अपराध बढ़ रहे हैं तो पुलिस पर खतरे भी बढ़ रहे हैं. जर्मन राजधानी बर्लिन में पुलिस को इलेक्ट्रिक शॉक देने वाली पिस्तौल देने पर विचार हो रहा है. मांशपेशियों को नाकाम करने वाले इस हथियार को टेजर कहा जाता है.
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बर्लिन के गृह मंत्री ने घोषणा की है कि राजधानी के सिटी सेंटर में दो इलाकों में गश्ती पुलिस को 10 टेजर पिस्तौलों से लैस किया जाएगा. यह टेस्ट तीन साल तक चलेगा. सिटी सेंटर के इस इलाके में पुलिस झगड़ों की ज्यादा संभावना देखती है. पुलिस का कहना है कि जटिल परिस्थितियों में टेजर का इस्तेमाल जान बचाने में सहायक हो सकता है.
असमर्थ करने वाला शॉक
टेजर का इस्तेमाल करने से पिस्तौल से दो डार्ट जैसे इलेक्ट्रोड निकलते हैं जो कंडक्टर के जरिये मुख्य यूनिट से जुड़े रहते हैं और मांशपेशियों के कंट्रोल को बाधित कर न्यूरो मस्कुलर असमर्थता पैदा करते हैं. टेजर को नॉन लीथल हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. यह ड्यूटी के दौरान पुलिस अधिकारियों के घायल होने की संख्या में भी कमी लाता है.
बर्लिन सरकार का यह फैसला विवादों से परे नहीं है. सीडीयू पार्टी के गृहमंत्री पुलिस को टेजर दिए जाने का समर्थन कर रहे हैं तो दूसरे दल इसका विरोध कर रहे हैं. टेजर समर्थकों का कहना है कि इलेक्ट्रिक शॉक देने वाली पिस्तौल से हमलावर को या झगड़ा कर रहे लोगों को असमर्थ किया जा सकता है, जबकि इस समय पुलिस के सामने सिर्फ गोली चलाने का विकल्प होता है. बर्लिन की सीडीयू का मानना है कि टेजर से पुलिसकर्मियों की बेहतर सुरक्षा संभव है. यह पेपर स्प्रे के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है और लाठी के मुकाबले ज्यादा मानवीय.
विवादों में इस्तेमाल
अमेरिका जैसे देशों में गश्ती पुलिस टेजर का इस्तेमाल करती है. जर्मनी में करीब एक हजार यूरो महंगे टेजर का इस्तेमाल विवादित है. हालांकि कमांडो स्पेशल फोर्स इसका इस्तेमाल कई प्रांतों में पहले से ही कर रहे हैं, लेकिन शहरों में गश्त करने वाले पुलिसकर्मियों को अभी तक इस हथियार से लैस नहीं किया गया है. बर्लिन की स्पेशल फोर्स के पास 2001 से ही टेजर है. अब तक उसका 23 बार इस्तेमाल किया गया है जिसमें 18 मामलों में आत्महत्या पर उतारू व्यक्तियों के खिलाफ. पुलिस का कहना है कि अब तक अनुभव अच्छा रहा है.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गश्ती पुलिसकर्मियों को इलेक्ट्रिक शॉक पिस्तौल दिए जाने का विरोध किया है. संस्था का कहना है कि यह हथियार सिर्फ स्पष्ट निर्देशों के साथ स्पेशल फोर्स को ही दिया जाना चाहिए.
एमजे/वीके (डीपीए)
कौन है हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार
स्वीडन के थिंक टैंक सिपरी की रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया में हथियारों का आयात करने वाले देशों में एशिया और मध्यपूर्व के देश सबसे आगे हैं. इनमें भी टॉप पर है भारत जहां पर्याप्त स्वदेशी हथियारों का निर्माण नहीं हो रहा है.
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#1 भारत
दुनिया भर में आयात किए जाने वाले कुल हथियारों का 14 फीसदी केवल भारत में आता है. हथियारों का आयात भारत में चीन और पाकिस्तान से तीन गुना ज्यादा है. सिपरी की रिपोर्ट में इसका कारण “भारत की अपनी आर्म्स इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धी स्वदेशी हथियार डिजाइन कर पाने में असफल रहना” बताया गया है. सबसे ज्यादा हथियार रूस (70%), अमेरिका (14%) और इस्राएल (4.5%) से आते हैं.
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#2 सऊदी अरब
पहले के मुकाबले बीते पांच सालों में सऊदी अरब में हथियारों का इंपोर्ट 275 प्रतिशत बढ़ा. सीरिया और यमन में जारी युद्ध की स्थिति का भी इस बढ़त में हाथ है. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका और ब्रिटेन से आ रहे हैं. सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार "तेल के दामों में आई कमी के बावजूद, मध्य पूर्व में हथियारों की बड़ी खेप आना जारी रहेगा क्योंकि बीते पांच सालों में कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर हुए हैं."
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#3 चीन
विश्व के कुल आयात में करीब 4.7 फीसदी हिस्सेदारी वाला चीन धीरे धीरे अपने हथियारों की जरूरत खुद पूरी करने की ओर अग्रसर है. 2006-11 के मुकाबले 2011-15 में आयात में 25 फीसदी की कमी दर्ज हुई. 21वीं सदी के शुरुआती सालों में चीन दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक हुआ करता था. अब तीसरे स्थान पर है.
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#4 संयुक्त अरब अमीरात
बीते पांच सालों में उसके पहले के पांच सालों की अपेक्षा पूरे मध्यपूर्व इलाके में हथियारों का आयात 61 फीसदी बढ़ा. इसी दौरान केवल संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में आयात में 35 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. जबकि कतर में यह 279 फीसदी बढ़ गया. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका (65%) से आते हैं. हाल ही में यूएई ने फ्रांस से 60 नए रफाएल लड़ाकू जेट खरीदने का सौदा किया है.
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#5 ऑस्ट्रेलिया
सरकार हथियारों की खरीद 65 फीसदी तक बढ़ा कर बीते पांच सालों में ऑस्ट्रेलियाई सेना को मजबूत बना रही है. ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट कंगारू नाम के एक बड़े प्रोजेक्ट के तहत 12.4 अरब डॉलर की कीमत पर अमेरिका से 72 स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 खरीदेगा. हालांकि अभी एफ-35 जेटों के निर्माण और विकास की प्रक्रिया में कुछ बाधाएं आती दिख रही हैं. कई सेना विशेषज्ञ इसे रूस के सुखोई सू-35 से कम खूबियों वाला बताते हैं.
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#6 तुर्की
तुर्की विदेशी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम करने की ओर प्रयासरत है. दो द्वीपों वाले इस देश में अब ज्यादा से ज्यादा द्विपक्षीय टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की योजनाएं चलाई जा रही हैं. ऑस्ट्रेलिया की ही तरह तुर्की भी नाटो का सदस्य देश है. और उसने भी अमेरिका से एफ-35 जेट विमानों की खरीद की है. तुर्की नाटों के साथ मिलकर अपना खुद का युद्धक टैंक बनाने की कोशिश कर रहा है.
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#7 पाकिस्तान
चीनी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार पाकिस्तान ही है. हाल ही में इस्लामाबाद ने डीजल से चलने वाली आठ चीनी पनडुब्बियां, टाइप 41 युआन, खरीदने का सौदा किया है. इसके अलावा पाकिस्तानी तोपखाने और हवाई बेड़े अभी भी अमेरिका से आयात होते हैं.
केवल पांच सालों में आयातकों की सूची में 43वें स्थान से 8वें पर आने वाले इस कम्युनिस्ट देश में सबसे ज्यादा हथियार रूस से आ रहे हैं. पांच सालों के अंतराल में आयात में करीब 700 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. दक्षिण चीन सागर में जारी संघर्ष के कारण वियतनाम अपनी जलसेना और वायुसेना की लड़ाकू क्षमता को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.