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290311 Islamkonferenz Berlin

३० मार्च २०११

मुस्लिम आप्रवासियों के समाज में घुलने मिलने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए 2006 में जर्मन इस्लामी कांफ्रेंस की नींव डाली गई. मंगलवार को गृह मंत्री हांस पीटर फ्रीडरिष ने इस साल की कांफ्रेंस का आयोजन किया.

बैठक में हांस पीटर फ्रीडरिषतस्वीर: dapd

जर्मनी में 40 लाख से अधिक मुस्लिम आप्रवासी रहते हैं, जिनमें से अधिकतर तुर्क मूल के हैं. उनके साथ समरसता पर लक्षित जर्मन इस्लामी कांफ्रेंस में संघीय व प्रादेशिक सरकारों, स्थानीय निकायों के साथ साथ मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं. इस बार के सम्मेलन से पहले ही माहौल कुछ बिगड़ा हुआ था.

हांस पीटर फ्रीडरिष कुछ ही हफ्ते पहले देश के गृह मंत्री बने हैं और पद संभालने के बाद एक वक्तव्य में उन्होंने कहा था कि यहां रहने वाले मुसलमान बेशक जर्मनी के हैं, लेकिन इस्लाम जर्मनी का हिस्सा है, इतिहास में ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता. मंगलवार के सम्मेलन में भी उन्होंने इस बात को दोहराया. उनका कहना था कि यह मानी हुई बात है कि इस देश में रहने वाले बहुतेरे मुसलमान इस समाज का हिस्सा हैं. लेकिन सदियों से जर्मन समाज में पनपी सांस्कृतिक परंपराओं का सवाल बिल्कुल अलग है.

फ्रीडरिष का कहना था, "यहां मेरा जवाब बिल्कुल स्पष्ट है. यह देश ईसाई धर्म के जरिए ईसाई पाश्चात्य परंपराओं से व तार्किकता की भावना से ओतप्रोत है और इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है." उनका कहना था कि इस्लामी कांफ्रेंस का मकसद व्यवहारिक सवालों से निपटना है कि कैसे संवाद और समरसता की प्रक्रिया को जमीन के स्तर पर आगे बढाया जाय.

तस्वीर: dapd

बर्लिन की जर्मन इस्लामी कांफ्रेंस में देश की शिक्षा मंत्री अनेटे शावान भी उपस्थित थीं. उन्होंने कहा कि समाज में बढ़ती धार्मिक बहुलता के मद्देनजरर इस्लामी धर्मशास्त्र की शिक्षा की संभावना तैयार करने का समय आ गया है. उन्होंने ध्यान दिलाया कि जर्मनी के चार विश्वविद्यालयों, यानी ट्युबिंगेन और दो नगरों के विश्वविद्यालयों म्युंस्टर/ओसनाब्रुएक, एरलांगेन/न्युरेमबर्ग व फ्रैंकफर्ट/गीसेन में इस्लामी धर्मशास्त्र के अध्ययन की व्यवस्था की गई है.

चार घंटे तक चलने वाले सम्मेलन के बाद गृह मंत्री हांस पीटर फ्रीडरिष ने कहा कि यह काफी उत्साहनजनक रहा. लेकिन कई मुस्लिम संगठनों की राय में बहस काफी विवादास्पद रही. खासकर गृह मंत्री ने इस्लामी संगठनों के साथ "सुरक्षा की साझेदारी" का प्रस्ताव दिया है, जिस पर मुस्लिम संगठनों को काफी चिंता है. उनकी राय में यह समरसता को प्रोत्साहित नहीं करेगा, बल्कि मुखबिरी की संस्कृति को जन्म देगा.

मुस्लिम संगठनों के कई प्रतिनिधियों ने अपील की है कि अब तक की उपलब्धियों के आधार पर समाज में आप्रवासियों के घुलने मिलने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाय.

रिपोर्ट: सबीने रिप्पर्गर/उभ

संपादन: ए कुमार कुमार

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