उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मंजिल सैनी ने बताया है कि समाजवादी पार्टी के नेता प्रजापति को शहर के ही आशियाना इलाके से गिरफ्तार किया गया. सबसे पहले प्रजापति को पॉक्सो यानी बाल यौन शोषण अपराध रोकथाम कोर्ट के सामने हाजिर किया गया. कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.
रेप में इस मामले में दर्ज एफआईआर में नामित 49 साल के प्रजापति के अलावा छह आरोपियों को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है. पुलिस को प्रजापति का पता उनके परिवारजनों से पूछताछ करने से मिला.
17 फरवरी को दर्ज की गयी एफआईआर में प्रजापति और छह अन्य लोगों पर एक महिला का कथित रूप से बलात्कार करने और उस महिला की नाबालिग बेटी से भी रेप का प्रयास करने का आरोप लगा है.
रेप की शिकायत देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर दर्ज की गयी थी. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस से आठ हफ्तों के भीतर इस मामले पर उनकी कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी थी. पुलिस ने प्रजापति के खिलाफ 'लुक आउट' नोटिस निकाला था और गैरजमानती वारंट भी. प्रजापति का पासपोर्ट भी जब्त कर लिया गया था. देश के सभी हवाईअड्डों को एलर्ट कर दिया गया था कि प्रजापति देश छोड़ने की कोशिश कर सकते हैं.
हाल ही में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में प्रजापति ने भी अपनी अमेठी सीट से फिर चुनाव लड़ा था, लेकिन सीट बीजेपी के खाते में चली गयी. प्रजापति की गिरफ्तारी पर भारतीय जनता पार्टी के नेता विजय पाठक ने कहा, "अब तक राज्य पुलिस का राजनीतिकरण हुआ था. जैसे ही वे राजनीतिक दबावों से मुक्त हुए हैं, काम कर पाए हैं और इसीलिए गिरफ्तारी हो सकी है."
प्रजापति को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 2016 में अपनी कैबिनेट से हटा दिया था. उस समय अखिलेश का अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव से विवाद चल रहा था. हालांकि बाद में प्रजापति की कैबिनेट में वापसी हो गई. इस कदम से अखिलेश यादव की पार्टी के अभियान को नुकसान पहुंचा था, जो राज्य में अच्छी कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर चुनावी मैदान में उतरे थे. बीजेपी ने प्रजापति को लेकर कई बार सपा की खिंचाई की और आरोप लगा कि अखिलेश अपराधियों को पकड़ने को लेकर गंभीर नहीं हैं. बीजेपी ने हालिया विधानसभा चुनावों में 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें हासिल कर जबरदस्त जीत दर्ज की.
आरपी/एके (पीटीआई)
बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ दें तो भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख पार्टियां वंशवाद के सहारे चल रही हैं. एक नजर ऐसी ही पार्टियों और विरासत में नेतागिरी पाने वाले नेताओं पर.
तस्वीर: Reuters/A.Daveपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी ने अपनी मां सोनिया गांधी से पार्टी की बागडोर संभाली. सोनिया ने 19 साल तक पार्टी का नेतृत्व किया. हालांकि बहुत से लोग राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हैं. पार्टी को लगातार वंशवाद के आरोपों को भी झेलना पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaमुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव बेटा होने के कारण पद पर आए. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पिता के तिकड़म के विपरीत स्वच्छ और भविष्योन्मुखी प्रशासन देने की कोशिश की है.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewariबिहार के मुख्यमंत्री माता-पिता की संतान तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं. नीतीश सरकार से अलग होने के बाद बिहार सरकार और बीजेपी पर खूब हमलावर रहते हैं. पिता लालू यादव भ्रष्टाचार के दोषी होने के कारण चुनाव लड़ नहीं सकते.
तस्वीर: UNI Photoजम्मू-कश्मीर की मौजूदा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री सैयद मुफ्ती की बेटी हैं और पिता द्वारा बनाए गए राजनीतिक साम्राज्य को संभालने और पुख्ता करने की कोशिश में हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Bhatउमर अब्दु्ल्लाह दादा शेख अब्दुल्लाह और पिता फारूक अब्दुल्लाह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. वे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं और पिछला चुनाव हारने के बाद वे प्रांत में विपक्ष के नेता हैं.
तस्वीर: Imago/Hindustan Timesसुप्रिया सूले प्रमुख मराठा नेता शरद पवार की बेटी हैं और सांसद हैं. पिछले चुनाव तक पिता स्वयं सक्रिय राजनीति में थे, इसलिए अभी तक सुप्रिया को राजनीतिक प्रशासनिक अनुभव पाने का मौका नहीं मिला है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendranद्रमुक नेता और तमिलनाडु के कई बार मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि ने अपने बेटे स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी चुना है. 63 साल के स्टालिन पार्टी की युवा इकाई के प्रमुख हैं और युवा नेता माने जाते हैं.
तस्वीर: UNIअनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं. उनके पिता प्रेम कुमार धूमल भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के प्रमुख भी रह चुके हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussainअशोक चव्हाण महाराष्ट्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और वह राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनके पिता शंकर राव चव्हाण ने भी दो बार बतौर मुख्यमंत्री राज्य की बागडोर संभाली थी.
तस्वीर: APप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे हैं और सांसद हैं. बिहार में रामविलास पासवान की दलित राजनीति को चमकाना और उसे आधुनिक चेहरा देना उनकी जिम्मेदारी है.
तस्वीर: UNIवे देश के उपप्रधानमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे देवी लाल की खानदानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके दादा ओमप्रकाश चौटाला भी मुख्यमंत्री थे, लेकिन अब भ्रष्टाचार के लिए जेल काट रहे हैं.
तस्वीर: Imago/Zuma Pressपिता प्रकाश सिंह बादल ने खानदानी राजनीति की नींव रखी. पिता बादल की सरकार में उनके बेटे सुखबीर पंजाब के उपमुख्यमंत्री रहे. बादल की राजनीतिक पूंजी को बचाना का भार उन पर है.
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