अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम मैगजीन ने दुनिया भर के कई पत्रकारों को इस साल का 'पर्सन ऑफ द ईयर' चुना है. उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया है.
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साल 2018 में दुनिया के कई देशों से पत्रकारों की अप्रतिम वीरता और दृढ़निश्चय से अपना कर्तव्य निभाने के कई उदाहरण सामने आते रहे. इसमें सऊदी अरब के दिवंगत पत्रकार जमाल खशोगी के अलावा म्यांमार सरकार द्वारा जेल में बंद किए गए समाचार एजेंसी रॉयटर्स के पत्रकार भी शामिल हैं. टाइम पत्रिका ने इस सबको अपनी कवर स्टोरी बनाकर "द गार्जियन्स एंड द वॉर ऑन ट्रुथ" शीर्षक के साथ प्रकाशित किया है.
पर्सन ऑफ द ईयर का सम्मान इस बार चार पत्रकारों और एक अखबार को संयुक्त रूप से दिया गया है. इन्हें पत्रिका ने "दुनिया भर में लड़ी जा रही असंख्य जंगों का प्रतिनिधि" बताया है.
रॉयटर्स के दो पत्रकारों 32 साल के वा लोन और 28 साल के क्यो सू ओउ पर औपनिवेशिक काल के एक कानून ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट की धारा लगाकर म्यांमार सरकार ने करीब एक साल से जेल में बंद रखा हुआ है. इस मामले से पता चलता है कि म्यांमार में सही मायने में कितनी लोकतांत्रिक आजादी है. यह पत्रकार वहां से भगाए जा रहे रोहिंग्या मुसलमानों की रिपोर्टिंग कर रहे थे, जिससे सरकार नाराज थी.
वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार सऊदी अरब के जमाल खशोगी 2 अक्टूबर को कुछ कागजात लेने के लिए इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास गए थे और उसके बाद लापता हो गए. घटना के कुछ दिन बाद तुर्क अधिकारियों ने कहा कि उन्हें मारने के इरादे से तुर्की भेजे गए 15 सऊदी एजेंटों ने 'पूर्व नियोजित' साजिश के तहत उनकी हत्या कर दी. खगोशी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के आलोचक माने जाते थे.
इनके अलावा मैरीलैंड के एनापोलिस के अखबार 'कैपिटल गेजेट' भी चुना गया, जिसके दफ्तर पर हुए हमले में पांच लोग मारे गए थे. फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेसा को भी गार्जियन ऑफ ट्रूथ माना गया, जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.
आरपी/एमजे (रॉयटर्स, एपी)
जब मीडिया दफ्तरों को बनाया गया निशाना
दुनिया भर में बहुत से पत्रकारों को रिपोर्टिंग के दौरान हिंसा और हमलों का शिकार बनाया जाता है. लेकिन कई बार अखबारों और पत्रिकाओं के दफ्तरों पर सुनियोजित हमले हुए हैं. एक नजर ऐसे ही हमलों पर.
तस्वीर: dapd
निशाने पर मीडिया
अमेरिकी शहर अनापोलिस में 28 जून 2018 को एक अखबार गजेट के दफ्तर में आकर एक बंदूकधारी ने गोलियां चला दी जिसमें कम से पांच लोग मारे गए. इससे पहले वर्जीनिया में 2015 में 24 साल की एक पत्रकार एलिसन पार्कर और उनके कैमरामैन की एडम वार्ड की लाइव प्रसारण के दौरान हत्या कर दी गई थी. उस समय वे एक स्थानीय टीवी चैनल पर लाइव थे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Loeb
शमशाद टीवी हमला
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में शमशाद टीवी के दफ्तर में हमलावर पुलिस के वर्दी में दाखिल हुए और तीन घंटे तक हिंसा की. इसमें कम से कम एक व्यक्ति की जान गई और दो दर्जन से ज्यादा घायल हो गए. इस्लामिक स्टेट ने इसकी जिम्मेदारी ली. अप्रैल 2018 में हुए एक अन्य आत्मघाती हमले के पीछे भी आईएस ने अपना हाथ बताया जिसमें नौ पत्रकार मारे गए और 16 अन्य घायल हुए थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP/dpa/R. Gul
जे सुई शार्ली
फ्रांस की राजधानी पेरिस में जिहादियों ने जनवरी 2015 में व्यंग पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हमला किया, जिसमें 12 लोग मारे गए थे. अल कायदा से जुड़े दो भाइयों ने पत्रिका के दफ्तर में घुस कर गोलीबारी की. पैगंबर मोहम्मद के विवादित कार्टून छापने के लिए इस पत्रिका को निशाना बनाया गया था. इस हमले की दुनिया भर में कड़ी निंदा हुई और इसे प्रेस की आजादी पर हमला करार दिया गया.
तस्वीर: DW
नाइजीरिया में हमले
नाइजीरिया में राजधानी अबुजा और उत्तरी शहर कदुना में अप्रैल 2012 में तीन अखबारों के दफ्तरों पर हमले हुए. नाइजीरिया में अखबार के दफ्तरों पर ये इस तरह के पहले हमले थे. अबुजा में दिस डे अखबार पर हुए आत्मघाती हमले में चार लोग मारे गए थे. वहीं कदुना में मोमेंट और सन नाम के अखबारों को निशाना बनाया गया. कदुना के हमलों में भी चार लोगों की मौत हुई. संदिग्ध हमलावरों को उसी साल उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बुद्धिजीवी और पत्रकारों पर हमले
अल्जीरिया की राजधानी अल्जीयर्स में फरवरी 1996 को मैसन दे ला प्रेसे इमारत में हुए एक कार बम विस्फोट में 21 लोग मारे गए थे जिनमें 'सोआ दे अल्जीरी' नाम के एक फ्रेंच अखबार के तीन पत्रकार भी थे. इस इमारत में कई अखबारों के दफ्तर थे. अधिकारियों ने इन हमलों के लिए एक जिहादी गुट को जिम्मेदार बताया. आर्म्ड इस्लामिक फ्रंट फॉर द जिहाद नाम के इस गुट ने कई और बुद्धिजीवियों और जाने माने लोगों को निशाना बनाया.