बहरीन, यमन, लीबिया में उग्र हुए प्रदर्शन, कई मौतें
१७ फ़रवरी २०११
मनामा के पर्ल चौक पर पुलिस ने गुरुवार तड़के तीन बजे प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस और रबड़ की गोलियां चलाईं. पुलिस के साथ झड़पों में चार प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की खबर है. 95 लोग घायल भी हुए हैं. चश्मदीदों का कहना है कि पुलिस ने बिना चेतावनी भीड़ पर गोलियां चलाईं जिससे भगदड़ मच गई. बहरीन में सरकार विरोधी प्रदर्शनों में अब तक कुल छह लोग मारे गए हैं. झड़पों के बाद पूरे शहर में पुलिस को तैनात कर दिया गया है. सड़कों पर चेकपोस्ट लगाए गए हैं.
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता जनरल तारिक एल हसन ने कहा कि लोगों से बातचीत के सारे विकल्प खत्म होने के बाद ही पुलिस ने पर्ल चौक से प्रदर्शनकारियों को बाहर निकालने की कोशिश की. अल हसन ने कहा कि कुछ लोग अपने आप इलाका छोड़ कर चले गए और कुछ लोगों को जबरदस्ती वहां से निकालना पड़ा.
देश में विपक्ष के मुख्य शिया नेता ने पुलिस कार्रवाई के बारे में कहा कि यह "एक जगह शांतिपूर्वक जमा हुए लोगों पर बेबुनियाद और जाहिल हमला था." बुधवार को हजारों लोगों ने देश में 'असली संवैधानिक शासन' की मांग की. बहरीन में सरकार के रवैये की अमेरिका ने आलोचना की है. बहरीन अमेरिकी नौसेना के फिफ्त फ्लीट का मुख्यालय है जो ईरान से खतरों को टालने के अलावा खाड़ी में तेल के रास्तों को सुरक्षित करता है.
लिबिया में आक्रोश दिवस
लीबिया में भी विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाने के लिए पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईँ जिनमें चार लोग मारे गए. देश में इंटरनेट पर पाबंदी का विरोध कर रहे लोगों ने आक्रोश दिवस का एलान किया है. लंदन से चलाई जा रही एक वेबसाइट के मुताबिक लीबिया के नेता मुआम्मर गद्दाफी के शासन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर सुरक्षा बलों ने गोलियां चलाईं.
हिंसा में कम से कम चार लोग मारे गए हैं और कई लोग घायल हैं. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स सॉलिडैरिटी के मुताबिक प्रदर्शनों में 13 लोग मारे गए हैं. यूरोपीय संघ और अमेरिका ने लीबिया के अधिकारियों से हिंसा से बचने की अपील की है और अभिव्यक्ति की संवतंत्रता की मांग की है.
यमन में सरकार पर दबाव
अरब जगत के एक और देश यमन में भी विरोध प्रदर्शन आम बात हो गए हैं. प्रदर्शनों के सातवें दिन बुधवार को अधिकारियों ने लोगों पर लाठियां बरसाईं. प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं जो तीस साल से भी ज्यादा समय से सत्ता में बने हुए हैं.
वैसे विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका के करीबी दोस्त सालेह को पद से हटाना मिस्र में मुबारक को पद से हटाने से कहीं ज्यादा मुश्किल साबित हो सकता है. लेकिन लगातार प्रदर्शनों से सरकार अपनी नीतियों में सुधार ला सकती है.
रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी
संपादनः ए कुमार