जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी को सिटी-स्टेट बर्लिन के चुनाव में आज तक का सबसे बुरा नतीजा देखने को मिला. मैर्केल की शरणार्थी नीति का विरोध करने वाली दक्षिणपंथी पार्टी की जीत हुई.
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अगले साल जर्मनी में होने जा रहे राष्ट्रीय चुनाव से पहले यह चांसलर मैर्केल की पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं. मैर्केल की पार्टी को पिछड़ता दिखाने वाले यह लगातार पांचवे चुनावी नतीजे हैं. साथ ही साथ इन चुनावों में उग्र दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की अभूतपूर्व जीत मिली है. अपनी सांस्कृतिक विविधता और अंतरराष्ट्रीय अपील के लिए मशहूर रहे जर्मनी के सबसे बड़े शहर बर्लिन के चुनाव में पॉपुलिस्ट पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी को 14 फीसदी वोट मिलना महत्वपूर्ण घटना है.
2015 में ही करीब 10 लाख शरणार्थी जर्मनी पहुंचे, जिनमें से लगभग 70,000 तो केवल बर्लिन पहुंचे थे. रिफ्यूजियों के लिए जर्मनी के द्वार खोल देने वाली चांसलर मैर्केल की शरणार्थी नीति को लेकर देश के भीतर असंतोष बढ़ा है. मैर्केल की सहयोगी पार्टी सीएसयू के एक मुखर नेता मार्कुस जोएडर ने इन वोटों को "जगाने वाली बड़ी घंटी" कहा है और आप्रवासन को लेकर कड़ी सीमाएं तय करने की मांग की है. जर्मन दैनिक बिल्ड से बातचीत में उन्होंने कहा, "क्रिस्चियन यूनियन अपने कोर वोटरों का भरोसा हमेशा हमेशा के लिए खो सकता है."
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि इन नतीजों के कारण यूरोप की सबसे प्रभावशाली नेता मानी जाने वाली मैर्केल को यूरोपीय संघ के बजाए जर्मनी के आंतरिक मामलों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा. पूरा ईयू इस समय आर्थिक स्थिति और ब्रिटेन के संघ से बाहर निकलने के फैसले को लेकर चिंतित है और शरणार्थियों पर राय को लेकर विभाजित दिख रहा है. हाल के चुनावों में जर्मनी के अलावा फ्रांस, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड्स और अमेरिकी चुनाव प्रचार अभियान में भी दक्षिणपंथी विचारधारा को बढ़त मिलती नजर आ रही है.
परवान चढ़ता उग्र दक्षिणपंथ
इस्लामी कट्टरपंथ और शरणार्थी संकट ने पश्चिमी देशों में उग्र दक्षिणपंथ का खतरा बढ़ाया. कट्टरपंथी हमलों और शरणार्थियों से घबराए लोगों का गुस्सा इस्लाम और सरकारों पर उतर रहा है. मुख्य धारा की पार्टियां समर्थन खो रही हैं.
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बढ़ता असर
उग्र दक्षिणपंथी पार्टियों का पॉपुलिज्म यूरोप के लिए नया नहीं है, पिछले कुछ सालों से ईयू की कथित मनमानियों और आर्थिक मुश्किलों के कारण उग्र दक्षिणपंथ के लिए समर्थन बढ़ रहा था लेकिन शरणार्थियों के आने से उसमें और इजाफा हुआ है.
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फ्रांस में ले पेन
पेरिस पर आतंकी हमलों के तुरंत बाद फ्रांस में हुए स्थानीय चुनावों में मारी ले पेन की उग्र दक्षिणपंथी नेशनल फ्रंट पार्टी को फायदा पहुंचा है और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद की सोशलिस्ट पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई है.
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स्विट्जरलैंड पर भी असर
स्विट्रजरलैंड कभी भी उग्र दक्षिणपंथ का गढ़ नहीं रहा. लेकिन यूरोप के शरणार्थी संकट के बीच अक्टूबर में हुए चुनावों में आप्रवासन विरोधी स्विस पीपुल्स पार्टी एसवीपी को 11 अतिरिक्त सीटें मिली और उसने संसद की 200 में से 65 सीटें जीत लीं.
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जर्मनी में पेगीडा
जर्मनी में पिछले कई महीनों से आप्रवासन विरोधी ड्रेसडेन शहर में हर सोमवार को प्रदर्शन कर रहे हैं. हालांकि प्रदर्शनों को हर शहर में ले जाने का उनका प्रयास विफल रहा है लेकिन आप्रवासन विरोधी एएफडी पार्टी के लिए समर्थन बढ़ रहा है.
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फिनलैंड में जीत
इस साल फिनलैंड में हुए चुनावों में राष्ट्रवादी फिन्स पार्टी संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कुछ लोगों का कहना है कि आप्रवासी विरोधी भावना से शरणार्थियों का बड़ी संख्या में आना उग्र दक्षिणपंथ को बढ़ावा दे रहा है.
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पोलैंड का रास्ता
पोलैंड में पिछले दिनों हुए चुनावों में अति दक्षिणपंथी पार्टी की जीत हुई है और प्रधानमंत्री बेयाटा सीडलो की सरकार ने ईयू के कोटे के अनुसार शरणार्थियों को लेने से साफ मना कर दिया है. वह पिछले सरकार के फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.
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हंगरी में राष्ट्रवाद
हंगरी में विक्टर ओरबान की अनुदारवादी पार्टी 2010 में ही भारी बहुमत से सत्ता में आ गई थी. तब से वह अति राष्ट्रवादी फैसले लेती रही है और यूरोपीय मूल्यों से दूर होती रही है. देश में राष्ट्रवाद और अल्पसंख्यकों पर संदेह का बोलबाला है.
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डेनमार्क में प्रभाव
जून में हुए संसदीय चुनावों में डेनमार्क की उग्र दक्षिणपंथी पार्टी डैनिश पीपुल्स पार्टी संसद में दूसरे नंबर पर रही है. शरण को पूरी तरह बंद करने की मांग करने वाली पार्टी को 21 प्रतिशत मत मिले. सोशल डेमोक्रैट्स भी वहां शरण पर सीमा का समर्थन करते हैं.
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ग्रीस में सात प्रतिशत
ग्रीस में पिछले सितंबर में हुए संसदीय चुनावों में उग्र दक्षिणपंथी पार्टी गोल्डन डाउन को महत्वपूर्ण सफलता मिली. उसे 7 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला और नई संसद में वह तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
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बर्लिन की जीत के बाद एएफडी ने देश के कुल 16 राज्यों में से 10 में प्रमुख विपक्षी दल का स्थान पा लिया है. लेकिन अपनी उम्मीद जितना वोट ना मिलने के कारण यह दक्षिणपंथी पार्टी सम्मिलित सूची में पांचवे स्थान पर ही रह गई. जिसे कुछ विश्लेषक उसकी घटती लोकप्रियता का सबूत बता रहे हैं. फिर भी दूसरे विश्व युद्ध के बाद से यह पहला मौका है जब एक उग्र दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टी को जर्मन राजनीति में इतना पैर जमाने का मौका मिला है.
मैर्केल की पार्टी को 18 फीसदी वोट मिले जो कि युद्ध के बाद के इतिहास में अब तक का सबसे बुरा नतीजा है. मुख्यधारा की दूसरी प्रमुख पार्टी एसपीडी को 22 फीसदी वोट मिले. वामपंथी डी लिंके को चार प्रतिशत की बढ़त के साथ 16 फीसदी और इको पार्टी ग्रीन को 15 फीसदी वोटों के साथ तीसरा और चौथा स्थान मिला. करीब 35 लाख की आबादी वाले बर्लिन के चुनाव में जन सुविधाओं के बुरे हाल, खस्ताहाल स्कूली इमारतों, लेट चलने वाली ट्रेनों और रिहायशी इमारतों की कमी जैसे घरेलू मुद्दों के अलावा बड़ी संख्या में पहुंचे शरणार्थियों से जुड़ी समस्याएं छाई रहीं.
हिमलर की खूनी डायरी
सबसे क्रूर नाजी नेताओं में शुमार हाइनरिष हिमलर की एक डायरी सार्वजनिक हुई, जिसमें उसने 1937-38 और 1944-45 यानि दूसरे विश्व युद्ध के पहले और अपने आखिरी दिनों का ब्यौरा दर्ज किया था.
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मॉस्को स्थित जर्मन इतिहास संस्थान (डीएचआई) अगले साल हिमलर की उन डायरियों को प्रकाशित करने जा रहा है जिसमें दूसरे विश्व युद्ध के ठीक पहले और बाद के दिनों में उसकी ड्यूटी के दौरान जो भी घटा वो दर्ज है. कुख्यात नाजी संगठन एसएस के राष्ट्रीय प्रमुख की यह आधिकारिक डायरी 2013 में मॉस्को के बाहर पोडोल्स्क में रूसी रक्षा मंत्रालय ने बरामद की थी.
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डायरी में हिमलर अपने अगले दिन की योजना के बारे में टाइप करके लिखता था. इसे देखकर जाना जा सकता है कि तब हिमलर के दिन कैसे गुजरते थे. इसमें तमाम अधिकारियों, एसएस के जनरलों के साथ रोजाना होने वाली बैठकों के अलावा मुसोलिनी जैसे विदेशी नेताओं से मुलाकात की बात दर्ज है. इसके अलावा आउशवित्स, सोबीबोर और बूखेनवाल्ड जैसे यातना शिविरों के दौरे का भी जिक्र है.
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हिमलर की सन 1941-42 की डायरी 1991 में ही बरामद हो गई थी और उसे 1999 में प्रकाशित किया गया था. हिमलर को अडोल्फ हिटलर के बाद नंबर दो नेता माना जाता था. 23 मई 1945 को ल्यूनेबुर्ग में ब्रिटिश सेना की हिरासत में आत्महत्या करने वाले हिमलर ने अपने जीवनकाल में एसएस प्रमुख के अलावा, गृहमंत्री और रिप्लेसमेंट आर्मी के कमांडर के पद संभाले थे.
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सभी यातना शिविरों के नेटवर्क के अलावा घरेलू नाजी गुप्तचर सेवा का काम भी हिमलर देखता था. हिमलर के अलावा ऐसी डायरी नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स रखता था. इन डायरियों से होलोकॉस्ट के नाम से प्रसिद्ध यहूदी जनसंहार में हिमलर की भूमिका साफ हो जाती है. डायरी में दिखता है कि उसने यातना शिविरों और वॉरसॉ घेटो का भी दौरा किया और वहां यहूदियों की सामूहिक हत्या करवाई.
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जर्मन दैनिक "बिल्ड" में प्रकाशित इस डायरी के कुछ अंशों में दिखता है कि 4 अक्टूबर, 1943 को हिमलर ने पोजनान में एसएस नेताओं के एक समूह को संबोधित किया. इस तीन घंटे के भाषण में हिमलर ने "यहूदी लोगों के सफाए" की बात कही थी. आधिकारिक तौर पर किसी नाजी नेता के होलोकॉस्ट का जिक्र करने के प्रमाण दुर्लभ ही मिले हैं. हिमलर यूरोप के साठ लाख यहूदियों के खात्मे का गवाह और कर्ताधर्ता रहा.
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नाजी काल के विशेषज्ञों को पूरा भरोसा है कि यह डायरी और दस्तावेज सच्चे हैं. रूस की रेड आर्मी के हाथ लगी इस डायरी के 1,000 पेजों को 2017 के अंत तक दो खंडों वाली किताब के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.
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पोडोल्स्क आर्काइव में करीब 25 लाख पेजों वाले ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं जिन्हें युद्ध के दौरान रेड आर्मी ने बरामद किया था. अब इन्हें डिजिटलाइज किया जा रहा है और रूसी-जर्मन संस्थानों द्वारा प्रकाशित भी.
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डायरी में एक दिन की एंट्री देखिए- 3 जनवरी, 1943: हिमलर अपने डॉक्टर के पास "थेरेपी मसाज" के लिए गया. मीटिंग्स कीं, पत्नी और बेटी से फोन पर बातें कीं और उसी रात मध्यरात्रि को अनगिनत पोलिश परिवारों को मरवा दिया.
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इन दस्तावेजों से हिमलर की विरोधाभासी तस्वीर उभरती है. एक ओर वो सबका ख्याल रखने वाला पारिवारिक व्यक्ति था तो दूसरी ओर अवैध संबंध के तहत मिस्ट्रेस रखता था और उसकी नाजायज संतान भी थी. वो ताश खेलने और तारे देखने का शौकीन था तो यातना शिविरों में आंखों के सामने लोगों को मरते देखने का भी.
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हिमलर की अपनी सेक्रेटरी हेडविग पोटहास्ट के साथ भी दो संतानें थीं. डायरी में उसने 10 मार्च, 1938 को नाजी प्रोपगैंडा प्रमुख योसेफ गोएबेल्स के साथ जाक्सेनहाउजेन के यातना शिविर का दौरा करने और 12 फरवरी, 1943 को सोबीबोर में तबाही को देखने जाने का ब्यौरा लिखा है. ऐसी विस्तृत और पक्की जानकारी पहली बार हिमलर की डायरी के कारण ही सामने आई है.