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बमों से जूझता जर्मनी

६ सितम्बर २०१२

जर्मनी बारूद के ढेर जैसा है. दूसरे विश्व युद्ध को खत्म हुए 70 साल हो चुके हैं लेकिन अभी भी जमीन में दबे बम निकलते रहते हैं. वैसे तो बम में जंग लग जाती है लेकिन फिर भी बारूद तो कभी भी फट सकता है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अधिकतर मामलों में वैसे तो बम निष्क्रिय करते समय सब कुछ योजना के हिसाब से हो जाता है. लेकिन अक्सर इस बात का संकेत मिलता है कि विश्व युद्ध के बम कितने ताकतकवर हो सकते हैं, भले ही युद्ध खत्म हुए 67 साल बीत चुके हों. उम्रदराज निवासियों को लगता है कि वह युद्ध के दौर में लौट गए हैं और युवाओं को लगता है कि वह हॉलीवुड के किसी सेट पर हैं.

जानकारों का कहना है कि जर्मनी की जमीन और पानी के नीचे आज भी करीब एक लाख बम पड़े हुए हैं. फ्रेंड्स ऑफ जर्मनी संगठन का अनुमान है कि शीत युद्ध से बाल्टिक सागर में 40 हजार टन रसायन पड़ा हुआ है.

कुछ ही दिन पहले म्यूनिख में एक बम को निष्क्रिय करने में अधिकारी नाकाम रहे और उन्हें इस 250 किलो भारी बम में नियंत्रित धमाका करना पड़ा. इस धमाके के कारण आस पास के घरों की खिड़कियां तड़क गईं और जो भूसा बम के आस पास रखा गया था उसमें आग लग गई लेकिन इस दौरान कोई भी घायल नहीं हुआ.

दूसरे विश्व युद्ध में गिराया गया एक अमेरिकी बम म्यूनिख में इमारत बनाने के दौरान मिला. इसमें एक रासायनिक विस्फोटक था. ये बम इस तरह से बनाए गए थे कि जब भी इसमें विस्फोट हो तो एसीटोन से भरी एक कांच की बोतल फटेगी. चूंकि यह रासायनिक पदार्थ ज्वलनशील होता है इसलिए हवा के साथ संपर्क में आने पर यह अति विस्फोटक हो जाता है. इस तरह के बम को निष्क्रिय करना मुश्किल है.

म्यूनिख में बम के कारण हुआ नुकसानतस्वीर: dapd

बड़ी समस्या

इन बमों को बिना किसी समस्या के हटाना कितना मुश्किल हो सकता है यह अधिकारियों ने पिछले नवंबर के दौरान कोब्लेंज में जाना. राइन नदी का स्तर कम होने पर उसमें 1,400 किलो का एक बम मिला. इसके बाद 45 हजार लोगों को यहां से सुरक्षित जगहों तक ले जाया गया. यह बम कई साल से वहीं जंग खा रहा था. नॉर्दराइन वेस्टफेलिया राज्य में इस तरह के कई बम हैं. क्योंकि यहां सबसे ज्यादा उद्योग और हथियार बनाने के कारखाने थे और राइन नदी के किनारे के शहरों पर खूब हवाई हमले हुए थे. विस्फोटकों के साथ डूबे जहाज भी बहुत खतरनाक हैं. इनमें मस्टर्ड गैस और सैरिन गैस जैसे जहरीले केमिकल हैं. नॉर्दराइन वेस्टफेलिया में बम निष्क्रिय करने वाले दस्ते के आर्मिन गेबहार्ड ने डॉयचे वेले को बताया, "रासायनिक विस्फोटक इलाके के वातावरण को देखते हुए बनाए जाते हैं लेकिन वह भी पड़े पड़े जंग खाते हैं. अगर विस्फोटकों का खाका जंग खा चुका है तो पानी या जमीन के प्रदूषित होने की पूरी आशंका है. इतना ही नहीं विस्फोटक के नुकसान करने की क्षमता बनी रहती है. इसलिए इन विस्फोटकों से पार पाना और मुश्किल हो गया है."

बम निरोधक दस्ता

जर्मनी में कई क्षेत्रीय विभाग हैं जो बम निष्क्रिय करने के लिए काम कर रहे हैं. ड्युसेलडॉर्फ में इस तरह की कुल 13 टीमें हैं जो बम ढूंढने और उन्हें निष्क्रिय करने का काम करती हैं. इस केंद्र की प्रवक्ता स्टेफानी पाउल बताती हैं, "छोटे हथगोले और विस्फोटक युद्ध सामग्री रोज ही मिलती है. इन्हें निष्क्रिय होने की खबर किसी को नहीं लगती."

फ्रैंकफर्ट में 250 किलो का बमतस्वीर: picture-alliance/dpa

गेबहार्ड बताते हैं, "दूसरे विश्व युद्ध के विस्फोटकों की सामग्री सीमित है. हर बम निरोधक दस्ते के पास प्रशिक्षण और निगरानी के उपकरण इकट्ठा करके रखे हैं." हर मामले में दस्ते को ध्यान से देखना और समझना होता है कि किस तरह के विस्फोटक से उनका पाला पड़ा है इसे कैसे निष्क्रिय किया जा सकता है और वह बम किस स्थिति में है. इससे उन्हें विस्फोटक की मात्रा का पता चलता है. सामान्य स्थिति में बम को मौके पर ही निष्क्रिय किया जा सकता है, या तो हाथ से या फिर रस्सी से या रिमोट कंट्रोल से. इसके बाद बम को ले जाया जाता है और इसे फेंक दिया जाता है.

जब किसी इलाके में निर्माण कार्य शुरू किया जाता है तो अधिकारी ब्रिटेन और अमेरिका के सैन्य आर्काइव से हवाई फोटो की मदद लेते हैं. इन फोटो में देखा जा सकता है कि कहां बम के कारण गड्ढे बने. इनसे पता लगता है कि कितने बम उस समय गिराए गए और कितने नहीं फटे. राज्य के गृह मंत्रालय ने जानकारी दी कि नॉर्तराइन वेस्टफेलिया ने 2010 में बम निष्क्रिय करने के लिए दो करोड़ दस लाख यूरो खर्च किए.

जानकारों का कहना है कि विश्व युद्ध के इस भार से मुक्त होने के लिए कई और साल लगेंगे. बम निष्क्रिय करने वाले विशेषज्ञों का भविष्य जर्मनी में शानदार है.

रिपोर्टः कारिन यैगर/आभा मोंढे

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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