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बलूच अपहरणों की जांच करता यूएन

१७ सितम्बर २०१२

पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान में कई दशकों से मानवाधिकार हनन के किस्से सामने आ रहे हैं. अपहरण, यातना और कत्ल के मामलों से परेशान स्थानीय लोग अब वहां पहुंची संयुक्त राष्ट्र की टीम से कुछ न्याय की उम्मीद कर रहे हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मानवाधिकार गुटों को उम्मीद थी कि पश्चिमी देशों की सरकारें बलूचिस्तान में मामले को दुनिया के सामने रखेंगीं. लेकिन निराशा के सिवाय उनके हाथ कुछ भी नहीं आया. अब संयुक्त राष्ट्र की एक टीम वहां पहुंची है और इस आरोप की तहकीकात कर रही है कि बलूचिस्तान में तैनात सुरक्षा बल वहां लोगों को गायब कर रहे हैं ताकि आजाद बलूचिस्तान आंदोलन को दबाया जा सके. संयुक्त राष्ट्र की टीम का गठन जीनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने किया था. इसकी अगुवाई फ्रांस के एक कानून के प्रोफेसर कर रहे हैं. टीम का काम है गायब लोगों के बारे में जानकारी हासिल करना और इन लोगों के रिश्तेदारों और सरकार के बीच संपर्क स्थापित करना.

पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर में बलूचिस्तान अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए एक अहम केंद्र है. शायद इसी वजह से बलोच आजादी आंदोलन को अनदेखा कर दिया गया है. वहां तैनात पाकिस्तानी सेना ने भी इन आरोपों को खारिज किया है कि वह लोगों पर अत्याचार कर रही है. सेना कहती है कि अफगान-ईरान सरहद पर सक्रिय आतंकवादी गुट अपहरणों और मानवाधिकर हनन के लिए जिम्मेदार हैं.

दूसरी ओर मानवाधिकार संगठनों ने अगवा किए गए व्यक्तियों के परिवारों से सबूत जमा किए हैं जिससे सुरक्षा तंत्र को लेकर कई सवाल पैदा होते हैं. इलाके में अब संयुक्त राष्ट्र की टीम के आने से लोगों की उम्मीदें जागी हैं. छात्र कार्यकर्ता रहे आसिफ बलूच कहते हैं, "अगर संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान में अपनी टीम भेजने का कष्ट लिया है तो इसका मतलब साफ है और दुनिया जानती है कि यहां क्या हो रहा है."

टीम के क्वेटा पहुंचने के साथ साथ और लोगों के गायब होने की खबरें मिल रही हैं. पिछले बुधवार को दक्षिण बलूचिस्तान में रह रहे लोगों ने कहा कि सुरक्षा कर्मी उनके इलाके में रह रहे दो व्यक्तियों को लेकर चले गए थे. हालात पर निगरानी रख रहे संगठन बलूच नैशनल वॉयस का कहना है कि शुक्रवार को एक सैन्य चौकी पर 14 लोगों को हिरासत में लिया गया. उसके बाद इनमें से छह व्यक्तियों के शव मिले और इनपर गोलियों के निशान थे. मारे गए लोगों की आंखों पर पट्टी थी और उनके हाथ पीठ पर बांध दिए गए थे.

मारे गए व्यक्तियों के परिवारों का कहना है कि खुफिया एजेंसियों ने पाकिस्तान के कई जगहों से लोगों को अगवा किया है लेकिन बलूचिस्तान में यह मामला काफी गंभीर है. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक 2011 के शुरुआती महीनों से लेकर अब तक 300 शव सड़क के किनारे मिले हैं. इनमें से कई शवों में जलती सिगरेट से बनाए गए निशान हैं, इनकी हड्डियां टूटी हुईं हैं या फिर यातना के और निशान हैं.

इस मामले को लेकर पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया काफी फीकी रही है. लेकिन इस्लामाबाद में संयुक्त राष्ट्र के मिशन को लेकर थोड़ी चिंता पैदा हो गई है, खास तौर से राजनीति और सेना के उच्च स्तर के अधिकारियों के बीच जो बलूचिस्तान को लेकर किसी भी हस्तक्षेप को शक की निगाहों से देखते हैं. संयुक्त राष्ट्र ने भी अब तक चुप्पी बनाए रखी है. गुरुवार को पाकिस्तान से लौटने से पहले टीम प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी जानकारी सार्वजनिक करेगी.

एमजी/एएम (रॉयटर्स)

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