1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
साहित्य

बर्टोल्ट ब्रेष्ट: थ्रीपेनी नोवेल

हाइके मुंड
२० दिसम्बर २०१८

ब्रेष्ट ने थ्रीपेनी नोवेल डेनमार्क में निर्वासन के दौरान 1934 में लिखा था. उनके नाटक थ्री पेनी ऑपेरा की सफलता के बाद ये उपन्यास आया.

Deutschland Bertolt Brecht 1927
तस्वीर: picture-alliance/akg-images

बर्टोल्ट ब्रेष्ट चाहते थे कि उनका थ्री पेनी नोवेल यथाशीघ्र प्रकाशन के लिए चला जाए, क्योंकि सफल लेखक को उस समय पैसों की सख्त जरूरत थी. डच प्रकाशक आलेर्त डे लांगे ने ब्रेष्ट को अच्छे खासे एडवांस का भरोसा दिया था बशर्ते पांडुलिपि समय पर मिल जाए. बाद में इसे नाटक में तब्दील होना था और अपने तई जिसके साथ कई विवाद भी जुड़ने थे.

1933 में नाजियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और इसके चलते ब्रेष्ट को निर्वासित होकर डेनमार्क जाना पड़ा. बर्लिन में राइष्टाग अग्निकांड से एक दिन बाद 28 फरवरी 1933 को ब्रेष्ट अपने परिवार के साथ निकल भागने में सफल रहे. प्राग, वियना, ज्युरिष और पेरिस होते हुए वे डेनमार्क पहुंचे. 15 साल ब्रेष्ट शरणार्थी बनकर रहे.

निर्वासन में सफलता

नाजी जर्मनी में ब्रेष्ट जैसे वामपंथी लेखकों के नाटकों पर प्रतिबंध था. मई 1933 में नाजियों ने जिन लेखकों की किताबों को सार्वजनिक रूप से आग के हवाले कर दिया था उनमें ब्रेष्ट की रचनाएं भी शामिल थीं.

उससे बस जरा सा पहले, ब्रेष्ट एक मशहूर नाटककार बन चुके थे. 1928 में उनके "थ्रीपेनी ऑपेरा" का कुर्त वाइल के संगीत के साथ जर्मनी में उद्घाटन हुआ था. पांच साल बाद जब ब्रेष्ट और वाइल को जबरन देश छोड़ना पड़ा, उस समय तक वो नाटक पूरी दुनिया में हिट हो चुका था और 18 भाषाओँ में अनुदित होकर यूरोप में 10 हजार से भी ज्यादा बार प्रदर्शित किया जा चुका था.

ये नाटक, सर्वकालिक सफलतम सांगीतिक थियेटरों में से एक बन गया. दशकों तक इसके 250 विभिन्न प्रोडक्शन मंचित किए गए.

डेनमार्क जाते हुए ब्रेष्ट की मुलाकात जर्मन उपन्यासकार हरमन केस्टेन से हुई थी जो डच प्रकाशन आलेर्त डे लांगे में तब नवगठित जर्मन भाषा विभाग के प्रभारी थे. कई चिट्ठियों बाद, केस्टेन और ब्रेष्ट ने अगले उपन्यास के लिए कॉपीराइट पर दस्तखत किए जिसे थ्रीपेनी ऑपेरा पर आधारित होना था. अग्रिम भुगतान के साथ ब्रेष्ट आर्थिक तौर पर सुरक्षित हो पाए और डेनमार्क के एक द्वीप फ्युनेन में उन्होंने एक मकान खरीद लिया.

ब्रेष्ट ने ये उपन्यास डेनमार्क में निर्वासन में लिखातस्वीर: ullstein bild - Granger Collection

प्रस्तुति पर असहमतियां

ब्रेष्ट ने "थ्री पेनी नोवेल" पर 1933 में काम करना शुरू किया था. अच्छी रफ्तार से काम करते हुए, उन्होंने शुरुआती अध्याय पूरे किए और 12 अगस्त को एम्सटरडम में अपने प्रकाशकों को पहला पार्सल रवाना कर दिया. लेकिन इसके बाद संबंध ढीले पड़ने लगे. ब्रेष्ट को अन्य कामों की ओर ध्यान देने के अलावा अत्यधिक यात्राएं भी करनी पड़ीं. 1934 की शुरुआत में, प्रकाशकों ने आगे के पृष्ठों की मांग की और ब्रेष्ट पर नोवेल को पूरा करने का दबाव बनाया. विज्ञापन के लिए भी उन्होंने सामग्री की दरख्वास्त की.

यहीं से चीजें बिगड़ने लगीं. ब्रेष्ट लगातार किताब के डिजाइन में बदलाव की मांग दोहराते रहे. किताब की साज सज्जा से लेकर फॉन्ट तक, ब्रेष्ट और उनके प्रकाशकों के बीच रिश्ते तल्ख होने लगे और लगा कि वे कभी न खत्म होने वाली झड़पें थीं. आखिरकार अक्टूबर 1934 में किताब बाजार में आ गई. प्राग, पेरिस और लंदन में निर्वासन में रह रहे जर्मनों तक पहुंची अग्रिम प्रतियां, किताब की कामयाबी कहती थीं.

"थ्रीपेनी नोवेल" लंदन की कोहरेदार सड़कों और बंदरगाही इलाके में और पुरुषों के गलत धंधों के ठिकानों, पबों और वाष्प स्नानघरों की पृष्ठभूमि में रचा गया है. "थ्रीपेनी नोवेल" का "थ्रीपेनी ऑपेरा" से कोई संबंध नहीं. इसके किरदार, जैसे कि "भिखारियों का दोस्त" पीचम और उसकी खूबसूरत लेकिन हिसाबी बेटी पॉली, और मैकहीथ जिसे "छुरेबाज मैक" कहा जाता है और जो आपराधिक गिरोह का सरगना और धूर्त व्यापारी है, ये सब इस उपन्यास में भी हैं, लेकिन उनकी सेटिंग अलग है.

1920 के दशक में लंदन का हार्बर इलाका भिखारियों का अड्डा होता थातस्वीर: picture-alliance/CPA Media/Pictures From History

आधुनिक समाज से टकराते ब्रेष्ट

ये कहानी 1902 के लंदन की है. जब ब्रिटेन में पूंजीवादी व्यवस्था का उदय हो रहा था और दक्षिण अफ्रीका में दूसरा एंगलो-बोयर युद्ध छिड़ा हुआ था. ये दोनों घटनाएं उपन्यास की ऐतिहासिक बुनियाद बनाती हैं.

जोनाथन पीचम पूरे लंदन में पेशेवर भिखारियों का एक सिंडीकेट चलाता है जिससे वो एक अमीर आदमी बन चुका है.

"पीचम ने बहुत छोटे से शुरुआत की थी. कुछ समय तक उसने एक हाथ वाले, अंधे और बहुत बूढ़े चुनिंदा भिखारियों को सलाहें देकर मदद की. उसने उनके लिए परिस्थितियां तैयार कीं, ऐसी जगहें जहां लोग भीख देते हैं, क्योंकि लोग हर जगह और किसी भी समय भीख नहीं देते हैं...पीचम के पास आने वाले भिखारियों ने भी पाया कि उनकी आय बढ़ रही है. लिहाजा वे उसे, उसकी मेहनत के एवज मेंअपनी कमाई का हिस्सा देने पर राजी हो गये."

इस बीच पीचम की बेटी, पॉली, अपनी अदाओं से पुरुषों का ध्यान खींचने में व्यस्त है:

"पूरे पड़ोस में मिस पीचम, ‘पीच' के नाम से मशहूर थी. उसकी त्वचा बहुत सुंदर थी. जब वो चौदह साल की थी, उसे दूसरी मंजिल पर अलग कमरा दे दिया गया था, लोग कहते हैं कि ऐसा इसलिए था कि वो अपनी मां को ज्यादा न देख सके, जो आत्माओं की अपनी कमजोरी पर काबू करने में असमर्थ थी."

पॉली का बाप एक अच्छे खासे दहेज के एवज अपनी बेटी की शादी कर देना चाहता था. लेकिन मैकहीथ बीच में आ जाता है, वो पॉली से दोस्ती गांठता है और उससे शादी रचा लेता है. इस तरह कहानी में बहुत से मोड़ आते हैं जिनमें हत्या, विश्वासघात, अवैध कारोबारी सौदों के साथ और भी बहुत कुछ होता है.

आपराधिक बैंकवाले

थ्रीपेनी नोवेल प्रकाशित होने से पहले ही ब्रेष्ट ने दार्शनिक कार्ल मार्क्स के कई सबक अपने लेखन में उतार लिए थे. कई वर्ष उन्होंने मार्क्स के सिद्धांतों को समझने में और छात्र जीवन से ही मंच पर हर रात उनके सामाजिक विचारों को खंगालने में बिताए थे.

थ्रीपेनी नोवेल का अधिकांश हिस्सा उन विचारों से प्रभावित था. जिससे ऐसा लगता है कि दास्तान 1934 की नहीं आज की है: जोखिम भरे बिजनेस मॉडल, दूसरी कंपनियों के पतन से लाभ हासिल करते वित्तीय उपक्रम, रियायत के जरिए बिक्री, शोषण और हर कीमत पर सिर्फ मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करना, वित्तीय दुनिया की इन सभी आधुनिक समस्याओं से ये उपन्यास टकराता है.

इन सब के बीच मैकहीथ लोगों का शोषण करने के परिष्कृत तरीके खोजता हुआ अपने खेल का सर्वोपरि बन गया है. "उसकी बी. दुकानें चतुराई से खड़ी की गई थीं, और वे गरीबों की बचतों का चालाकी से इस्तेमाल करती थीं, लेकिन वे बहुत साधारण और आदिम जमाने की भी थीं, खुरदुरे पाइन बोर्डों पर रखे हुए सामान के गट्ठरों से भरे पुताई वाले अंधेरे छेद जिनके पीछे हताश उदास लोग तैनात थे. कौड़ी की कीमतों वाली इन चीजों का स्रोत जाहिर नहीं होता था."

नाटककार ब्रेष्टतस्वीर: picture-alliance/akg

अपनी प्रतिष्ठा कैसे बचाई जाती है ये जानने वाला निर्लज्ज अपराधी, मैकहीथ आखिर में एक बैंक का निदेशक बन जाता है. ब्रेष्ट का उपन्यास जरूरत पड़ने पर, पूंजीवाद की आलोचना या आम समाज की आलोचना में कोई किफायत नहीं बरतता. ये बात उल्लेखनीय है कि ब्रेष्ट द्वारा पेश की गई आलोचना और व्यंग्य आज भी कितना वैध बना हुआ है. ब्रेष्ट की एक प्रसिद्ध उक्ति है: "बैंक को लूटने की तुलना में बैंक की स्थापना क्या चीज है?" यह एक ऐसा विचार है जो आज भी गूंजता है.

बर्तोल्त ब्रेष्टः थ्रीपेनी नोवेल, पेंग्विन क्लासिक्स, (जर्मन शीर्षकः द्राईग्रॉशेनरोमान), 1934

20वीं सदी के सबसे महत्त्वपूर्ण नाटककारों में शुमार बर्टोल्ट ब्रेष्ट का जन्म आउग्सबुर्ग में 1898 में हुआ था. उन्होंने कम उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था. 1920 के दशक की शुरुआत में उन्हें "बाल" जैसे अपने शुरुआती कामों के लिए जाना जाने लगा. उन्होंने डॉयचेस थियेटर और बर्लिन के अन्य थियेटरों में बतौर निर्देशक और लेखक काम किया. 1926 में मार्क्सवादी सिद्धातंकारों के संपर्क में आए जिसका उनके काम पर प्रभाव पड़ा. 1933 में वो नाजियों से बच निकले, डेनमार्क पहुंचे और फिर अमेरिका. 1948 में वो जर्मनी लौटे. पूर्व बर्लिन में रहे जो उस समय कम्युनिस्ट शासन वाले जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य (जीडीआर) में था. लौटने पर, ब्रेष्ट ने अपनी पत्नी हेलेने वाइगेल के साथ बेरलिनर एंसेंबल थियेटर में शुरू किया. 1956 में उनका निधन हो गया.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें