जर्मनी के ड्यूसलडॉर्फ शहर में बस स्टॉप पर एक 85 वर्षीय व्यक्ति को आराम करना महंगा पड़ गया. प्रशासन ने बस स्टॉप पर आराम करने को गलत माना और जुर्माना लगा दिया. मामला जब सोशल मीडिया में उछला तो प्रशासन ने जांच की बात कही.
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अब तक आपने ट्रेन या बस को बेवजह रुकवाने के चलते जुर्माना भरा होगा. लेकिन जर्मनी के शहर ड्यूसलडॉर्फ में बस स्टॉप पर आराम करने के चलते जुर्माने का मामला सामने आया है. सोशल मीडिया में वायरल हो रही इस खबर के मुताबिक ड्यूसलडॉर्फ प्रशासन ने 85 वर्षीय डेमेंशिया पीड़ित व्यक्ति पर 35 यूरो का जुर्माना लगाया क्योंकि वह बस स्टॉप की बेंच पर आराम कर रहे थे. इस व्यक्ति के दोस्त ने सबसे पहले सोशल मीडिया पर ड्यूसलडॉर्फ प्रशासन का पत्र जारी किया था. एक जर्मन अखबार से बातचीत में दोस्त ने बताया, "जिस व्यक्ति पर जुर्माना लगाया गया है वह रोजाना अपने कुत्ते को घुमाने वहां जाता था और कई बार बस स्टॉप पर आराम करता था. लेकिन इस बार आठ मिनट से ज्यादा बैठने के बाद जुर्माना लगाया लगा दिया गया."
ड्यूसलडॉर्फ प्रशासन ने अपने पत्र में कहा है कि व्यक्ति बस पकड़ने के लिए नहीं बल्कि आराम करने के लिए बैठा था और बस स्टॉप आराम करने की जगह नहीं है.
हालांकि इस पत्र की सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना हो रही है. लेकिन अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि यह पत्र असली है या नकली. सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया देखते हुए ड्यूसलडॉर्फ शहर के आधिकारिक टि्वटर एकाउंट से दिये गये जवाब में कहा गया है कि वह इस पूरे मामले की जांच करेंगे और अगर इसमें गलती पायी गयी तो वह जुर्माना वापस ले लेंगे.
शहर प्रशासन के प्रवक्ता ने एक स्थानीय अखबार से बातचीत में कहा, "हो सकता है कि बेंच पर आराम करने के कारण उस व्यक्ति पर जुर्माना लगाया गया हो." उन्होंने कहा, "अगर कोई व्यक्ति बेघर हो या शराब पीए हुए हो तो समझा जा सकता है लेकिन अगर व्यक्ति को सिर्फ आराम ही करना था, तब तो जुर्माना ठीक ही है." उन्होंने कहा, "हर सूरत में बेंच उन लोगों के लिए उपलब्ध होनी चाहिये जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं.
उत्तर कोरिया में ऐसे होते हैं बस स्टॉप
उत्तर कोरियाई राजधानी प्योंगयांग के बस स्टॉप पर कोई विज्ञापन नहीं. तनाव के बावजूद आम लोगों को खूबसूरत प्राकृतिक नजारों से रुबरु कराया जा रहा है. अलग-थलग रहने वाले उत्तर कोरिया में कुछ ऐसे नजर आते हैं बस स्टॉप.. एक झलक.
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बिना स्लोगन का पोस्टर
बस स्टॉप पर बिना किसी स्लोगन के लगे पोस्टरों में पहाड़, तट और हरे-भरे नजारे दिखते हैं. शहर के चौक और यहां बने बांध भी इसकी खूबसूरती की कहानी कहते हैं. अन्य उत्तर कोरियाई शहरों में प्रचार और प्रॉपेगेंडा के उद्देश्य से कई पोस्टर लगाये गये हैं लेकिन प्योंगयाग के ये पोस्टर बिल्कुल अलग हैं.
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अनोखा सौंदर्य
राजधानी प्योंगयाग में हर किसी के पास सफर करने की कोई न कोई वजह नजर आती है. या तो लोग काम पर जाते हैं या कुछ लोग किसी सामूहिक गतिविधि में भाग लेने जा रहे होते हैं. लेकिन बस स्टॉप पर इन आने-जाने वालों को इंतजार के कुछ पलों में चैन जरूर मिल जाता है.
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सीमित सार्वजनिक परिवहन
लोगों के पास यहां पैदल चलने या सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर भरोसा करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है. दो दर्जन टैक्सी के अलावा, शहर में लगभग दो हजार कारें हैं जो देश के बड़े अधिकारियों और सरकारी संस्थानों के लिये सुरक्षित हैं.
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मुफ्त ही है सफर
यहां की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में बसों का इस्तेमाल सबसे अधिक होता है. निजी गाड़ियां अधिक न होने के चलते यहां के तकरीबन 30 लाख लोग बसों का इस्तेमाल करते हैं. यहां के बस टिकट की कीमत 3 यूरो सेंट के लगभग होती है. इतनी कम कीमत पर इसे मुफ्त ही माना जा सकता है.
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योजना बनाने का समय
एक यात्री ने बताया कि वह बस के सफर में बीतने वाले अपने समय का इस्तेमाल पूरे दिन की योजना बनाने के लिये करती है. यह यात्री उत्तर कोरिया की मौजूदा व्यवस्था के लिये देश के संस्थापक किम इल सुंग के साथ-साथ उनके वंश और उत्तराधिकारियों को श्रेय देती है.
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महान नेताओं की छवि
इसी यात्री ने अपना अनुभव साझा करते हुये हमसे कहा कि, "जब भी आप काम पर जाने के लिये निकलते हैं या कोई काम करते हैं तब हमें हमारे महान नेताओं का प्रेम महसूस होता है."
रिपोर्ट- नदीन बेर्गहाउसन