पहले सुरक्षा किट की कमी और फिर बहिष्कार से जूझते डॉक्टरों के सामने एक नया संकट सिर उठा रहा है. कुछ जगहों से कोविड-19 से लड़ने वाले डॉक्टरों पर हमले और उनके साथ मारपीट की खबरें आ रही हैं.
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भारत में कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण के बीच संकट की घड़ी में जिन लोगों का काम सबसे बाधारहित चलना चाहिए उनकी समस्याओं का अंत ही नहीं हो रहा है. लगभग पूरे देश में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सुरक्षा किट की कमी है. जगह जगह बिना सुरक्षा किट के मरीजों को देखते रहने की वजह से खुद डॉक्टरों के कोविड-19 की चपेट में आने की खबरें आ रही हैं.
डॉक्टर अभी इस कमी से जूझ ही रहे थे कि देश भर में किराये के मकानों में रहने वाले डॉक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों के साथ एक तरह के बहिष्कार की खबरें आने लगीं. उन्हें वायरस का संवाहक होने के डर से किराये के घरों से निकाला जाने लगा. सुरक्षा किट की कमी तो अभी भी चल ही रही है और इसी बीच डॉक्टरों के लिए एक नए संकट ने सिर उठा लिया.
कुछ जगहों से डॉक्टरों पर हमले और उनके साथ मारपीट की खबरें आ रही हैं. सोशल मीडिया पर इंदौर का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें डॉक्टर भागते हुए एक बस्ती से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं और उनके पीछे लोग पथराव कर रहे हैं.
यह प्रकरण तब हुआ जब इंदौर के टाट पट्टी भाखल इलाके से संक्रमण के दो मामले निकलने के बाद स्वास्थ्यकर्मी और नगरपालिका के कर्मचारी वहां रहने वालों की जांच करने गए हुए थे. बताया जा रहा है स्थानीय लोगों ने जांच की अनुमति नहीं दी और जोर देने पर स्वास्थ्यकर्मियों पर ही हमला कर दिया. पुलिस ने किसी तरह से उन लोगों को वहां से बचा कर निकाल लिया. बाद में पुलिस की कार्रवाई में चार लोगों को हिरासत में लिया गया.
दूसरा प्रकरण हैदराबाद का है, जहां शहर के गांधी अस्पताल में एक 49 साल के कोविड-19 के मरीज की मौत हो गई थी. उसकी मौत के बाद उसके परिवार वालों ने डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगा कर उनके साथ मार पीट की. पुलिस से की गई शिकायत में अस्पताल के डॉक्टरों ने दावा किया कि ऐसे हमले अक्सर हो रहे हैं. डॉक्टरों ने मुख्यमंत्री से उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करने के लिए पत्र लिखा है.
और बढ़ सकते हैं ऐसे मामले
डॉक्टरों पर हमले भारत में एक बड़ी समस्या है. लगभग एक साल पहले पूरे देश में इस तरह के हमलों के मामले काफी बढ़ गए थे जिसके बाद पूरे देश में डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी थी और आंदोलन भी किया था. डॉक्टरों ने सरकार से उनकी सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम करने की मांग की थी. सरकार के आश्वासन के बाद ही उन्होंने अपना आंदोलन खत्म किया था. लेकिन ऐसा लगता है की आज भी स्थिति ज्यों की त्यों ही है.
लेकिन अभी जो हालात हैं वो असाधारण हैं और डॉक्टरों के लिए और ज्यादा कठिन. डॉक्टरों और दूसरे सरकारी कर्मचारियों पर हमले और बढ़ने का अंदेशा है. सरकारी संस्थाएं अब सर्विलांस की मदद से बड़ी संख्या में उन लोगों का पता लगा रही हैं जो कोरोना वायरस से संभावित रूप से संक्रमित हो सकते हैं लेकिन या तो उन्होंने अपने बारे में सरकार को जानकारी नहीं दी है या खुद को अलग थलग करने के आदेश का पालन नहीं किया है.
जहां जहां ऐसे लोग चिन्हित हुए हैं वहां उनकी जांच के लिए पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों की टीमें जा रही हैं. ऐसे में उन लोगों और सरकारी टीमों के बीच तनाव होने की संभावना हमेशा रहेगी.
चीन से दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस पर इतनी चर्चा और गहन रिसर्च के बावजूद हम इस खतरनाक वायरस के बारे में कई अहम बातें नहीं जानते हैं. डालते हैं इन्हीं पर नजर:
तस्वीर: picture-alliance/Geisler/C. Hardt
किसके लिए घातक
सबसे बड़ा रहस्य यह है कि 80 फीसदी लोगों में इसके लक्षण या तो दिखते ही नहीं या बहुत कम दिखते हैं. दूसरे लोगों में यह घातक न्यूमोनिया की वजह बन उनकी जान ले लेता है. ब्रिटिश जर्नल लांसेट में छपी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक संक्रमण से सबसे ज्यादा पीड़ित लोगों के नाक और गले में वायरस का जमाव कम पीड़ित लोगों की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा होता है.
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और रिसर्च की जरूरत
तो क्या यह माना जाए कि बढ़ती उम्र की वजह से ज्यादा पीड़ित लोगों का प्रतिरोधी तंत्र मजबूती से काम नहीं कर रहा है या फिर वे वायरस के संपर्क में ज्यादा थे? यह सवाल अपनी जगह कायम है. अभी इस बारे में और रिसर्च करने की जरूरत है.
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हवा में वायरस
माना जाता है कि कोरोना वायरस शारीरिक संपर्क और संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से निकलने वाली छोटी छोटी बूंदों से फैलता है. तो फिर यह वायरस मौसमी फ्लू फैलाने वाले वायरस की तरह हवा में कैसे रह सकता है?
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वायरस की ताकत
अध्ययन बताते हैं कि नया कोरोना वायरस लैब मे तीन घंटे तक हवा में रह सकता है. वैज्ञानिक यह नहीं जानते कि इतनी देर हवा में रहने के बाद भी क्या यह किसी को संक्रमित कर सकता है? पेरिस के सेंट अंटोनी अस्पताल की डॉक्टर कैरीन लाकोम्बे कहती हैं, "हम वायरस ढूंढ तो सकते हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते कि क्या वायरस तब संक्रमण में सक्षम है."
तस्वीर: Reuters/A. Gebert
असल मामले कितने
दुनिया में जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ देश ही सघन जांच कर रहे हैं. ऐसे में दुनिया भर में कोरोना के मामलों की असल संख्या क्या है, यह नहीं पता. ब्रिटिश सरकार ने 17 मार्च को अंदेशा जताया कि 55 हजार लोगों को वायरस लग सकता है जबकि तब तक महज 2000 लोग ही टेस्ट में संक्रमित पाए गए थे.
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नए तरीके की जरूरत
बीमारी से निपटने और इसे रोकने के लिए कुल मरीजों की असल संख्या जानना बहुत जरूरी है ताकि उन्हें अलग रखा जा सके और उनका इलाज हो सके. यह तभी संभव होगा जब ब्लड टेस्ट के नए तरीके विकसित किए जा सकें.
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गर्मी से भागेगा कोरोना?
क्या उत्तरी गोलार्ध में वसंत के गर्म दिनों या गर्मी के आने बाद कोविड-19 बीमारी रुक जाएगी? विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा संभव है, लेकिन पक्के तौर पर ऐसा कहना मुश्किल है. फ्लू जैसे सांस संबंधी वायरस ठंडे और सूखे मौसम में ज्यादा टिकते हैं इसीलिए वे सर्दियों में तेजी से फैलते हैं.
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चेतावनी
अमेरिका के मेडिकल हावर्ड स्कूल ने चेतावनी दी है कि मौसम में बदलाव होने से जरूरी नहीं है कि कोविड-19 के मामले रुक जाएं. विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम से भरोसे रहने की बजाय बीमारी की रोकथाम के सभी प्रयासों को लगातार और तेजी से किए जाने की जरूरत है.
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कोरोना एक पहेली
वयस्कों के मुकाबले बच्चों को कोविड-19 होने का खतरा कम है. जो संक्रमित भी हुए वे ज्यादा बीमार नहीं हुए. बीमार लोगों के साथ रहने वाले बच्चों में भी इस वायरस से लगने की संभावना दो से तीन गुनी कम थी. प्रोफेसर लाकोम्बे कहती हैं, "कोरोना के बारे में बहुत सारी बातें हैं जो हम अब तक नहीं जानते हैं जो इस वायरस से निपटने में बाधा बन रही हैं." रिपोर्ट: एके/एनआर (एएएफपी)