बर्लिन दीवार गिरने की 30वीं वर्षगांठ पर दीवार के नीचे बनी एक सुरंग को पहली बार जनता के लिए खोला गया है. इस सुरंग को पूर्वी जर्मनी से भागकर पश्चिमी जर्मनी में जाने के लिए बनाया गया था.
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शनिवार को दीवार गिरने की 30वीं वर्षगांठ से दो दिन पहले इस सुरंग को खोला गया. यह सुरंग बैर्नाउर श्ट्रासे पर बर्लिन दीवार के मुख्य स्मारक के पास ही है. बर्लिन के मेयर मिषाएल म्यूलर ने 100 मीटर की इस सुरंग को खोलते हुए उन लोगों को धन्यवाद दिया जिन्होंने इसे बनाया था.
उन्होंने भागने के इस रास्ते पर लगी प्रदर्शनी भी देखी और कहा, "यह देखकर बहुत जबरदस्त अहसास होता है कि आजादी की लड़ाई यहां जमीन के नीचे भी लड़ी जा रही थी. यहां पर आप उन महिलाओं और पुरुषों के साहस को अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने लोगों को आजादी में ले जाने की कोशिश की और पूर्वी जर्मनी की सत्ता का विरोध किया."
इस सुरंग को पूर्वी जर्मनी के कुछ विद्रोहियों ने बनाया था, जो भागकर पश्चिमी जर्मनी में चले गए थे. उन्होंने इसके निर्माण का काम बर्लिन की दीवार बनने के नौ साल बाद यानी 1970 में शुरू किया था.
वे चाहते थे कि उनके दोस्त और परिजन इस सुरंग के जरिए बर्लिन के पश्चिमी हिस्से में पहुंच जाएं. लेकिन इस सुरंग का काम पूरा होने से कुछ दिन पहले ही पूर्वी जर्मन अधिकारियों को इसका पता चल गया. फिर उन्होंने इसका एक हिस्सा ध्वस्त कर दिया.
अब आम लोग इस सुरंग को देख सकते हैं. वहां बर्लिन की दीवार और इस तरह की अन्य सुरंगों को लेकर एक प्रदर्शनी भी चल रही है. बर्लिन की दीवार 28 साल तक रही. उस दौरान 70 से ज्यादा सुरंगें बनी जिनके जरिए लोग बर्लिन के पूर्वी हिस्से से पश्चिमी हिस्से में आना चाहते थे. और लगभग 300 लोगों की कोशिशें कामयाब भी रहीं.
जीडीआर यानि जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक की चीजों को तस्वीरों में कैद कर उनके बारे में अपनी किताब "ओस्ट प्लेसेज" में जानकारी दी है फोटोग्राफर आंद्रेयास मेत्स ने. तस्वीरों में देखिए एकीकरण के पहले वाले पूर्वी जर्मनी की झलक.
तस्वीर: Andreas Metz
वक्त के खिलाफ जंग
पिछले तीन सालों से फोटोग्राफर आंद्रेयास मेत्स ने 1990 तक पूर्वी जर्मनी कहे जाने वाले हिस्से में विस्तृत यात्राएं कीं और खूब तस्वीरें लीं. उस समय की इमारतों, मूर्तियों और दूसरी चीजें जो अब ध्वस्त होने या गल कर खत्म होने के कगार पर हैं. जैसे लाइपजिष शहर का ये नीऑन प्रतीक.
तस्वीर: Andreas Metz
किताब का मकसद
मेत्स चाहते हैं कि उनकी किताब किसी ट्रैवल गाइड या फिर इन जगहों पर जाने के लिए प्रेरित करने वाली किताब के रूप में काम आए. तस्वीर में दिख रहा रेस्तरां "जेरोजे" सन 1983 में पोट्सडम में खुला था और अब भी चलता है. इसे बनाने वाले इंजीनियर उलरिष म्युथर ने ऐसी करीब 70 और फ्यूचरिस्टिक इमारतें डिजाइन की थीं, जिनमें से कई गिराई जा चुकी हैं.
तस्वीर: Andreas Metz
जंगल में लेनिन
फोटोग्राफर मेत्स को लेनिन का ये टूटी फूटी हालत में पड़ा वक्ष ब्रांडेनबुर्ग के फुर्स्टेनबेर्ग में घनी झाड़ियों के पीछे छुपा हुआ मिला. मेत्स का मानना है कि जब बर्लिन की दीवार गिरने के बाद सोवियत सेना यह इलाका छोड़ कर जा रही होगी तब इसे पीछे छोड़ गई होगी.
तस्वीर: Andreas Metz
साइकिल से खोज
"ओस्ट प्लेसेज" के अपने संग्रह के लिए मेत्स ने पूर्वी जर्मनी के इलाके में या तो सार्वजनिक परिवहन या फिर अपनी साइकिल से यात्राएं कीं. वे बताते हैं, "जब आप साइकिल से चलते हैं तो ज्यादा अच्छी तरह जगहों को देखते हैं. रफ्तार कम होती है लेकिन जब जहां चाहें रुक सकते हैं." तस्वीर में ब्रांडेनबुर्ग में स्थित राइन्सबेर्ग परमाणु संयंत्र का प्रवेश द्वार दिख रहा है, जो 1990 से बंद पड़ा है.
तस्वीर: Andreas Metz
बॉर्डर और स्टाजी कैंप से परे
फोटोग्राफर का मकसद जीडीआर में जीवन के सभी पहलुओं को समेटना था. मेत्स का कहना है कि बॉर्डर, खुफिया पुलिस स्टाजी और जेल जैसे निगेटिव पहलू तो खूब दिखाए गए हैं लेकिन रोजमर्रा का जीवन बहुत कम. मेत्स को लाइपजिष शहर के एक पार्क में हाथी की आकृति वाला एक बच्चों का झूला दिखा.
तस्वीर: Andreas Metz
परमाणु शक्ति का प्रोपेगैंडा
आज थुरिंजिया के एक दूर दराज के इलाके में रखा यह विशाल म्यूरल कहलाता है 'परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण प्रयोग.' पहले इसे खनन संयंत्र के पास लगाया गया था जहां से निकाले जाने वाले यूरेनियम से सोवियत सेना के लिए परमाणु बम बनते थे. यूरेनियम के उत्पादन में जीडीआर उस समय विश्व में चौथे नंबर पर था. कई लाख टन यूरेनियम निकाला जाता था और हजारों खनिक इसका नुकसान झेलते थे.
तस्वीर: Andreas Metz
काबेलवेर्क-कोएपेनिक
बर्लिन-कोएपेनिक में पहले केबल फैक्ट्री हुआ करती थी जिसमें 1,600 लोग काम किया करते थे. 1990 के दशक के मध्य में बंद हो गई ये फैक्ट्री आज कई तरह की ग्रैफिटी से अटी पड़ी है. जल्दी ही पास के इलाके में 1,000 से भी ज्यादा अपार्टमेंट बनाने की योजना है. इस प्रक्रिया में आसपास की कुछ ही इमारतें संरक्षित रह पाएंगी.
तस्वीर: Andreas Metz
सिनेमा कल्चर
बर्लिन में 1963 में खुले कीनो इंटरनेत्सयोनाल में जीडीआर के समय में फिल्मों का प्रीमियर होता था. सरकारी फिल्म निर्माता कंपनी डेफा की प्रायोजित तमाम फिल्में यहां दिखाई जाती थीं. हॉलीवुड की कई बड़ी फिल्में जैसे 'डर्टी डांसिंग' पहली बार यहीं दिखाई गईं. यहां का सिनेमा आज भी चालू है और फिल्में दिखाता है.
तस्वीर: Andreas Metz
महासचिव का समरहाउस
यह बागीचे में छिपा आम सा घर असल में पूर्व जीडीआर के पार्टी महासचिव एरिष होनेकर का घर हुआ करता था. वाल्डजीडलुंग वांडलित्स इलाके में स्थित यहां के घर बाकी आबादी से थोड़े अलग थलग थे. इस तरह रहने को उस समय के हिसाब से काफी लक्जरी में रहना माना जाता था.
तस्वीर: Andreas Metz
दीवार पर कला
मेत्स ने जो डीडीआर की अनदेखी तस्वीरें दुनिया के सामने लाने की कोशिश कीं वे अब तक तो उतनी प्रसिद्ध नहीं हो पाई हैं. लेकिन ब्रांडेनबुर्ग के क्लाइनमाखनाऊ से गुजरने वाली बर्लिन की मशहूर दीवार पर लगाई गई इन तस्वीरों की फोटो काफी प्रसिद्ध हुई. (मारा बियरबाख/आरपी)