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बल्ब नहीं, दीवार जलाइए

१९ अक्टूबर २०१२

रोशनी की परिभाषा बदलने वाली है. ऐसा वक्त आने वाला है, जब लाइट जलाई नहीं जाएगी, बल्कि बिछाई जाएगी. रोशनी की दीवार, रोशनी की छत. अखबार मोड़ लें तो कंप्यूटर बन जाए. जर्मनी में इस पर 10 साल से रिसर्च चल रही है.

तस्वीर: Getty Images

यह कारनामा ओएलईडी यानी ऑर्गेनिक लाइट एमिशन डायोड से होने वाला है. जर्मन शहर ड्रेसडेन के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट में इस पर रिसर्च चल रही है. फोटोनिक माइक्रोसिस्टम के प्रोफेसर कार्ल लियो की टीम दस साल से ऑर्गेनिक लाइट डायोड पर काम कर रही है. मुश्किल इसे तैयार करने में प्रयोग होने वाले पावडर को लेकर है. इसका पावडर सोने से भी महंगा है.

प्रोफेसर लियो इसकी महत्ता बताते हैं, "ये ऑर्गेनिक हाइड्रोकार्बन है, जिसे हम ग्लास की सतह पर लगाते हैं. हमारे पास इनका रंगीन पावडर है, जिन्हें भाप बना कर लगाया जाता है. ये बहुत पतली सतह होती है, नैनोमीटर में. हमारे बालों से भी एक हजार गुना बारीक."

डीडब्ल्यू हिन्दी के खास विज्ञान शो मंथन के ताजा अंक में ओएलईडी पर चल रही रिसर्च और इसके नतीजों के बारे में विस्तार से बताया गया है. भारत में यह शो डीडी नेशनल पर शनिवार सुबह साढ़े 10 बजे देखा जा सकता है.

तस्वीर: DW

क्या है ओएलईडी

ओएलईडी भले ही घरों में नहीं लग रही हो लेकिन जर्मनी में इसका कमर्शियल इस्तेमाल होने लगा है. कुछ कंपनियां खास ओएलईडी लैंप बाजार में ला चुकी हैं. फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के अलावा दुनिया भर में मशहूर आखेन टेक्नीकल यूनिवर्सिटी में 2004 से भारी भरकम प्रोजेक्ट चल रहा है, जिसका खर्च यूरोपीय संघ उठा रहा है. रिसर्च में जर्मनी के साथ फ्रांस, ब्रिटेन, नीदरलैंड्स, ऑस्ट्रिया और बेल्जियम जैसे यूरोपीय देश हैं. वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि ओएलईडी की उम्र लंबी की जाए. अब तक यह सिर्फ 14,000 घंटे चल पाता है, जो आम घरों में इस्तेमाल होने वाले एलसीडी के मुकाबले बहुत कम है.

दूसरी मुश्किल डिजाइन को लेकर है. इसके पैनल मोड़ना बहुत मुश्किल है. अगर मुड़ जाए, तो मुड़ाव में धूल फंस जाते हैं. वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि इससे निजात मिल पाए. एक अलग तरह की समस्या इसका महंगा होना है. पूरी छत पर अगर ओएलईडी लगानी हो तो खर्च कोई 60 लाख रुपये तक होगा.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

बदल जाएगी परिभाषा

लाइट डिजाइनर आक्सेल श्मिट का कहना है कि इसके प्रसार के साथ रोशनी की परिभाषा बदल जाएगी, "यहां पारदर्शिता का महत्व है. लैंप ऐसी कोई चीज नहीं होगी, जिसे आप जलाते और बुझाते हैं. लैंप यानी रोशनी आने वाले समय में आर्किटेक्ट का हिस्सा होगी. वह दिखने और काम करने में लैंप से अलग होगी."

सपना साकार हुआ, तो आने वाले दिनों में लाइट की बजाए दीवारें जलाई जाएंगी. इन दीवारों में ओएलईडी लगा होगा. सिर्फ इतना ही नहीं अखबार भी इलेक्ट्रॉनिक होगा. चाहें तो इसे फौरन कंप्यूटर स्क्रीन में बदल लें और मनचाही खबर की तह तक पहुंच जाएं.

भारत में ओएलईडी पर बड़ा रिसर्च चल रहा है. साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च काउंसिल ने दो साल पहले एक करोड़ डॉलर खर्च कर इस रिसर्च प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. भारत की सबसे बड़ी डिस्प्ले बनाने वाली कंपनी सैमटेल आईआईटी कानपुर के साथ ओएलईडी पर रिसर्च कर रही है. ये फिलहाल बहुत मंहगी तकनीक है. इसके सस्ते औद्योगिक उत्पादन की जरूरत है. लेकिन टीवी, कंप्यूटर या स्मार्टफोन स्क्रीन अब ओएलईडी के बनने लगे हैं.

आईबी/एमजे

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