गंदी नदियां सिर्फ गंगा की समस्या नहीं है, न ही सिर्फ भारत की. बांग्लादेश में सर्वोच्च अदालत ने नदियों पर कब्जे और उसे गंदा करने को अपराध घोषित कर दिया है. साथ ही सरकार से लोगों को जागरूक करने के कदम उठाने को कहा है.
तस्वीर: DW/Jacopo Pasotti
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बांग्लादेश हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सरकार से कहा है कि वह नदी संरक्षण आयोग कानून में संशोधन करे और नदियों पर कब्जे और प्रदूषण के लिए कैद और भारी जुर्माने की सजा तय करे. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अदालत ने ये फैसला पिछली फरवरी में ही सुना दिया था लेकिन अब उसका पूरा टेक्स्ट जारी किया गया है. इस फैसले में नदियों और जलाशयों को बचाने के लिए 17 निर्देश दिए गए हैं. बांग्लादेश नदियों और जलाशयों का देश है लेकिन पिछले सालों में उनकी संख्या लगातार घटती गई है.
हाई कोर्ट बेंच ने तूराग नदी पर मुकदमे की सुनवाई के बाद अपने सख्त फैसले में कहा है, "नदियों की हत्या हम सबकी सामूहिक आत्महत्या है. नदियों को मारना मौजूदा और भावी पीढ़ियों को मारना है." तूराग नदी के कब्जे और प्रदूषण का मामला इतना गंभीर हो गया था कि अदालत ने उसे व्यक्ति और जीवित हस्ती घोषित कर दिया है. वह यह दर्जा पाने वाली दुनिया की चौथी नदी है. इससे पहले न्यूजीलैंड में वांगानुई और भारत में गंगा और यमुना को यह दर्जा मिल चुका है.
बांग्लादेश में एक एनजीओ ने नदियों को भरने, कब्जा करने और अवैध निर्माण के खिलाफ मुकदमा किया था. पिछले साल ही अदालत ने अधिकारियों से यह भी पूछा था कि उनके द्वारा कब्जे और अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई न करने को अवैध क्यों न घोषित कर दिया जाए. स्थानीय रिपोर्टों के आधार पर अवैध निर्माण को हटाने के आदेश मुकदमे के दौरान ही दे दिए गए थे. बांग्लादेश की आजादी के समय नदियों का रास्ता 24,000 किलोमीटर था जो अब घटकर सिर्फ 6,000 किलोमीटर रह गया है. इसकी मुख्य वजह तटीय इलाकों का कब्जा और नदियों को निर्माण के लिए भरा जाना है.
बांग्लादेश की अदालत ने नदियों और जलाशयों पर कुछ अहम निर्णय लिए हैं. एक तो सार्वजनिक ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर राज्य को नदियों, पहाड़ों, जंगलों और सागर के अलावा सभी प्रकार के जलाशयों का ट्रस्टी बना दिया गया है. तूराग और देश की सभी नदियों को कानूनी तौर पर व्यक्ति का दर्जा दे दिया गया है और राष्ट्रीय नदी संरक्षण आयोग को कानूनी अभिभावक बनाया गया है. अब हर तरह की सरकारी संस्थाओं को नदियों के सिलसिले में कुछ भी तय करने या योजना बनाने से पहले राष्ट्रीय नदी संरक्षण आयोग की सहमति लेनी होगी.
डूबते द्वीप में तैरते खेतों का सहारा
डूबते द्वीप में तैरते खेतों का सहारा
जलवायु परिवर्तन के साये में जी रहे बांग्लादेशी किसान अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए खेती के प्राचीन तौर तरीकों की ओर लौट रहे हैं. देखिए बाढ़ में डूबे इलाकों में उभरी ये नई तस्वीरें.
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खतरे में ठिकाना
बंगाल की खाड़ी में जहां गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियां मिलती हैं, वहां एक बड़ा उपजाऊ डेल्टा क्षेत्र बनता है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्रस्तर ऊपर उठ रहा है, ज्यादा तूफान आने लगे हैं और इस इलाके के निवासियों का जीवन दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है.
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खेती छोड़ने को मजबूर
जब समुद्र का खारा पानी खेतों में घुस जाता है तो जमीन उपजाऊ नहीं रहती. इसी कारण यहां के किसान खेती छोड़ जीविका चलाने के किसी और तरीके की तलाश में हैं. कुछ छोटा मोटा काम करने शहरों का रुख करते हैं और वहां की फैक्ट्रियों में सस्ते श्रमिक बन जाते हैं. कुछ यूरोपीय बाजारों के लिए झींगा उगा रहे हैं, जिसके कारण तटीय डेल्टा क्षेत्र को और ज्यादा नुकसान पहुंचता है.
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पारंपरिक तकनीक की वापसी
कुछ किसान परिवार एक पारंपरिक शैली की खेती की ओर लौट रहे हैं. वे पानी पर तैरने वाले पौधों और तिनकों को बुनकर एक तैरने वाला प्लेटफॉर्म बनाते हैं. फिर पानी पर तैरती हुई इस सतह का इस्तेमाल फसलों को उगाने के लिए करते हैं. सैकड़ों सालों से अस्तित्व में रही यह शैली इस समय किसी नवीनतम तकनीक की तरह वापस लौटी है.
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पूरे परिवार का काम
महिलाओं समेत परिवार के सब सदस्य इन तैरते प्लेटफॉर्म को बनाने का काम करते हैं. पिरोजपुर नामकी जगह की यह महिला किसान दिखा रही है कि उसने तैरते खेतों में बोने के लिए कैसे नन्हें पौधे तैयार किए हैं.
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ऑर्गेनिक और दोबारा काम आने वाले
पत्तेदार सब्जियां, भिंडी, लौकी, बैंगन, कद्दू और प्याज जैसे पौधे इन तैरते खेतों में बहुत अच्छी तरह उगते हैं. पानी पर उगाने में कीटनाशकों का भी कम इस्तेमाल करना पड़ता है. ऐसे तैरते प्लेटफॉर्म करीब तीन महीने तक काम करते हैं फिर इन्हें खींच कर किनारे पर लाकर तोड़ा जाता है और उर्वरक की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
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कल के बेकार आज बने वरदान
पानी पर तैरने वाले प्लेटफॉर्म बनाने में जो पौधे सबसे ज्यादा काम आ रहे हैं, उनमें प्रमुख है जलकुम्भी. मूल रूप से अमेजन के जंगलों से आई जलकुम्भी बहुत तेजी से फैलती है और दुनिया में कई जगहों पर लोगों के लिए परेशानी बनी हुई है. लेकिन खारे पानी में भी टिकने वाला और सतह पर ही तैरने वाला यह पौधा यहां तो किसी वरदान से कम नहीं.
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जीवित बेड़े
1988 की बाढ़ में हरी पोदो और उनका परिवार जलकुम्भी से बने बेड़े पर दो महीने तक रहा था. वे बताते हैं, "एक तरफ हम लोग रहते थे और दूसरी तरफ जानवर रखते थे." जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी बाढ़ के मामले आजकल काफी बढ़ गए हैं.
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इलाके वापस लेना
इस डेल्टा के आसपास बसे और समुदाय भी पानी में डूब गई अपनी जमीन की भरपाई पानी की सतहों पर कब्जे से कर रहे हैं. नाजिर बाजार नामका पूरा गांव ही दलदली जमीन पर मिट्टी भर कर उसके नीचे से पानी निकाल कर बसाया गया है. इस तरह वहां खेती और रहने लायक जमीन तैयार की गई.
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प्रकृति के करीब
नाजिर बाजार का एक निवासी आसमान की तरफ देख कर यह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा है कि बारिश कब आ सकती है. उसकी नाव पर ऐसी ही नई जमीन पर उगाई गई केले की खेप रखी है. जो नहरें गांव की धरती से पानी को बाहर निकालती है, वही यातायात का आधारभूत नेटवर्क भी स्थापित करती है.
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ढलने की कला
नाजिर बाजार के किसान गियासुद्दीन सदर बताते हैं कि कैसे बीते सालों में उन्होंने अपने घर को बदलते देखा है. लेकिन फिर भी उन्होंने भविष्य को लेकर उम्मीद नहीं छोड़ी है, "जो भी हो हम बदलते माहौल के हिसाब से ढलना सीख ही लेते हैं." (याकोपो पासोती/आरपी)
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बांग्लादेश में आर्थिक विकास के साथ नदियों के कारोबारी इस्तेमाल की समस्या भी गंभीर होती गई है. देश के प्रभावशाली कारोबारी समूह नदियों के किनारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. अधिकारियों द्वारा अवैध संरचनाओं को हटाने के फौरन बाद वे फिर से उसी जगह पर लौट आते हैं. अदालत ने सरकार से नदियों पर कब्जा करने वालों की सूची बनाने और उसका प्रकाशन करने को कहा है, और चुनाव आयोग से कहा है कि ऐसे लोगों को किसी भी स्तर पर चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करे. बैंकों से उन्हें किसी भी प्रकार का लोन नहीं देने को कहा गया है.
नदियों के तटीय इलाकों के कब्जे की समस्या ने तब गंभीर रूप लेना शुरू किया जब कुछ साल पहले जिला प्रशासन ने राजधानी ढाका के आसपास की चार नदियों बूढ़ी गंगा, तूराग, बालू और शीतलख्या की हदबंदी की लेकिन तटीय इलाकों को छोड़ दिया. इससे तटीय इलाकों की प्राइवेट मिल्कियत का रास्ता खुला और कब्जा करने वालों को बढ़ावा मिला. आधिकारिक अनुमान के अनुसार शीतलख्या नदी ने ही करीब 1,860 एकड़ जमीन खो दी है. हालांकि बांग्लादेश के घरेलू जल परिवहन निगम ने नदी तटों पर अवैध कब्जा हटाना शुरू कर दिया है, लेकिन जहां जहां नदियों को मिट्टी और बालू से भर दिया गया है वहां उसे पुराने रूप में लाने का काम शुरू होना बाकी है.
सजा देने के अलावा अदालत का ध्यान नदियों की सुरक्षा पर जागरूकता अभियान चलाने पर भी है. उसने शिक्षा मंत्रालय से स्कूलों, मदरसों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हर दो महीने नदियों के महत्व पर एक घंटे की क्लास चलाने को कहा है. उद्योग मंत्रालय से यही काम उद्योगों के कामगारों के लिए करने को कहा गया है. इस तरह देश की युवा पीढ़ी के अलावा आम तौर पर नदियों को प्रदूषित करने वाले उद्यमों के कामगारों को भी नदियों के संरक्षण का महत्व समझाया जा सकेगा.
दुनिया की नौ बड़ी नदियां कुल मिलाकर समंदर में जितना पानी छोड़ती हैं, अमेजन उससे ज्यादा पानी अकेले डिस्चार्ज करती है. एक नजर सबसे ज्यादा पानी वाली दुनिया की सबसे बड़ी नदियों पर.
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15. मिसीसिपी (अमेरिका)
औसत प्रवाह: 4,800 घन मीटर प्रति सेकेंड
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14. सेंट लॉरेंस (कनाडा, अमेरिका)
औसत प्रवाह: 16,800 घन मीटर प्रति सेकेंड
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13. लेना (रूस)
औसत प्रवाह: 16,871 घन मीटर प्रति सेकेंड
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12. पराना (ब्राजील, पराग्वे, अर्जेंटीना)
औसत प्रवाह: 17,290 घन मीटर प्रति सेकेंड
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11. जापुरा (कोलंबिया, ब्राजील)
औसत प्रवाह: 18,620 घन मीटर प्रति सेकेंड
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10. येनिसे (चीन, रूस)
खाड़ी में औसत जल प्रवाह: 19,600 घनमीटर प्रति सेकेंड
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09. ब्रह्मपुत्र (चीन, भारत)
पद्मा में संगम के दौरान औसत जल प्रवाह:19,800 घनमीटर प्रति सेकेंड
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08. रियो डे ला प्लाटा (अर्जेंटीना, उरुग्वे)
खाड़ी में औसत जल प्रवाह: 22,000 घनमीटर प्रति सेकेंड
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07. नेग्रो (कोलंबिया, वेनेजुएला, ब्राजील)
अमेजन में संगम के दौरान औसत जल प्रवाह: 28,400 घनमीटर प्रति सेकेंड
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Brandt
06. यांगत्से (चीन)
खाड़ी में औसत जल प्रवाह: 30,166 घनमीटर प्रति सेकेंड
तस्वीर: Getty Images/AFP/Str
05. मादेइरा (बोलिविया, ब्राजील)
खा़ड़ी में औसत जल प्रवाह: 31,200 घनमीटर प्रति सेकेंड
तस्वीर: Imago/imagebroker/F. Kopp
04. गंगा (भारत)
खाड़ी में औसत जल प्रवाह: 38,129 घनमीटर प्रति सेकेंड
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/S. Forster
03. ओरिनोको (कोलंबिया, वेनेजुएला)
खाड़ी में औसत जल प्रवाह: 40,000 घनमीटर प्रति सेकेंड
तस्वीर: picture alliance/WILDLIFE/P. Oxford
02. कॉन्गो (कॉन्गो, डीपीआर कॉन्गो)
खाड़ी में औसत जल प्रवाह: 41,200 घनमीटर प्रति सेकेंड
तस्वीर: picture alliance/africamediaonline
01. अमेजन (ब्राजील, कोलंबिया, पेरू)
खाड़ी में औसत जल प्रवाह: 2,09,000 घनमीटर प्रति सेकेंड