हाल में जर्मनी के कई बड़े नेताओं और सरकारी दफ्तरों को बम धमाकों की धमकी मिली है. जांच दल इन धमकियों में इस्तेमाल शब्दों को नव-नाजियों से जोड़ कर देख रहे हैं.
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जर्मनी के अखबार ज्युडडॉयच त्साइटुंग और सरकारी चैनल ने बम धमकियों से जुड़े इस मामले पर एक रिपोर्ट पेश की है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के कई बड़े नेताओं को 2018 के बाद से अब तक करीब 100 से भी ज्यादा धमकी भरे ईमेल भेजे गए हैं. ये मेल नेशनल सोशलिस्ट ऑफेन्सिव, "एनएसयू 2.0" जिसे नेशनल सोशलिस्ट अंडरग्राउंड भी कहा जा रहा है, उसके पते से भेजे गए हैं.
हाल में जर्मनी के उत्तरी शहर ल्युबेक में एक ट्रेन स्टेशन और पश्चिमी शहर गेल्सनकिर्षेन के फाइनेंस ऑफिस में बम होने की जानकारी मिली थी. जिसके बाद इसे खाली कराया लेकिन वहीं कोई बम नहीं मिला.
लोगों को "मारने की धमकी"
जांचकर्ता, लिखने की शैली और टारगेट में दिखने वाली समानता के चलते मान रहे हैं कि है अज्ञात धमकी भरे ईमेल और बम की ऐसी सूचनाओं के बीच कोई संबंध हैं. हालांकि अब तक यह पता नहीं चल सका है कि इन धमकियों को भेजने वाला कोई अकेला व्यक्ति है या कोई समूह. जर्मन सांसद मार्टिना रेनर को ईमेल भेजने वाले ने स्वयं को इन बम धमकियों के पीछे बताया था. ईमेल में बैंकों, रेलवे स्टेशनों और जर्मनी के सरकारी दफ्तरों को बम से उड़ाने की बात कही गई है. कुछ धमकियों में लोगों को लेटर बम भेजने से लेकर सड़कों पर राइफल, पिस्टल और अन्य जैविक हथियारों से मारने जैसी बातें भी हैं.
हिटलर की 'फर्जी' डायरी का चक्कर
करीब तीन दशक पहले जर्मन पत्रिका 'डेयर श्टेर्न' ने कुछ ऐसी डायरियां प्रकाशित कीं, जो नाजी तानाशाह अडोल्फ हिटलर की बताई गईं. बाद में पत्रिका के ये दावे गलत साबित हुए और यह कांड जर्मन मीडिया का सबसे बड़ा घोटाला साबित हुआ.
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दुनिया भर की नजर हैम्बुर्ग पर
25 अप्रैल 1983 को पत्रिका 'डेयर श्टेर्न' ने अपने हैम्बुर्ग कार्यालय में अंतरराष्ट्रीय प्रेस गोष्ठी रखी. तमाम टीवी कैमरों और विश्व भर से आए पत्रकारों के सामने श्टेर्न के रिपोर्टर गेर्ड हाइडेमन ने बड़े ही गर्व के साथ वे खास डायरियां पेश कीं.
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बड़ी स्टोरी की तलाश में
गेर्ड हाइडेमन 1970 के दशक से ही पत्रिका के खोजी रिपोर्टर थे. उन्हें नाजी काल की चीजें इकट्ठा करने का बड़ा शौक था. इसी शौक के चलते उन्होंने भारी कर्ज लेकर हरमन गोएरिंग की यॉट खरीदी. जैसे ही उन्हें पता चला कि कोई बिचौलिया कथित तौर पर हिटलर की डायरी बेचना चाहता है, इसे हाइडेमन ने अपने जीवन का सबसे बड़ा मौका समझा.
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गलत साबित हुए विशेषज्ञ
ब्रिटिश इतिहासकार और हिटलर के विषय में बड़े विशेषज्ञ ह्यू ट्रेवर-रोपर और अमेरिकी इतिहासज्ञ गेरहार्ड लुडविग वाइनबेर्ग भी हैम्बुर्ग प्रेस कांफ्रेंस में शामिल हुए. इन्होंने मीडिया को बताया कि वे डायरी असली हैं. मगर कुछ ही दिनों बाद जर्मन विशेषज्ञों ने उनके ये दावे गलत साबित कर दिए.
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पर्दाफाश
6 मई 1983 को कई समाचार एजेंसियों में खबर आई कि ये डायरियां झूठी हैं. जर्मन पुलिस के विशेषज्ञों ने साबित कर दिया था कि सभी दस्तावेज नकली थे. ये डायरियां दूसरे विश्व युद्ध के बाद कभी लिखी और जिल्द लगाई गई थीं.
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गलत निकले हस्ताक्षर
डायरी पर मिले नाम के पहले अक्षरों को देख कर शक पैदा हुआ. अडोल्फ हिटलर के 'एएच' के बजाए कवर पर 'एफएच' लिखा था. कुछ लोगों का अंदाजा था कि इसका पूरा मतलब 'फ्यूहरर हिटलर' था. बाद में पता चला कि डायरियों का हिटलर से कोई लेना देना ही नहीं था.
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घोटाले के पीछे था कौन
मामले का खुलासा होते ही फर्जीवाड़ा करने वाले को पकड़ लिया गया. श्टुटगार्ट के एक पेंटर कोनराड कुयाउ ने एक बिचौलिए के जरिए पत्रकार हाइडेमन से संपर्क साधा था. उसने ही दावा किया था कि उसके पास हिटलर की वे कथित डायरियां हैं जिनकी कीमत आज भी करीब 50 लाख यूरो होती. इस सारे लेनदेन के दौरान पेंटर कुयाउ ने फर्जी नामों का इस्तेमाल किया.
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चली सुनवाई
फर्जीवाड़े के इस मामले में कुयाउ और हाइडेमन दोनों पर मुकदमा चला. कुयाउ पर जालसाजी का आरोप साबित हुआ और उसे साढ़े 4 साल की सजा सुनाई गई. हाइडेमन पर पत्रिका से मिले पैसों का गबन करने का आरोप साबित हुआ और उन्हें भी 4 साल 8 महीने की जेल हो गई.
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खूब उड़ा मजाक
1992 में आई एक व्यंग्य फिल्म "श्टोंक" में इसी फर्जी डायरी कांड को दिखाया गया. मामले में शामिल लोगों के असली नाम नहीं लिए गए लेकिन पूरी कहानी असली घटनाक्रम से काफी मिलती जुलती थी.
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जालसाजी से हुई कमाई भी
पेंटर कुयाउ को स्वास्थ्य कारणों से 3 साल की सजा के बाद ही जेल से रिहा कर दिया गया. बाहर आकर उसने अपने जानेमाने होने का खूब फायदा उठाया. एक नया आर्ट स्टूडियो खोल लोगों को "असली कुयाउ नकल" बेचने लगा. उसकी मौत 12 सितंबर 2000 को श्टुटगार्ट में ही हुई.
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बर्बाद हो गया करियर
हाइडेमन को सजा के दौरान किसी अपराधी की तरह सेल में नहीं बल्कि खुली जेल में रखा गया. लेकिन एक पत्रकार के तौर पर उनका करियर तबाह हो गया. 2002 में हाइडेमन और पूर्वी जर्मनी की खुफिया सेवा के बीच संबंधों का भी मीडिया में खुलासा हुआ. हाइडेमन आज भी हैम्बुर्ग में रहते हैं.
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ये ईमेल नेताओं, पत्रकारों, वकीलों और जर्मन यहूदियों की संस्था सेंट्रल काउंसिल ऑफ ज्यूज, सरकारी दफ्तरों और सिंगर हेलेना फिशर जैसी हस्तियों को भी भेजे गए हैं. ईमेल उन लोगों को खास तौर पर मिल रहे हैं जिन्होंने 2018 में केमनित्स में आप्रवासियों के खिलाफ हुए प्रदर्शन को लेकर आवाज उठाई थी.
जांचकर्ताओं के मुताबिक अब तक कहीं भी कोई बम नहीं मिला है. पिछले साल फ्रैंकफर्ट में रहने वाले तुर्किश मूल की एक वकील सेदा बासी यिलदिज को एनएसयू 2.0 की ओर से एक फैक्स भेजा गया था. इस फैक्स में उनकी दो साल की बेटी को जान से मारने की धमकी दी गई. नेशनल सोशलिस्ट अंडरग्राउंड जर्मनी में घोर दक्षिणपंथियों का एक समूह था. इस समूह को साल 2000 से 2007 के बीच आठ तुर्किश लोगों को जान से मारने का दोषी पाया गया था. सेदा उस हमले में मारे गए एक तुर्किश व्यक्ति के परिवार से आती हैं.
नाजियों के प्रोपेगैंडा स्टीकर्स
सार्वजनिक जगहों पर स्टीकर्स चिपका कर, उनमें राजनीतिक संदेश देने का चलन तकरीबन एक शताब्दी पहले शुरू हुआ. जर्मन हिस्टोरिकल म्यूजियम में एक प्रदर्शनी में नाजी दौर के स्टीकर्स को दिखाया जा रहा है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
'गुरिल्ला' तरीका
मार्केटिंग स्ट्रेटेजिस्ट स्टीकर्स के जरिए प्रचार करने की रणनीति को 'गुरिल्ला मार्केटिंग' कहते हैं. कहीं भी, कभी भी स्टीकर्स जल्द से जल्द बांटे या चिपकाए जा सकते हैं. इनका इस्तेमाल ब्रांडिंग या प्रचार के लिए होता है, साथ ही राजनीतिक विचारों के प्रचार प्रसार के लिए भी इन्हें भरपूर इस्तेमाल किया जाता है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
राजनीतिक जोड़-तोड़
प्रदर्शनी में शामिल दस्तावेज दर्शाते हैं कि नाजियों ने राजनीतिक मतभेदों को बढ़ाने और नस्लवादी प्रोपेगैंडा करने के लिए किस तरह स्टीकर्स का इस्तेमाल किया. स्टीकर्स में मौजूद यहूदी विरोधी नारे नाजी दौर की मानसिकता बताते हैं. इनका मकसद यह दिखाना है कि आसानी से बांटा जा सकने वाला स्टिकर क्या क्या कर सकता है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
प्रोपेगैंडा स्टीकर्स
नाजियों ने जानबूझकर लोगों के बीच जाकर इन यहूदी विरोधी स्टीकर्स के जरिए अपना नफरत भरा संदेश बांटा था. 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के तुरंत बाद, बर्लिन में नाजी संगठनों एसए और एसएस पैराट्रूपर्स ने यहूदियों के बीच दहशत फैलाने के लिए उनकी दुकानों के बाहर नफरत भरे स्टीकर्स चिपकाए.
तस्वीर: bpk Bildagentur
नाजी विरोधी प्रोपेगैंडा
यहूदी संगठनों ने भी नाजियों के दमन से खुद को बचाने के लिए इन्हीं तरीकों को इस्तेमाल करने की कोशिश की. 1930 के दशक के शुरुआती सालों में उन्होंने भी इसी तरह के एंटी—प्रोपेगेंडा स्टीकर्स छापे. यहूदी धर्म मानने वाले जर्मन नागरिकों के केंद्रीय संगठन की ओर से जारी ये स्टीकर कहता है, ''नाजी हमारी त्रासदी हैं.''
तस्वीर: The Wiener Library for the Study of the Holocaust & Genocide, London
नफरत भरे प्रेम पत्र
यहां तक कि 1933 से 1945 के बीच, यहूदी विरोधी स्टीकर्स को निजी संदेशों और प्रेम पत्रों में भी इस्तेमाल किया गया. एक राजनीतिक मुहर के बतौर. अक्सर इन पत्रों के लिफाफों को ऐसे सजाया जाता कि पाने वाला तुरंत समझ जाए कि भेजने वाले का राजनीति रुझान क्या है.
तस्वीर: Deutsches Historisches Museum
सोशल मीडिया से पहले
1970 और 80 के दशक में खासकर जर्मनी में राजनीतिक स्टीकर्स का बहुत इस्तेमाल हुआ. सोशल मीडिया को आए अभी कुछ ही साल हुए हैं लेकिन उससे पहले कई पीढ़ियां राजनीतिक विचारों के प्रसार के लिए स्टीकर्स पर ही निर्भर थीं. इस प्रदर्शनी का एक बड़ा हिस्सा, वोल्फगांग हानी के निजी कलेक्शन का हिस्सा है. उन्होंने 19 वीं सदी के उत्तरार्ध से आज तक इन स्टीकर्स को जमा किया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S.Kembowski
मौजूदा दौर
खासकर ऐतिहासिक संदर्भों पर केंद्रित यह प्रदर्शनी मौजूदा हालातों पर भी आलोचनात्मक नजर डालती है. शरणार्थियों का संकट और उससे पैदा हुई राजनीतिक बहस भी स्टीकर्स की इस प्रदर्शनी का हिस्सा है.