलते यह स्थिति पैदा हुई है. इसके अलावा ज्यादातर सरकारी स्कूलों में शिक्षक पठन-पाठन की बजाय निजी कामकाज, निजी ट्यूशन और राजनीति में रुचि लेते हैं. ऐसे में शुरुआती कुछ महीनों के बाद छात्रों में भी सीखने की ललक कम हो जाती है. इस ललक को बढ़ाने के लिए न तो स्कूल कोई पहल करता है और न ही शिक्षक. नतीजा छात्र महज खानापूर्ति, मिड डे मील और सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले पैसों के लिए ही स्कूल जाते हैं.

शिक्षाविद् प्रोफेसर अजित कुमार सरकार कहते हैं, "सरकारी स्कूलों में आदारभूत ढांचे का भारी अभाव है. ज्यादातर स्कूलों में विज्ञान, अंग्रेजी और गणित विषयों के शिक्षकों की कमी है. कहीं भूगोल का शिक्षक गणित पढ़ा रहा है, तो कहीं इतिहास का शिक्षक विज्ञान. ऐसे में छात्रों का मन उचटना स्वाभाविक है." एक स्कूल के हेडमास्टर शुभाशीष देब कहते हैं, "छात्र महज खानापूर्ति, मिड डे मील और कन्याश्री जैसी सरकारी योजनाओं के लिए स्कूल आते हैं. सरकार भी इन स्कूलों में न तो खाली पदों को भरने में दिलचस्पी लेती है और न ही आदारभूत ढांचा मुहैया कराने में." वह कहते हैं कि कई स्कूलों में तो भवन की कमी के चलते खुले मैदान में पेड़ के नीचे पढ़ाई होती है. ऐसे में नतीजा जाहिर है बेहतर नहीं रहेगा. मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए सरकारी स्कूलों में बड़े पैमाने पर सुधार की जरूरत है.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें